क्या आप कल्ल्पना कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति अपना कैरियर बर्तन साफ करने वाले के रूप में शुरू करे और फिर अपनी मजबूत दृष्टि और मिशन के माध्यम से वैश्विक मानचित्र पर बदलाव लाने के लिए राजनीति में प्रवेश करे? अगर नहीं, तो आइए सिद्धार्थ मुदगल से मिलते हैं, जो एक ऐसे पथ- प्रदर्शक हैं, जिन्होंने राजस्थान से अपना सफर शुरू किया और अब जर्मन संसद के उम्मीदवार हैं। भारत के जीवंत राज्य राजस्थान में एक समर्पित शिक्षक और एक साहसी भारतीय सेना अधिकारी के घर जन्मे मुदगल की जीवन कहानी अटूट दृढ़ संकल्ल्प और असीम महत्वाकांक्षा का प्रमाण है। इक्कीस साल पहले उन्होंने एक युवा छात्र के रूप में जर्मनी की धरती पर कदम रखा, उनके पास सपनों और हिम्मत के अलावा और कुछ अच्छा नहीं था। उनकी यात्रा एक यात्री के रूप में विनम्र तरीके से शुरू हुई, फिर भी उन्होंने दृढ़ता से काम किया, सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए दुनिया की कुछ सबसे प्रतिष्ठित कंपनियों में नेतृत्व की भूमिकाएं निभाईं। 2010 में उनके असाधारण योगदान को मान्यता तब मिली जब उन्हें गृह मंत्री जोआचिम हरमन की ओर से प्रारंभिक विवेकाधीन नागरिकता प्रदान की गई। सात साल बाद 2017 में उन्हें संघीय राष्ट्रपति जोआचिम गौक से सर्वोच्च सम्मानों में से एक मिला, जो जर्मन समाज के प्रति उनके समर्पण की हार्दिक स्वीकृृति थी। अब एक मिशन के साथ यह व्यक्ति वैश्विक मानचित्र पर अपनी छाप छोड़ने के लिए आगे आकर नेतृत्व कर रहा है। उन्हें सीएसयू-एम हार्ट की ओर से 2025 बुंडेस्टैग चुनावों के लिए उम्मीदवार घोषित किया गया है। 14 दिसंबर, 2024 को म्यूनिख में राज्य प्रतिनिधियों की सभा में चुने गए मुदगल की उम्मीदवारी जर्मनी की चुनौतियों का समाधान करने के लिए अनुभव, विशेषज्ञता और नवाचार को संयोजित करने के लिए सीएसयू के समर्पण को रेखांकित करती है। राजस्थान से जर्मन संसद के उम्मीदवार तक सिद्धार्थ मुदगल सीएसयू की बुंडेस्टैग सूची में आगे चल रहे हैं। मुदगल कहते हैं कि जर्मनी एक निर्णायक मोड़ पर है। 5.9 प्रतिशत की बेरोजगारी, लगातार मुद्रास्फीति और 2023 में -0.3 प्रतिशत की जीडीपी गिरावट के साथ वहां की समृद्धि खतरे में है। अब साहसिक निर्णय, स्पष्ट दृष्टि और कार्य करने का साहस करने का समय है। जर्मनी को अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए फिर से ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मुदगल जोर देकर कहते हैं कि जर्मनी वैश्विक नवाचार की दौड़ में पिछड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता। मुदगल को उम्मीद है कि इससे जर्मनी में एकभव्य सांस्कृृतिक केंद्र बनवाने की उनकी महत्वाकांक्षी योजना को मजबूती मिल सकती है। इस सांस्कृृतिक केंद्र के परिसर में एक मंदिर बनाने की भी योजना है। इसकी जरूरत पर जोर देते हुए वह बताते हैं कि जब जनसंख्या बढ़ती है तो लोगों की जरूरतें भी बढ़ती हैं। आज जो लोग भारत से आकर जर्मनी में रह रहे हैं, उनका मानसिक स्वास्थ्य भी जरूरी है, वो यहां घर-परिवार से दूर रहते हैं, ऐसे में उनके लिए एक सामाजिक व्यवस्था चाहिए। इसमें धार्मिक ढांचा अहम भूमिका निभा सकता है। सिद्धार्थ मुदगल की मानें तो आध्यात्मिकता बहुत जरूरी है। जर्मनी में बड़ी संख्या में हिंदू धर्म के लोग रहते हैं। आबादी बढ़ने पर वो चाहेंगे कि यहां मंदिर बने। मैं भी चाहता हूं कि यहां की सरकार इसके लिए जमीन दे। सिद्धार्थ यह भी स्पष्ट करते हैं कि यह सांस्कृृतिक केंद्र सभी समुदायों के लिए खुला होगा और यहां धर्म ही नहीं, तमाम जरूरी विषयों पर बातचीत हो सकेगी। उनका दृष्टिकोण आर्थिक स्थिरता को भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों के साथ जोड़ता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि जर्मनी नवाचार और स्थिरता दोनों में वैश्विक नेता के रूप में अपना स्थान पुन: प्राप्त कर ले। सिद्धार्थ भारत के युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं, जो अपनी मेहनत और लगन की बदौलत सफलता को अपने पक्ष में मोड़ दिया है और अपनी हाथों की लकीरों को अपनी दुआ और समझ से अपने अनुकूल बना दिया है।