विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने  हाल ही में विश्वविद्यालयों तथा उच्च शिक्षा संस्थानों को साल में दो बार दाखिला देने की अनुमति प्रदान कर दी है। एक बार जुलाई-अगस्त में और दोबारा जनवरी-फरवरी में। इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे उन बच्चों को लाभ होगा जो परीक्षा के नतीजे आने में देरी होने,  स्वास्थ्य कारणों या किसी निजी कारण से जुलाई-अगस्त में दाखिला नहीं ले पाते हैं।  दुनिया के टॉप एजुकेशनल इंस्टीट्यूट से शिक्षा के क्षेत्र में मुकाबले के लिए अब देश भी आगे बढ़ने को तैयार है। अब भारत के हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशन्स में भी साल में दो बार एडमिशन और एग्जाम दोनों हो सकेंगे। दुनिया के टॉप ग्लोबल इंस्टीट्यूट्स में ऐसी व्यवस्था है कि वहां साल में दो बार प्रवेश प्रक्रिया शुरू होती है और दो बार ही एग्जाम का प्रोसेस आयोजित किया जाता है। अब हमारे देश में भी ये सिस्टम लागू होने जा रहा है। इसके तहत पहला सत्र जुलाई-अगस्त से शुरू होगा और दूसरे सत्र की शुरुआत जनवरी-फरवरी से की जाएगी।

दोनों ही सेशन 12-12 महीनों के होंगे। दोनों सत्रों के लिए साल में दो बार एडमिशन प्रोसेस चलेगा और दो बार ही फाइनल एग्जाम होंगे। इसके अलावा दो-दो बार प्लेसमेन्ट के मौके भी मिलेंगे।  ये नया सिस्टम जनवरी-2025 से लागू होगा। इस फैसले से यूनिवर्सिटीज और दूसरे हायर एजुकेशन संस्थानों में रेग्युलर मोड में ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और पीएचडी के सभी कोर्सेज में जनवरी-2025 से दाखिले होना शुरू हो जाएंगे। अभी दुनिया की टॉप-300 यूनिवर्सिटीज में साल में दो बार एडमिशन का प्रोसेस होता है। अगर भारत को वैश्विक बाजार से प्रतिस्पर्धा करनी है और बढ़त हासिल करनी है तो ऐसा करना आवश्यक है। खासतौर पर उच्च तकनीक वाले सेवा निर्यात के मामले में। बहरहाल, कुछ निजी विश्वविद्यालय शायद नई दाखिला व्यवस्था को अपनाने के लिए बेहतर स्थिति में हों। इससे उन्हें उन अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करने में भी मदद मिलेगी जिनके यहां ऐसी ही दाखिला व्यवस्था है। सरकारी विश्वविद्यालयों को दाखिले के अलावा शिक्षकों और बुनियादी ढांचे की व्यवस्था में भी सुधार करना होगा तभी वे बेहतर नतीजे पा सकेंगे। अब वे बिना एक साल इंतजार किए अपने पसंदीदा पाठ्यक्रम में दाखिला ले सकेंगे।

यूजीसी को उम्मीद है कि इस मॉडल को अपनाने से न केवल दाखिलों का अनुपात बेहतर होगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और छात्रों के आदान-प्रदान की स्थिति में भी सुधार होगा जिससे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा। इससे भारत को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा मानकों के अनुरूप करने में मदद मिलेगी। उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण के मुताबिक उच्च शिक्षा में दाखिले का अखिल भारतीय औसत 2021-22 में 28.4 फीसदी था जो पिछले सालों से बेहतर था और जिसमें निरंतर सुधार हो रहा है। हालांकि विभिन्न राज्यों में काफी अंतर अभी भी है। साल में दो बार दाखिला देने की व्यवस्था को अनिवार्य नहीं किया गया है और यह उचित ही है। यह विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को तय करना है कि वे नई व्यवस्था को अपनाना चाहते हैं या नहीं। कुछ विश्वविद्यालयों के बारे में खबर है कि वे अगले अकादमिक सत्र से इसे लागू करने पर विचार कर रहे हैं।

इसे चुनिंदा पाठ्यक्रमों में प्रायोगिक तौर पर आरंभ किया जाएगा। बहरहाल यह आशंका भी है कि नई व्यवस्था को अपनाने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को कई तरह की दिक्कतें भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए यह स्पष्ट नहीं है कि ये छात्र-छात्राएं सामान्य बैच और उनके अकादमिक कैलेंडर के साथ तालमेल बिठा सकेंगे या नहीं या फिर क्या उन्हें अपने अकादमिक कैलेंडर के साथ एक नई शुरुआत का अवसर मिलेगा। अगर बाद वाली बात होती है तो संस्थानों को एक ही साल के बच्चों के लिए दो अलग-अलग सेमेस्टर का संचालन करना होगा। हो सकता है कि अधिकांश उच्च शिक्षा संस्थानों के पास बच्चे हुए बच्चों की पढ़ाई के लिए पर्याप्त कर्मचारी, शिक्षक और कक्षाओं, पुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं जैसी अधोसंरचना न हो। इसे झुठलाया नहीं जा सकता कि देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में कमी की शिकार है। अधिकांश सरकारी संस्थानों का बुनियादी ढांचा भी बहुत अच्छा नहीं है।

उनकी कक्षाएं बहुत भीड़ भरी हैं, वे हवादार नहीं हैं और साफ-सफाई की भी दिक्कत है। छात्रावासों की स्थिति भी बहुत संतोषजनक नहीं है। वर्ष 2024-25 में उच्च शिक्षा के बजट आवंटन में पिछले वर्ष की तुलना में करीब आठ फीसदी का मामूली इजाफा किया गया यानी यह राशि 3,525 करोड़ रुपए बढ़ाई गई लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए और राशि की जरूरत होगी।