इस समय बड़ी संख्या में महिलाएं अपने घर की दहलीज से बाहर निकलकर सार्वजनिक जीवन में भाग ले रही हैं। ऐतिहासिक रूप से महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में साहस और उत्साह से अपनी प्रतिभा का परचम लहरा रही हैं। भारत की शिक्षा व्यवस्था भी इसका अपवाद नहीं है जहां बड़ी तादाद में महिलाएं सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। असम में मारवाड़ी समाज की महिलाओंं की भागीदारी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आज काफी अधिक हो रही है और इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। इस समाज की महिलाओं ने विद्यालयों, कॉलेजों, कार्यालयों, न्यायालयों, पुलिस स्टेशनों, अस्पतालों, होटलों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के परिदृश्य बदल दिए है। महिलाएंं हर जगह हैं और प्रत्येक क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रही हैं। इस समाज की महिलाएं अब अपने भविष्य की संभावनाएं तलाशने में लगी हैं। माता-पिता की ओर से अपनी बेटियों के प्रति विश्वास और उनकों दी गई स्वतंत्रता यह बताती हैं कि समय कितनी तेजी से बदला है। इस अंक में हम अपने पाठकों को गुवाहाटी स्थित कॉटन विश्वविद्यालय में रसायन विभाग के साइंटिफिक एसिस्टेंट डा.संगीता अग्रवाल से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने काफी मेहनत कर आज इस मुकाम को हासिल किया है। डिब्रूगढ़ के व्यापारी जगदीश प्रसाद बजाज एवं मां गीता देवी की सुपुत्री संगीता बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी थीं। उन्होंने डिब्रूगढ़ से स्नातक और गौहाटी विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की शिक्षा पूरी की। मध्यम वर्गीय परिवार की होने के बाद भी संगीता के पिता ने कभी भी पढऩे से नहीं रोका। हमेशा वे संगीता के फैसले के साथ खड़े रहे। पोस्ट ग्रेजुएशन पास करने के साथ ही शिवसागर (अब गुवाहाटी)के बदरीनारायण क्याल एवं नर्बदी देवी क्याल के सुपुत्र सुभाष चंद्र क्याल के साथ वह वैवाहिक बंधन में बंध गई । हालांकि उनके पिता स्नातक के बाद ही उनका विवाह कराने वाले थे, लेकिन संगीता ने आगे की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर की जिसके कारण पोस्ट ग्रेजुएट के बाद विवाह हुआ। संगीता जब विवाह के बाद यहां आई तो कुछ वर्ष तक पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में व्यस्त रहीं,लेकिन पढऩे की इच्छा हमेशा रहती थी और विभिन्न विषयों को बराबर अध्ययन करती रहती थी। वे अपने पति से तकरीबन 12 से 13 वर्ष के बाद पी.एच.डी. करने की इच्छा जहिर की, पति सुभाष खुद गुवाहाटी उच्च न्यायालय के एसिसटेंट सोलिसिटर जनरल थे तथा वर्तमान में वरिष्ठ अधिवक्ता है ने उन्हें इसे पूरा करने के लिए कहा और हमेशा मदद करते रहे। 13 साल बाद फिर से शिक्षा से जुड़ीं, हालांकि बेटा पांचवी कक्षा में था, लेकिन पति के सहयोग से पांच वर्ष के अंदर उन्होंने पी.एच.डी की डिग्री पूरी कर ली। उल्लेखनीय है कि पी.एच.डी. के दौरान उन्हें रसायन विज्ञान पर शोध करने का मौका मिला। उस दौरान उनके किए शोध को कई अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में जगह मिली। 2014 में डॉ.संगीता को कॉटन कालेज में स्टेट यूनिवर्सिटी में अस्थाई रूप से केमेस्ट्री विभाग में एसिसटेंट प्रोफेसर और 2016 में कॉटन विश्वविद्यालय में केमेस्ट्री विभाग में स्थायी रूप से साइंटिफिक एसिसटेंट के पद पर नियुक्त किया गया। संगीता ने अपने विषय के छात्रों को हमेशा गंभीरता के साथ पढ़ाने के साथ ही नैनो टेक्नोलॉजी पर शोध किया, जिसे काफी सराहा गया। वे इन दिनों नॉन टेक्नोलॉजी के माध्यम से कैंसर जैसी बीमारी को ठीक करने पर शोध कर रही हैं। यहां बताते चलें कि उनकी एकाग्रता के साथ शोध कार्य को देखते हुए विश्वविद्यालय स्तर पर उनकी खूब प्रशंसा हुई है। उनके सहयोगी उनकी कमर्ठता पर गर्व महसूस करते हैं। उनका कहना है कि वे नैनो टेक्नोलॉजी पर अधिक समय शोध करती आ रही हैं और अब इस तकनीकी का हर क्षेत्र में प्रयोग किया जा रहा है। विशेष रूप से उद्योग और चिकित्सा क्षेत्र में इस तकनीकी के जरिए नई क्रांति लाने के लिए शोध कार्य में अपनी पूरी ताकत लगा दी है ताकि लोगों को इसका लाभ मिले। वे कॉटन विवि के साथ ही अन्य विवि के साथ भी मिलकर शोध काम करने की योजना बना रही हैं। साथ ही पोस्ट ग्रेजुएट के छात्रों के लिए ऑनलाइन पढ़ाने की तैयारी कर रही हैं जिससे छात्र लाभान्वित हो सकें । उनकी प्रतिभा को देखते हुए भारत विकास परिषद से उन्हें जोडऩे और महिला और बाल विकास का दायित्व सौपा गया है। उन्होंने महिलाओं से कहा कि उनकी रूचि जिस विषय में हो उस क्षेत्र में आगे बढक़र काम कर आत्मनिर्भर बनना होगा। एक शिक्षित महिला परिवार और समाज को बदल सकती हैं।