आमतौर पर माना जाता है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सदैव चुनावी मोड में रहती है। वह अन्य पार्टियों की तरह चुनाव के ऐन मौके पर चुनावी तैयारी में नहीं जुटती,बल्कि वह पांचों साल अगला  चुनाव कैसे जीतना है,इसकी तैयारी में लग जाती है। शायद लगातार चुनाव दर चुनाव जीत का स्वाद चखने का यही कारण है। वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व गुजरात, नगालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं। जानकार मानते हैं कि यदि इन विधानसभा चुनावों में भाजपा अच्छा प्रदर्शन करती है तो उसके लिए वर्ष 2024 का परिणाम बेहतर होगा, परंतु त्रिपुरा और कर्नाटक में भाजपा के प्रदर्शन से संबंधित राज्य के लोग खुश नहीं हैं। संभवत: यही कारण है कि पार्टी ने अचानक त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देव से उनका इस्तीफा ले लिया और  और राज्यसभा सदस्य माणिक साहा ने रविवार को त्रिपुरा के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली। ऐसा कहा जा रहा है कि सत्ता विरोधी लहर को दूर करने और दल के भीतर किसी भी तरह असंतोष से बचने के लिए ये फैसला लिया गया है। शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन अगरतला में सुबह 11.30 बजे किया गया। पार्टी ने अपने इस कदम के साथ ही राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में एक नए चेहरे के साथ आगे बढऩे की सफल रणनीति को अपनाया है। देब के इस्तीफा देने के कुछ घंटे बाद ही राज्य की पार्टी इकाई ने अपने नए नेता के तौर पर माणिक साहा का चुनाव किया। ऐसे कहा जा रहा कि साहा को मुख्यमंत्री बनाए जाने से पार्टी के कुछ विधायक खिलाफ हैं,परंतु उनकी आवाज इतनी तेज नहीं है कि पार्टी उनकी परवाह करे और लिए गए फैसले को वापस लेने को बाध्य हो। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा,जब बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री को बदला हो, बल्कि इससे पहले भी वह ऐसे फैसले ले चुकी है। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री को बदला गया था, वहीं अब त्रिपुरा में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अगर पीछे मुडक़र देखें,तो बीजेपी ने 2019 के बाद गुजरात और कर्नाटक सहित पांच राज्यों में मुख्यमंत्री को बदला है, वहीं साहा की बात करें तो वह बीजेपी में शामिल होने के बाद मुख्यमंत्री बनने वाले इस क्षेत्र के पूर्वोत्तर के चौथे पूर्व कांग्रेसी नेता हैं,जो पहले कांग्रेस पार्टी में रह चुके हैं और बाद में बीजेपी में रहते हुए मुख्यमंत्री बने,उनमें असम के सीएम डॉ. हिमंत विश्वशर्मा, अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू और मणिपुर के सीएम एन.बीरेन सिंह का नाम शामिल है। माणिक साहा को त्रिपुरा का नया मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद विपक्ष ने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का ऐसा मानना है कि नेतृत्व में किए जा रहे परिवर्तनों को पार्टी ग्राउंड फीडबैक के विश्लेषण के आधार पर कर रही है। पार्टी मुख्यमंत्रियों को बदले जाने के लिए कई कारकों को देखती है, जिनमें जमीन पर काम, संगठन को सही स्थिति में रखना और उस नेता की लोकप्रियता शामिल है। खुद 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्रियों को उनके हिसाब से काम करने देने के पक्ष में रहे हैं। हालांकि झारखंड विधानसभा चुनाव में हार मिलने और तत्कालीन सीएम सीएम रघुबर दास के अपनी सीट से हारने के बाद पार्टी को सत्ता परिवर्तन की जरूरत का अहसास हुआ। इसके बाद पूर्व नेता बाबूलाल मरांडी को वापस लाया गया। कुछ मिलाकर कहा जा सकता है कि भाजपा अपनी जीत में किसी भी किस्म का कोर कसर छोडऩा नहीं चाहती है और त्रिपुरा में जो सत्ता परिवर्तन हुआ है, उसकी का परिचायक है।