डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया-
यूंतो 2022 के विधानसभा चुनाव पांच राज्यों में हुए हैं और सभी 5 राज्यों में सरकारों का गठन महत्वपूर्ण है, लेकिन न केवल भारत बल्कि विदेश में रह रहे भारतीयों और भारत की राजनीति में रुचि रखने वाले लोगों की सबसे ज्यादा दिलचस्पी अगर किसी प्रदेश में थी तो वह उत्तर प्रदेश ही है। इसका एकमात्र कारण वस्तुतः उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी की प्रतिष्ठा से जुड़े थे। उप्र के चुनाव जहां एक ओर राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करते हैं वहीं यह भी तय करते हैं कि आने वाले समय में केंद्र में सरकार बनाने में किस दल को जनता का समर्थन मिलेगा। इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के परिणामों में भाजपा की जीत ने जो संदेश दिया है वह यही है कि 2024 भी विपक्षी दलों के लिए कोई खुशखबरी लेकर नहीं आएगा। हालांकि चुनावों में हार-जीत होना एक अवश्यंभावी घटना है। जब कई प्रत्याशी चुनाव मैदान में होते हैं तो एक की ही जीत होती है और दूसरों की हार। किंतु सत्ताधारी दल के लिए जीत-हार के गहरे मायने होते हैं। यदि सत्ताधारी दल चुनाव में जीत हासिल करता है तो उसका सीधा मतलब यही होता है कि जनता ने सत्ताधारी दल की योजनाओं, नीतियों, कार्य प्रणालियों, जनकल्याण के कार्यों और लॉ एंड ऑर्डर की अच्छी स्थितियों में विश्वास व्यक्त किया है। यदि सत्ताधारी दल हार जाता है तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकार राज्य की जनता की समस्याओं को हल करने में और उनके कल्याण के लिए किए जाने वाले कार्यों में सक्षम सिद्ध नहीं हुई। उप्र के इस चुनाव की यह विशेषता थी कि यह दो दलों के बीच केंद्रित था। इस चुनाव में जहां भाजपा और सपा प्रमुख प्रतिद्वंदी थे वहीं दूसरी अन्य पार्टियां पूरी तरह से अप्रभावी थीं। इस चुनाव के परिणामों ने कई मिथकों को तोड़ा है। एक मिथक यह बना हुआ था कि जो मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल में नोएडा जाता है वह दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनता। योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल में न केवल नोएडा का दौरा किया बल्कि अब वे दोबारा मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। एक मिथक यह भी था कि कोई भी राजनीतिक दल उप्र में दोबारा दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता प्राप्त नहीं कर सका था, इस मिथक को भी भाजपा ने तोड़ दिया। अगर यह कहा जाए कि आज के भारत में राजनीतिक क्षितिज पर व्याप्त निराधार मान्यताओं को भाजपा ने तोड़ दिया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अगर हम बात करें चुनाव परिणामों की तो यह तो पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि उप्र में योगी आदित्यनाथ दोबारा सरकार बनाने जा रहे हैं। 7 चरणों में हुए इन चुनावों में भाजपा की जीत स्पष्ट करती है कि समाजवादी पार्टी तुलनात्मक दृष्टि से सत्ता प्राप्त करने जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई। चुनावों के पूर्व हुए लगभग सभी ओपिनियन पोल पहले से ही इस बात की घोषणा कर रहे थे कि राज्य में भाजपा जीत रही है, लेकिन सपा इस बात को मानने को शायद अभी भी तैयार नहीं है कि वह हारी हुई पार्टी है। इस बात में कोई शक नहीं कि अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने के लिए शुरू से ही असंभव भविष्यवाणी की थी कि राज्य में सपा 400 सीट जीतेगी। यदि अखिलेश ऐसा कहकर सपा के पक्ष में माहौल नहीं बनाते तो कार्यकर्ताओं का मनोबल मेहनत करने में पिछड़ जाता। सच्चाई तो यह है कि सपा के प्रचार में उप्र के सपा कार्यकर्ताओं का वह वर्ग सबसे आगे था जो पिछले 5 सालों से योगी आदित्यनाथ के अपराध और अपराधियों पर कड़े नियंत्रण से सहमा हुआ था। इस वर्ग को ऐसा लग रहा था कि सपा के चुनाव जीतने से उनकी छिनी हुई विरासत और दादागिरी दोबारा पटरी पर आ जाएगी, लेकिन परिणाम बताते हैं कि आम मतदाता भी यह जान रहा था कि यदि उसने दोबारा सपा को सत्ता सौंपी तो उन्हें 5 साल फिर से गुंडों, माफियाओं और दबंगों का उत्पीड़न झेलना पड़ेगा। यही कारण रहा कि आम मतदाता ने सपा के पक्ष में बढ़चढ़ कर वोट नहीं किया। चुनाव प्रचार के प्रारंभ से ही अखिलेश की सभाओं में अपार भीड़ इस बात का भ्रम पैदा जरूर करती थी कि सपा के पक्ष में जबरदस्त लहर है, लेकिन सच्चाई यह है इन सभाओं में वोटर भौतिक रूप से उन गुंडों और समाज विरोधी तत्वों को यह दिखाने के लिए जाता दिखा कि वह सपा के साथ है किंतु बूथ में खड़े होकर उसने सपा के पक्ष में मतदान नहीं किया। वस्तुतः यह एक सच्चाई है कि आज का मतदाता इतना समझदार है कि वह अपने व्यवहार को चतुराई से छुपा लेता है। वहीं दूसरी ओर हर एक चरण में विभिन्न समाचार एजेंसियों ने जो ग्राउंड जीरो पर सर्वे किए उनमें यह बात उभर कर सामने आई कि आम मतदाता सपा शासन के 5 सालों में दबंगों की यातनाओं से गुजरा था वह दोबारा उन्हीं स्थितियों को दोहराने से बचना चाहता था तो वहीं उसने 5 साल के योगीराज में जो भयमुक्त जीवन जिया उससे वह सपा को वोट देकर वंचित नहीं होना चाहता था। भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग ने भी उसे जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उप्र में भाजपा ने पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय को न केवल संगठन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया बल्कि इन वर्गों को विधानसभा में भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला। यही कारण रहा कि 2017 में जो वोट प्रतिशत उसका था उसमें इस चुनाव में भी कोई गिरावट नहीं आई। दूसरी ओर अखिलेश यादव ने जो गठजोड़ किए वे भी सपा को जिताने में असरदार नहीं रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने किसान आंदोलन से उपजी स्थितियों के बाबजूद 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों को भुलाया नहीं, जबकि माना जा रहा था कि सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को यहीं होगा। तो दूसरी ओर अल्पसंख्यकों के ध्रुवीकरण के विरुद्ध बहु संख्यकों के वोटों का ध्रुवीकरण भी भाजपा की जीत का आधार बना। इन चुनावों में सपा के मुस्लिम यादव समीकरण के स्थान पर भाजपा का मोदी योगी समीकरण प्रभावकारी रहा। वस्तुतः जहां एक ओर उप्र में भाजपा की संगठन मजबूती के लिए अमित शाह ने कमर कसी वहीं नरेन्द्र मोदी और योगी की ताबड़तोड़ रैलियों ने मतदाताओं को प्रभावित किया। सच्चाई तो यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने 5 साल के कार्यकाल में जितने कल्याणकारी काम किए उन्हें उसने मंचों से संप्रेषित करने में कहीं कोई चूक नहीं की। भाजपा का सपा पर यह प्रहार प्रभावी रहा कि उसके राज में गुंडे मवालिओं की पौ बारह थी और आम आदमी, स्ति्रयां और बच्चे अपराधियों से सुरक्षित नहीं थे, लेकिन योगी के राज में जनता को इनसे मुक्ति मिली। इन चुनावों में मोदी, योगी और भाजपा ने इतिहास रच दिया। योगी आदित्यनाथ 1952 के बाद ऐसे पहले मुख्यमंत्री होंगे जो 5 साल के निर्वाचित कार्यकाल के बाद दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। एक इतिहास यह भी बनेगा कि भाजपा के किसी मुख्यमंत्री ने अब तक मुख्यमंत्री के रूप में 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया था जो योगी आदित्यनाथ ने पूरा किया। वस्तुतः एक बात तो स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश का यह चुनाव वंशवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद और तुष्टीकरण के विपरीत विकासवाद एवं कानून और व्यवस्था की स्थापना के पक्ष में भाजपा को समर्थन के चुनाव थे। निस्संदेह उप्र में भाजपा को मोदी के करिश्माई नेतृत्व और योगी की अपराधियों पर नकेल तथा राज्य में विकास तथा जनकल्याणकरी योजनाओं ने जीत दिलाई है। लेख लिखे जाने तक परिणामों में जो रुझान दिखाई दे रहे थे उनसे स्पष्ट होता है कि 5 में से 4 राज्यों क्रमशः उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा ही सरकार बनाएगी।