अमरीका के ज्वाइंट चीफ स्टाफ के पूर्व अध्यक्ष माइकल मुलेन सहित पांच पूर्व रक्षा अधिकारियों के ताइवान पहुंचने के साथ ही एक बार फिर अमरीका और चीन सामने-सामने आ गए हैं। चीन ने ताइवान को लेकर अमरीका को सीधे चेतावनी देते हुए कहा है कि वह इस मुद्दे पर हस्तक्षेप नहीं करे। ताइवान चीन का हिस्सा है। इसमें बाहरी शक्ति के आने की कोई जरूरत नहीं है। अमरीका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भी ताइवान पहुंच गए हैं। इस प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नियुक्त किया है। प्रतिनिधिमंडल ने ताइवान की राष्ट्रपति साई वेन से मुलाकात कर विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय मुद्दे पर विस्तार से बातचीत की है। अमरीका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता के लिए अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। बातचीत के दौरान सामरिक क्षेत्र में सहयोग पर भी चर्चा हुई है। मालूम हो कि चीन ताइवान को अपने में मिलाना चाहता है, जबकि ताइवान अपने को स्वतंत्र देश मानता है। इसको लेकर चीन एवं ताइवान के बीच पिछले कुछ वर्षों से लगातार तनातनी चल रही है। ताइवान पर दबाव बढ़ाने के लिए चीन उसके एयर जोन में सैकड़ों विमान भेजकर डराने का काम करता है। ताइवान की सेना भी उसका कड़ा जवाब दे रही है। लुका-छिपी का यह खेल कभी भी यूक्रेन-रूस की तरह जंग में तब्दील हो सकता है। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए ताइवान अपनी रक्षा के लिए सामरिक तैयारी को मजबूती देने में लगा हुआ है। वायु रक्षा प्रणाली सक्रिय है। अमरीका भी ताइवान की रक्षा के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा चुका है। अमरीका के दो युद्धपोत ताइवान एवं जापान की सीमा के पास तैनात हैं। इसके अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमरीका के कई सैनिक अड्डे हैं जहां से अमरीका चीन पर हमला करने की स्थिति में है। चीन दक्षिण एवं पूर्व चीन सागर को अपना हिस्सा मानता है, जबकि चीन के पड़ोसी देश ऐसा नहीं मानते हैं। पड़ोसी देशों की आवाज दबाने के लिए चीन उनको धमकाता रहता है। एलएसी पर भी चीन और भारत के बीच तनाव बना हुआ है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों की फौज आमने-सामने खड़ी हैं। वियतनाम एवं फिलीपींस जैसे देश लगातार अपनी सैन्य तैयारी को मजबूत करने में लगे हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमरीका ने चीन की विस्तारवादी नीति पर अंकुश के लिए क्वॉड संगठन का गठन किया है। भविष्य में इसका विस्तार भी हो सकता है। इस संगठन में अमरीका के अलावा भारत, जापान और आस्ट्रेलिया शामिल है। इस संगठन की कई बार बैठक हो चुकी हैं। इसकी अगली बैठक में जापान में होने वाली है, जिसमें भारत की अग्निपरीक्षा होगी। भारत को छोड़ इस संगठन के तीनों देश यूक्रेन में रूस के हमले के खिलाफ हैं, जबकि भारत तटस्थ रुख अपनाए हुए है। अगर इस संगठन की बैठक में रूस के खिलाफ कोई निंदा प्रस्ताव आया तो उस वक्त भारत के लिए अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो जाएगी। भारत किसी भी शर्त पर रूस-यूक्रेन युद्ध में किसी भी पक्ष का समर्थन करना नहीं चाहता है। लेकिन अगर ताइवान पर चीन ने हमला किया तो भारत की नीति बदल जाएगी। भारत-चीन की दुश्मनी जगजाहिर है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र का चीन की दादागिरी से मुक्त रहना भारत के भी हित में है। भारत पहले से ही चीन के पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाकर उचित जवाब देने की कोशिश कर रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध से कई सवाल पैदा हुए हैं, जिसका जवाब भविष्य के गर्भ में है। अगर यह युद्ध परमाणु युद्ध में बदला तो यह दुनिया के लिए सबसे बड़ी त्रासदी होगी। आज जरूरत इस बात की है कि सभी पक्ष धैर्य और संयम से काम लें।