लोकसभा चुनाव तथा विधानसभा चुनावों के वक्त दल-बदल की राजनीति तेज हो जाती है। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार नफा-नुकसान के आधार पर पल्ला बदलने से परहेज नहीं करते हैं। अपनी जीत तथा टिकट कटने की आशंका को ध्यान में रखकर राजनेता ठीक चुनाव के वक्त दूसरी पार्टियों का दामन थाम लेते हैं। लेकिन अभी तक का जो रिकॉर्ड है उसके मुताबिक दल-बदलू नेताओं की जीत 50 प्रतिशत से कम होती है। उप-चुनाव के वक्त यह प्रतिशत बढ़ जाता है। उत्तर प्रदेश का चुनाव विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। उत्तर प्रदेश में राजनेताओं का पल्ला बदलने का काम तेजी से हो रहा है। अभी तक भारतीय जनता पार्टी के कई नेता ही अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं। ज्यादातर भाजपाई समाजवादी पार्टी की ओर रुख कर रहे हैं। इसका कारण यह है कि भाजपा के बहुत-से विधायकों को यह आशंका है कि इस बार उनका टिकट कट सकता है। इसी को ध्यान में रखकर भगदड़ मची हुई है। उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के 24 घंटे के भीतर ही वन एवं पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चौहान ने भी सरकार और पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इन लोगों का आरोप है कि योगी आदित्यनाथ सरकार पिछड़ों, दलितों, वंचितों, किसानों एवं बेरोजगार नौजवानों की उपेक्षा कर रही है। मुजफ्फरनगर के मीरपुर के विधायक अवतार सिंह भड़ाना ने भाजपा से इस्तीफा देकर राष्ट्रीय लोकदल का दामन थामा है। ऐसी खबर है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर भाजपा को तोड़ने का बीड़ा उठाए हुए हैं। मालूम हो कि समाजवादी पार्टी इस चुनाव में भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़ी हुई है। समाजवादी पार्टी के साथ ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ-साथ अपना दल (कृष्णा पटेल) एवं राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन है। स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में शामिल होने से अति पिछड़े वर्गों में सपा की स्थिति मजबूत होगी। भाजपा में स्वामी को उतनी तरजीह नहीं मिल रही थी जितना वे चाहते थे। इसका कारण यह है कि वहां के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी उसी जाति से आते हैं जिसका स्वामी भी प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा में हो रहे बिखराव की खबर के बाद पार्टी ने भी जवाबी कार्रवाई के लिए कमर कस ली है। अब भाजपा भी समाजवादी पार्टी को तोड़ने के लिए रणनीति बनाने में जुट गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी बागडोर खुद संभाल ली है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह तथा संगठन मंत्री सुनील बंसल को यह काम सौंपा गया है। मकर संक्रांति के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो पाएगी कि कौन किसके पाले में जा रहा है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों की अंतिम सूची तय करने में जुट गई हैं। उम्मीदवारों की घोषणा के बाद पाला बदलने काम और भी तेज हो सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार रैलियों को संबोधित कर अपने विकास कार्यों का लेखा-जोखा जनता के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगाने से पहले प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश में कई जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं। अब 15 जनवरी के बाद ही रैलियों के आयोजन पर फैसला होगा। सभी राजनीतिक पार्टियां डिजिटल प्रचार अभियान के लिए कमर कस चुकी हैं। हालांकि भाजपा ने अगले चुनाव के लिए योगी को ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया है, किंतु जनता के सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही असली चेहरा होंगे। विपक्षी दल उत्तर प्रदेश में भाजपा को शिकस्त देने के लिए सपा के साथ जुड़ने लगे हैं। एनसीपी तथा कुछ अन्य पार्टियों की सांकेतिक भागीदारी इसी ओर इशारा कर रही है। लेकिन कांग्रेस तथा बहुजन समाज पार्टी द्वारा अपने बलबूते पर मैदान में उतरने से  विपक्षी एकता को निश्चित रूप से धक्का लगा है।