पिछले कुछ महीनों से पंजाब सुर्खियों में रहा है। चाहे किसान आंदोलन का मामला हो या कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे का या प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक का। पंजाब विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद माहौल और भी गर्म हो गया है। इस बार का चुनाव कई राजनेताओं के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अपने काम से यह साबित करने में लगे हैं कि वे कठपुतली मुख्यमंत्री नहीं हैं। पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से अलग छवि दिखाने के लिए चन्नी लगातार प्रयासरत हैं। 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा के लगभग दो-तिहाई सीटों पर दलित मतदाता का अच्छा प्रभाव है। कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलित वोटों को साधने का भरसक प्रयास किया है। कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है। इधर अकाली दल पहली बार सुखवीर सिंह बादल के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है। इससे पहले पार्टी प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में चुनाव में प्रतिद्वंद्विता करती आ रही थी। अकाली दल अब भाजपा का साथ छोड़कर मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ हाथ मिलाया है। बसपा का साथ लेकर अकाली दल की नजर पंजाब के दलित मतदाताओं पर टिकी हुई है। चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव में जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब के सभी सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पार्टी जोर-शोर के साथ चुनाव मैदान में उतर चुकी है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। कैप्टन की पार्टी, भाजपा तथा सुखदेव सिंह ढींढसा के नेतृत्व वाली अकाली दल मिलकर अगले विधानसभा चुनाव में चुनौती प्रस्तुत करने में लगा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार पंजाब की भावनाओं को समेट कर अपनी झोली में डालने के लिए लगे हुए हैं। सर्वप्रथम उन्होंने गुरुनानक जयंती के दिन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। उसके बाद वर्षों से लंबित करतार सिंह गलियारा को खोलकर राष्ट्र समर्पित किया। रविवार 9 जनवरी को सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व के अवसर पर वीर बाल दिवस की घोषणा कर मोदी ने पंजाब चुनाव से पहले मास्टर स्ट्रोक खेला है। 26 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष वीर बाल दिवस मनाया जाएगा, क्योंकि इसी दिन गुरु गोविंद के बेटों को अंग्रेजों ने दीवार में चुनवा दिया था। हाल ही में प्रधानमंत्री के पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा में हुई चूक का मामला ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। इस मामले में पंजाब और केंद्र आमने-सामने है। सुप्रीम कोर्ट अब मामले को अपने हाथ में ले लिया है। किसान संगठन भी पंजाब के चुनाव में अपना किस्मत आजमाने के लिए कूद चुका है। राजनीतिक पार्टियों के बीच शह और मात का खेल चल रहा है। ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो पंजाब के मतदाताओं के हाथ में है। वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए ऐसा लगता है कि पंजाब का चुनाव चतुष्कोणीय हो गया है। कांग्रेस के लिए पहले आसान जीत दिखाई दे रही थी वह सिद्धू की राजनीति के कारण धूमिल होती जा रही है। भाजपा अपने को सिख हितैषी साबित करने के साथ ही कैप्टन और ढींढसा की काबिलियत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रही है। पिछली कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने वाले कैप्टन की राजनीतिक कौशल की अग्नि परीक्षा होने वाली है। आम आदमी पार्टी भी अपने को दिल्ली की तरह विजेता मानकर चल रही है। पंजाब में चल रही राजनीतिक घमासान का अंतिम परिणाम क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।