प्रो. (डॉ.) राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता-

पंजाब में गत 5 जनवरी 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा में जो चूक हुई, वह भारत के इतिहास में आज तक कभी नहीं हुआ है। भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी अपने तय कार्यक्रम के अनुरूप पंजाब के फिरोजपुर जा रहे थे, ऐसे में उनकी गाड़ी अचानक 20 मिनट के लिए रुक जाए, वह भी उस परिस्थिति में जहां से चाहकर भी निकलने का कोई रास्ता न हो तो यह समझने के लिए पर्याप्त है कि मामला कितना गंभीर और संवेदनशील था। इस प्रकार से प्रधानमंत्री की सुरक्षा से खिलवाड़ होने पर पंजाब की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार पर सवाल नहीं उठेंगे तो और फिर किस पर उठेंगे? लेकिन हद तो तब हो गई जब इतनी बड़ी घटना के चंद घंटों बाद अपनी इस गलती को स्वीकार करने की बजाए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व एवं पंजाब सरकार द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर अपने आपको सही ठहराने की कोशिश की गई। सवाल तो उठेंगे ही कि क्या प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से कांग्रेस इतनी घबरा गई कि उनकी सुरक्षा से खिलवाड़ को भी तैयार हो गई? जब पंजाब सरकार और उनके प्रशासन को पता था कि मौसम खराब होने के बाद प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से जाएंगे तो फिर प्रदर्शनकारी घंटे-दो घंटे में वहां कैसे पहुंचे, इतने कम समय में वहां लंगर कैसे लग गया और अगर वे लोग सड़क रोकने वहां पहुंच भी गए तो उन्हें हटाने या रोकने में प्रशासन कैसे विफल हुई? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल कि जब पूर्व से ही कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा कार्यक्रम न होने एवं रैली में जाने वालों को धमकाया जा रहा था तो सरकार पहले से तैयार क्यों नहीं थी? प्रशासन द्वारा उन्हें सड़क मार्ग को सैनिटाइज हो जाने की सूचना क्यों दी गई? आखिरकार सब कुछ जानते हुए इतनी बड़ी लापरवाही कोई सरकार कैसे कर सकती? स्थिति की भयावहता का अंदाजा इस बात से समझा जा सकता है कि 20 मिनट तक इंतजार करने के बाद भी पंजाब प्रशासन रास्ता को खाली नहीं करा पाई, जिससे अंततः प्रधानमंत्री को सुरक्षा के आलोक में वापस लौटने के अलावे कोई और विकल्प नहीं मिला। क्या यह चिंता का विषय नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी का काफिला ओवरब्रिज पर ही क्यों रुका, कहीं यह सुनियोजित षड्यंत्र के तहत तो नहीं हुआ ताकि प्रधानमंत्री ब्रिज पर होने के वजह से कहीं और जा नहीं  पाएंगे। विशेष बात यह है कि इस जगह से पाकिस्तान की दूरी मात्र 30 कि.मी. थी। प्रोटोकॉल के अनुसार भी प्रधानमंत्री के दौरे पर राज्य के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक उनके साथ रहते हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि उस दौरान इनमें से कोई भी साथ नहीं था, इसलिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जो सवाल पंजाब के मुख्यमंत्री पर उठाए हैं, वह गौर करने योग्य है। इतना कुछ होने के बावजूद इस मामले को सुलझाने का प्रयास मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के तरफ से भी नहीं किया गया और जब उनसे संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन भी नहीं उठाया। ज्ञातव्य हो कि प्रधानमंत्री का यह कार्यक्रम चुनावी नहीं, सार्वजनिक था, जिसके तहत करोड़ों रुपए की परियोजनाओं का शिलान्यास राज्य की जनता-जनार्दन के लिए होने वाला था।कांग्रेस पार्टी के अनेक मुख्यमंत्रियों और प्रमुख नेताओं ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई सेंधमारी को भी राजनीतिक रंग देकर इसकी निंदा करने की बजाए मुख्यमंत्री चन्नी का बचाव करने की कोशिश की। यह उन सबकी ओछी मानसिकता को ही दर्शाता है। कांग्रेस समेत विपक्ष के जो नेता यह बोल रहे हैं कि सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई, इस मामले में सबसे अहम सवाल है कि इस चूक के कारण यदि प्रधानमंत्री को कुछ होता तो इसकी जिम्मेवारी किसकी होती? इसलिए इसे चूक नहीं, अपितु जानबूझकर किया गया षड्यंत्र कहा जाएगा। पूरे प्रकरण को देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि यह अचनाक से नहीं हो सकता है, बल्कि एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत प्रायोजित की गई थी। एक-एक घटनाक्रम को देखकर लगता है कि प्रदर्शनकारियों को सरकार का समर्थन एवं संरक्षण प्राप्त था और प्रधानमंत्री के सड़क रास्ते जाने की गोपनीय जानकारी लीक की गई। तभी तो इतनी बड़ी संख्या में भीड़ प्रधानमंत्री के काफिले के आस-पास मौजूद थी। इस स्थिति में किसी भी समय कोई भी दुर्घटना घट सकती थी। यह ईश्वर की कृपा ही रही कि मोदी जी सुरक्षित वहां से निकल पाए। इस बात का एहसास मोदी जी को भी हो गया था कि बहुत भाग्य से वह पूरी तरह सुरक्षित हैं। इस पूरे घटना के बाद से सोशल मीडिया में खालिस्तानियों का जो वीडियो वायरल हो रह है, उसमें वे लोग इस घटना के बाद खुशी मनाते हुए और ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए भी दिखे। यह पूरा वाक्या इस बात का संकेत दे रहा है कि मोदी जी के साथ कुछ अनहोनी हो, इसके लिए पूर्व से ही योजनाबद्ध ढंग से तैयारी की गई थी।प्रधानमंत्री की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक की घड़ी में विपक्ष के कुछ नेता का ऐसा बयान देना कि प्रधानमंत्री कुछ देर के लिए अगर सड़क पर रुक भी गए तो इसमें परेशानी की क्या बात है, तो वैसे सभी अज्ञानी नेताओं को यह ज्ञात होना चाहिए कि पूर्व में विश्व के अनेक देशों में कई ऐसी घटनाएं घटित हुई हंै, जिसमें कुछ राष्ट्राध्यक्षों की खुली गाड़ी में होने की वजह से ही मौत हो चुकी है। उदाहरण स्वरूप सन् 1963 में पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी की हत्या कर दी गई थी, वहीं सन् 1978 में इटली के प्रधानमंत्री एल्डो मोरो को भी उनकी गाड़ी से अपहरण कर बाद में हत्या कर दी गई थी, जबकि सन् 1995 में चंडीगढ़ में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री श्री बेअंत सिंह को भी अपने ही कार धमाके में हत्या हुई थी। भला कांग्रेस पार्टी यह कैसे भूल सकती है कि सुरक्षा में चूक के कारण ही उनके नेतृत्व वाली सरकार में इस देश ने श्रीमती इंदिरा गांधी और श्री राजीव गांधी के रूप में दो प्रधानमंत्री को खोया है।स्वतंत्रता के बाद के इतिहास को देखें तो भारत ने ऐसी कई दुर्घटनाओं में अपने राष्ट्रनायकों एवं राजनेताओं को खोया है। भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सन् 1953 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफ कश्मीर में उनकी मृत्यु, सन् 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर के महज चंद घंटों बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो या फिर सन् 1968 में ट्रेन में जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या का ममला हो तथा सन् 1975 में तब के रेल मंत्री पंडित ललित नारायण मिश्र का समस्तीपुर में रेल परियोजना का उद्घाटन करते हुए हत्या, सदैव प्रसाशनिक चूक ही हुई है। हवाई दुर्घटना में श्री संजय गांधी की मृत्यु भी लापरवाही का ही परिणाम था। ये सभी घटनाएं आज भी रहस्यमयी और संदेहास्पद बनी हुई है। इन सभी दुर्घटनाओं में कांग्रेस पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा होता रहा है, क्योंकि ये सभी घटनाएं उनके कार्यकाल में ही हुए हैं और आज भी पंजाब में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के साथ जो कुछ घटित हुआ, वहां कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ही है।प्रधानमंत्री श्री मोदी के विरोध में देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा से समझौता कोई आम बात नहीं है। इस संदर्भ में पहले तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अपनी गलती को न मानते हुए कठदलील दे रहे थे, लेकिन देशभर में कांग्रेस के इस रवैया के प्रति जनता में आक्रोश को देखकर घटना के 24 घंटा बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने माना है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई है। इस तरह कांग्रेस का दोहरा चरित्र एक बार पुनः देश के सामने आ चुका है, यही वहज है कि इस मामले को लेकर उनपर कई प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं। यह किसी व्यक्ति की सुरक्षा का सवाल नहीं, बल्कि विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या और मजबूत लोकतांत्रिक देश भारत की अखंडता, एकता एवं सुरक्षा का मामला है। इस घटना की निष्पक्ष जांच के जरिए ससमय जिम्मेदारी एवं जवाबदेही तय कर कठोर करवाई किया जाना अति आवश्यक है, ताकि भविष्य में ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्ति न हो सके।