इस्लामाबाद : तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और इमरान खान सरकार के बीच अफगानिस्तान में जारी बातचीत खटाई में पड़ती नजर आ रही है। करीब एक महीने से दोनों पक्षों के बीच सीजफायर भी मुश्किल में दिखाई दे रहा है। टीटीपी ने पाकिस्तान सरकार के सामने तीन मांगें रखी हैं। इनमें से एक है कि अफगान तालिबान की तर्ज पर पाकिस्तान तालिबान को भी किसी तीसरे देश (पाकिस्तान और अफगानिस्तान छोड़कर) में पॉलिटिकल ऑफिस खोलने की मंजूरी मिले। पाकिस्तान सरकार इस शर्त को किसी भी कीमत पर मानने के लिए तैयार नहीं हो सकती। पाकिस्तान सरकार और टीटीपी इसी महीने की 9 तारीख को सीजफायर के लिए राजी हुए थे। तब यह तय हुआ था कि दोनों पक्ष तब तक एक दूसरे पर हमले नहीं करेंगे जब तक बातचीत जारी है। दोनों पक्षों के बीच पहले काबुल और फिर खोस्त में कई दौर की बातचीत हुई। इस बातचीत में अफगानिस्तान तालिबान और खासतौर पर हक्कानी ग्रुप मध्यस्थता कर रहा है। माना जा रहा है कि अफगान तालिबान के पाकिस्तान तालिबान पर बातचीत के लिए दबाव डाला था। इसके बाद दोनों पक्षों के बीच अफगानिस्तान में ही बातचीत हुई। इमरान सरकार स्थायी शांति समझौता चाहती है, लेकिन टीटीपी ने कुछ अहम शर्तें सामने रख दी हैं। पाकिस्तान के अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के मुताबिक, तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी ने इमरान खान सरकार के सामने तीन मुश्किल मांगें रखी हैं। पहली- किसी तीसरे देश में पॉलिटिकल ऑफिस खोलने दिया जाए। दूसरी- फेडरल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइबल एरियाज (फाटा) का मर्जर रद्द किया जाए और तीसरी- पाकिस्तान में शरिया कानून लागू किया जाए। सरकार की तरफ से बातचीत कर रहे पक्ष का कहना है कि टीटीपी की तीनों में से एक भी मांग नहीं मानी जा सकती। टीटीपी का कहना है कि जब पाकिस्तान इस्लामी देश है तो यहां शरिया कानून लागू करने में क्या दिक्कत है? इसमें परेशानी यह है कि टीटीपी अपने हिसाब से शरियत लागू करना चाहता है।