फिलहाल वैश्विक स्तर पर सत्ता का खेल बदल गया है। सत्ता में बने रहने के लिए लोग ऐसे कार्य कर रहे हैं, जिसकी पहले कल्पना नहीं की जा सकती थी। लोकतंत्र कभी भी तानाशाही को प्रोत्साहित नहीं करता, परंतु आजकल लोकतंत्र को बचाए रखने के नाम पर तानाशाहीपूर्ण कार्य किए जा रहे हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों को धूलधूसरित करने वाले हैं। इसी क्रम में दक्षिण कोरिया में एक चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया। राष्ट्रपति यून सुक-योल ने मार्शल लॉ लगाया, लेकिन कुछ घंटों बाद ही दबाव में आकर इसे वापस ले लिया। यह घटना दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर बड़ा असर डाल सकती है। उल्लेखनीय है कि मंगलवार रात को राष्ट्रपति यून ने टीवी पर एलान किया कि देश में मार्शल लॉ लागू हो रहा है। उन्होंने राज्य विरोधी ताकतों से लोकतंत्र बचाने की बात कही। साथ ही विपक्ष पर सरकार को कमजोर करने का आरोप लगाया। यह कदम 40 साल बाद दोबारा उठाया गया। आखिरी बार 1979 में मार्शल लॉ लगाया गया था। यून ने दावा किया कि उत्तर कोरिया से भी खतरा है। पिछले एक साल में उत्तर कोरिया ने ताबड़तोड़ मिसाइल परीक्षण किए हैं। मार्शल लॉ के तहत सेना प्रमुख जनरल पार्क अन-सू ने छह बिंदुओं का आदेश जारी किया। इसमें राजनीतिक गतिविधियों, प्रदर्शन और हड़ताल पर रोक लगाई गई। मीडिया को सेना के अधीन कर दिया गया। डॉक्टरों को 48 घंटे में काम पर लौटने का आदेश दिया गया। इसके बाद राजधानी सोल में सेना तैनात हो गई। नेशनल असेंबली (संसद) को सील कर दिया गया। हेलीकॉप्टर संसद की छत पर उतरे। सैनिक अंदर घुस गए और सांसदों को बाहर रोका गया। घोषणा के तुरंत बाद देश भर में विरोध शुरू हो गया। 190 सांसद किसी तरह संसद भवन में पहुंचे। उन्होंने आपातकालीन वोटिंग में मार्शल लॉ खारिज कर दिया। बुधवार सुबह साढ़े चार बजे राष्ट्रपति यून टीवी पर आए। उन्होंने संसद के फैसले को मानते हुए मार्शल लॉ हटा लिया। उन्होंने कहा कि सेना को वापस बुला लिया गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह कदम राष्ट्रपति यून की राजनीतिक परेशानियों का नतीजा था। 2022 में पद संभालने के बाद से ही वह विवादों में रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोप खासकर उनकी पत्नी के खिलाफ, उनकी लोकप्रियता को गिरा चुके हैं। उनकी रेटिंग अब केवल 17 फीसदी पर है। इस हफ्ते विपक्ष ने बजट में 2.8 अरब डॉलर की कटौती का प्रस्ताव दिया। यह यून की नीतियों को बड़ा झटका था। साथ ही विपक्ष ने कई मंत्रियों और अधिकारियों को हटाने का प्रस्ताव दिया। कई लोगों का मानना है कि यून ने सत्ता पर पकड़ और नियंत्रण दिखाने के लिए मार्शल लॉ लगाया, लेकिन यह कदम उल्टा पड़ा। घोषणा के बाद यून को हर तरफ से आलोचना झेलनी पड़ी। विपक्ष ने इसे राजद्रोह बताया और यून के इस्तीफे की मांग की। मजदूर संघों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल का एलान किया। यहां तक कि उनकी पार्टी ने भी इस कदम को दुखद कहा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता जताई गई। अमरीका ने कहा कि मार्शल लॉ हटाने से राहत मिली, लेकिन यून का कदम लोकतंत्र के लिए खतरा था। ब्रिटेन और जर्मनी ने भी सतर्क नजर रखने की बात कही। चीन और रूस ने स्थिरता बनाए रखने की अपील की। दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ का इतिहास काला रहा है। 1979 में तानाशाही के दौर में इसे लागू किया गया था। 1987 में लोकतंत्र बहाल होने के बाद से ऐसा पहली बार हुआ। दक्षिण कोरिया के कानून के मुताबिक संसद मार्शल लॉ को खारिज कर सकती है। ऐसा होने पर सरकार को आदेश मानना पड़ता है। यह कानून सांसदों को गिरफ्तार करने से भी रोकता है। फिलहाल संकट टल गया है, लेकिन इसके राजनीतिक असर गहरे होंगे। यून की लोकप्रियता और कम हो सकती है। इस्तीफे की मांग तेज होगी। विपक्ष उनके खिलाफ कार्रवाई की योजना बना सकता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह घटना दक्षिण कोरिया की छवि पर धब्बा है, इसे आधुनिक और मजबूत लोकतंत्र माना जाता है, लेकिन यह कदम इसकी स्थिरता पर सवाल खड़े करता है। राष्ट्रपति यून का मार्शल लॉ लागू करना और फिर हटाना एक बड़ा राजनीतिक कदम था, इसे गलतफहमी और हताशा भरा माना जा रहा है। हालांकि, दक्षिण कोरिया के लोकतांत्रिक संस्थानों ने मजबूती दिखाई है।