संसद के दोनों सदनों के मॉनसून सत्र की शुरुआत हंगामेदार रही है। स्पीकर के चुनाव के दौरान भी सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच टकराव देखने को मिला। विपक्ष ने स्पीकर पद के लिए अपने उम्मीदवार के सुरेश को मैदान में उतारा था। विपक्षी गठबंधन में इस मुद्दे पर मतभेद के कारण लोकसभा में सत्तापक्ष के उम्मीदवार ओम बिरला को ध्वनि मत से निर्वाचित घोषित कर दिया गया। लेकिन अब ऐसी खबर है कि विपक्ष डिप्टी स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार देगा। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से सदस्यों ने अपने-अपने विचार रखे। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपने डेढ़ घंटे के भाषण में मोदी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जब प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सरकार का पक्ष रखने के लिए खड़े हुए उस वक्त विपक्षी दलों के सदस्य जोर-जोर से नारे लगाने लगे।
उसके बाद विपक्षी सदस्य अपना आसन छोड़कर लोकसभा के वेल में आ गए तथा लगातार नारे लगाते रहे। लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला के लगातार अनुरोध के बावजूद विपक्षी सदस्य नहीं रुके। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी विपक्षी सदस्यों को वेल में आने के लिए इशारा कर रहे थे। इस दौरान स्पीकर और राहुल गांधी के बीच तर्क-वितर्क भी हुआ। राज्यसभा में भी 3 जुलाई को विचित्र स्थिति पैदा हो गई। यहां भी जब प्रधानमंत्री ने बोलना शुरू किया उस वक्त विपक्षी सदस्य लगातार नारेबाजी एवं टोकाटोकी कर रहे थे। इस दौरान राज्यसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे अपना पक्ष रखने के लिए उंगली उठा रहे थे। लेकिन राज्यसभा के सभापति ने उनको अनुमति नहीं दी, क्योंकि संविधान के अनुसार जब सदन का नेता अपना पक्ष रख रहा हो उस वक्त किसी तीसरे पक्ष को बोलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
अंत में विपक्षी सदस्य सदन से बहिर्गमन कर गए। लोकसभा में प्रधानमंत्री ने विपक्ष द्वारा किये जा रहे शोर-शराबे के बीच लगभग सवा दो घंटे अपने विचार रखे। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां की जनसंख्या 1 अरब 40 करोड़ है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। भारत के लोकतंत्र का उदाहरण दुनिया में दिया जाता है। सभी राजनीतिक दलों की यह जिम्मेवारी है कि वह भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अपनी-अपनी तरफ से काम करे। भारतीय संसद में पिछले कुछ वर्षों से आपराधिक एवं भ्रष्ट प्रवृत्ति वाले लोग ज्यादा संख्या में चुनकर पहुंच रहे हैं। राजनेताओं द्वारा उपयोग की भाषा का स्तर लगातार गिर रहा है।
लोकसभा चुनाव के दौरान नेताओं ने जिस तरह एक-दूसरे पर स्तरहीन आरोप लगाए उससे पता चलता है कि उनकी सोच में कितनी गिरावट आई है। देश के राजनीतिक दलों की यह जिम्मेवारी है कि वह देश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अपनी-अपनी पार्टी की तरफ से घटिया उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारे। यह समस्या केवल एक पार्टी तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी राजनीतिक पार्टियां जिताऊ उम्मीदवार खोजने के लिए अपने सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा रही हैं।