लोकसभा चुनाव के बाद नवनिर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण तथा केंद्रीय बजट पेश करने के लिए संसद का मानसून सत्र 24 जून से बुलाया गया है।  26 जून को लोकसभा के नए स्पीकर का चुनाव होगा। 27 जून को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगी। लोकसभा सत्र के प्रथम दिन 24 जून को सर्वप्रथम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ली। उसके बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह सहित मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों ने बारी-बारी से शपथ ली। असम के डिब्रूगढ़ के सांसद व केंद्रीय मंत्री सर्वानद सोनोवाल तथा राज्यसभा सांसद एवं विदेश राज्यमंत्री पवित्र मार्घेरिटा ने असमिया भाषा में शपथ ली। धुबड़ी से कांग्रेस के सांसद रकिबुल हुसैन ने असमिया में जबकि शोणितपुर (दरंग) के सांसद दिलीप सैकिया ने संस्कृृत में शपथ ली। आधे संसद सदस्यों का शपथ ग्रहण समारोह संपन्न हो गया जबकि आधे सदस्य कल यानी 25 जून को शपथ लेंगे। शपथ लेने के बाद एक बार फिर लोकसभा में संविधान को बचाने तथा तोड़ने का मुद्दा प्रमुखता से उठा। प्रधानमंत्री ने शपथ लेने के बाद तुरंत बाद अपने संबोधन में कहा कि देश के 65 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा लेकर लोकतंत्र में अपनी आस्था व्यक्त की। कांग्रेस पर हमला करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज से 50 वर्ष पहले 26 जून 1975 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल घोषित कर लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी थी। उस दौरान तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान की परवाह किए बिना आंदोलन करने वाले नेताओं को जेल में डाल दिया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार सर्वसम्मति से निर्णय कर देश के 140 करोड़ लोगों के हितों का ध्यान रखेगी। देश को वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाना है। दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिार्जुन खड़गे एवं वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि यह सरकार संविधान को तोड़ने में लगी हुई है। कांग्रेस इस सरकार को हिन्दुस्तान के संविधान के साथ खिलवाड़ नहीं करने देगी। शपथ के बाद कांग्रेस के नेताओं ने संविधान के बहाने मोदी सरकार को निशाने पर लिया। मालूम हो कि लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी सरकार ने 400 पार का नारा दिया था। विपक्षी दलों ने 400 पार के नारे को संविधान को बंदलने तथा आरक्षण समाप्त करने से जोड़ दिया था। कांग्रेस तथा दूसरे विपक्ष दल के नेताओं ने अपने चुनावी रैली के दौरान मतदाताओं को यह समझाने का प्रयास किया था कि यह सरकार संविधान बदलकर पिछड़ों एवं दलितों का आरक्षण खत्म करना चाहती है। भाजपा द्वारा बार-बार स्पष्टीकरण दिए जाने के बावजूद  पिछड़े एवं दलित मतदाताओं में जो शंका पैदा हो गई थी, उसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। संसद का वर्तमान सत्र हंगामाखेज होने की पूरी उम्मीद है। कांग्रेस तथा दूसरी विपक्षी पार्टियां परीक्षा में हो रही अनियमितता, बढ़ती महंगाई एवं बेरोजगारी तथा संविधान को बचाने के मुद्दे पर सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं देगी। पिछले लोकसभा के मुकाबले इस बार विपक्ष की शक्ति काफी बढ़ी है। आगे महाराष्ट्र, हरियाणा तथा बिहार जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है। इससे पहले पूरे देश में उप चुनाव होने हैं। ऐसी स्थिति में विपक्ष लोकसभा चुनाव के वक्त मिले जन समर्थक को आगे भी अपनी ओर खींचने के लिए संसद के वर्तमान सत्र का पूरी तरह उपयोग करेगी। पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गठबंधन की सरकार चलानी पड़ेगी। हालांकि मंत्रिमंडल के गठन के दौरान ऐसा नहीं लगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहयोगी दलों के दबाव में हैं। कुल मिलाकर संसद के वर्तमान सत्र में विपक्ष सरकार के समक्ष लगातार चुनौती प्रस्तुत करने का प्रयास करेगा।