प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मंत्रिमंडिल का गठन हो चुका है। मोदी सरकार ने अपने 125 दिन के एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया है। सभी मंत्री अपने-अपने कार्यभार ग्रहण करने के साथ ही एक्शन में आ गए हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जो झटका लगा है, उसको देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनहित से जुड़े फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। किसानों को दिए जाने वाले सम्मान निधि योजना एवं गरीबों को पक्के मकान उपलब्ध करवाने जैसे फैसले लिए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वर्तमान कार्यकाल काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला है। गरीबी एवं बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा है, जिसे लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों द्वारा उठाया गया है। मोदी सरकार को इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। किसान आंदोलन के कारण भी भाजपा को लोकसभा चुनाव में काफी नुकसान हुआ है। इस बार मोदी सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाएगी। शिवराज सिंह चौहान जैसे व्यक्ति को इस बार कृृषि मंत्री बनाया गया है। चौहान मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर रहने के दौरान किसानों के लिए बहुत कुछ किए थे। भाजपा के लिए इस बार हिंदुत्व के मुद्दे को जीवित रखने के साथ-साथ दलितों एवं पिछड़े को जोड़ना होगा। लोकसभा चुनाव में भाजपा का हिंदुत्व का मुद्दा नहीं चला क्योंकि बड़ी संख्या में पिछड़े एवं दलित समाज के लोगों ने विपक्ष के पक्ष में मतदान किया। महंगाई को नियंत्रण करना भी मोदी सरकार के सामने एक बड़ा मुद्दा होगा। बढ़ती महंगाई के कारण आम जनता त्रस्त है। खाद्य सामग्री की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे कम आय के लोगों का घर चलाना मुश्किल हो रहा है। अगर भाजपा को अपनी स्थिति मजबूत करनी है तो उसे दक्षिण भारत के राज्यों पर ध्यान देना होगा। दक्षिण के राज्यों में लोकसभा की कुल 130 सीटें हैं। भाजपा को भी इस बार पिछले चुनाव की तरह की सफलता मिली है। अब भाजपा को कर्नाटक के साथ-साथ आंध्र प्रदेश, तेलांगना एवं केरल एवं तमिलनाडु पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा। आंध्र प्रदेश में भाजपा ने इस बार तेलुगू देशम पार्टी एवं जनसेना पार्टी के साथ समझौता कर अच्छा काम किया है। तमिलनाडु में भाजपा कोई सीट नहीं मिली है, किन्तु उसके मत प्रतिशत में वृद्धि हुई है। भाजपा ने इस बार प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडिल में शामिल कर यह संदेश दे दिया है कि उसका ध्यान तमिलनाडु पर है। भाजपा के लिए इस बार सबसे बड़ा झटका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तरफ से मिला है। इस चुनाव में आरएसएस उदासीन रहा है। इसका कारण यह है कि भाजपा और आरएसएस के बीच दूरी बढ़ने से समन्वय का अभाव रहा है। खासकर उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों के चयन के मामले में भी आरएसएस की सलाह को भाजपा नेतृत्व ने नजरअंदाज कर दिया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने बयान में कहा था कि भाजपा अब मजबूत हो गई है, अतः उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं होगी। उसके बाद से ही आरएसएस लोकसभा चुनाव में निष्कि्रय हो गया। भाजपा द्वारा लिए जा रहे एकतरफा निर्णय तथा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के द्वारा दिए गए बयान के बाद खटास और बढ़ता गया। हाल ही में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिए गए बयान से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। मोहन भागवत ने अपने बयान में मणिपुर की घटना के साथ-साथ दूसरे जनकल्याण के मुद्दे को उठाते हुए सरकार को आगाह किया था। इस वर्ष महाराष्ट्र, हरियाणा एवं झारखंड में चुनाव होने वाले हैं। उसके बाद बिहार एवं दिल्ली में विधानसभा चुनाव होगा। अगर भाजपा और आरएसएस के बीच बढ़ी दुरियां कम नहीं हुई तो भाजपा के लिए आगे भी परेशानी हो सकती है। सहयोगी दलों के सहारे चल रही भाजपा को इस बार समन्वय रखने के साथ-साथ अपने कोर मुद्दे को पूरा करने के लिए काम करना होगा। देखना है कि मोदी सरकार सामने आ रही चुनौती का मुकाबला किस तरह करती है।