राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 5 जून को नई दिल्ली में आयोजित बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुन लिया। राजग के 16 पार्टियों के 21 नेता उस बैठक में शामिल हुए थे, जिन्होंने लिखित रूप से मोदी को अपना समर्थन दिया है। इसके साथ ही मोदी के तीसरी बीर प्रधानमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया। लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत से 32 सीटें कम मिली हैं। उसके बाद बहुमत के लिए भाजपा को अपने सहयोगी दलों के समर्थन की जरूरत थी। इससे पहले वर्ष 2014 तथा वर्ष 2019 में भाजपा को अपने दम पर बहुमत मिल गया था।  हालांकि औपचारिक रूप से नेता का चुनाव सात जून को राजग की बैठक में किया जाएगा। तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए मोदी को अपने सहयोगी दलों से लिखित समर्थन की जरूरत थी क्योंकि तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) तथा जनता दल-यू पर विपक्षी गठबंधन की भी नजर थी। विपक्षी गठबंधन इंडिया के नेता तेदेपा के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू तथा जदयू के प्रमुख नीतीश कुमार पर नजर गड़ाए हुए थे। उनका मानना था कि अगर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को विपक्षी खेमे में खींच लिया जाए तो भाजपा का सरकार बनना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन चंद्र बाबू नायडू और नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन कर फिलहाल इन अटकलों पर विराम लगा दिया है। अब भाजपा ने मंत्रिमंडल की रूप-रेखा तय करने के लिए अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तथा गृहमंत्री अमित शाह को अधिकृृत किया है।  तेदेपा एवं जदयू ने भी भाजपा के सामने अपनी कुछ मांगें रखी हैं, जिस पर विचार चल रहा है। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया है। राष्ट्रपति ने अगली व्यवस्था तक मोदी को प्रधानमंत्री पद पर काम करते रहने को कहा है। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी भी पिछले चुनाव के मुकाबले मजबूती से आगे आई है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटें मिली थी, जबकि इस बार यह संख्या बढ़कर 99 हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बार सरकार चलाने के लिए समय-समय पर अपने सहयोगी दलों की सलाह लेते रहना होगा। पिछले दस वर्षों का शासन भाजपा अपने हिसाब से कर रही थी। सहयोगी दलों की वैशाखी के कारण भाजपा को समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे वादे को पूरा करना थोड़ा मुश्किल होगा। इसके लिए तेदेपा एवं जदयू को सहमत करने में कठिनाई हो सकती है। पहले के शासन में विपक्ष उतनी मजबूत स्थिति में  नहीं था जितना इस बार है।  खासकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी 37 सीट लेकर काफी मजबूत स्थिति में आ गई है। पश्चिम बंगाल में ममता के नेतृत्व वाले तृणमूल कांग्रेस 29 सीट लेकर 2019 के मुकाबले अपनी स्थिति मजबूत कर ली है।  पिछले लोकसभा चुनाव में पश्चिम ंबगाल में भाजपा को 18 तथा टीएमसी को 22 सीटें मिली थी। इस बार भाजपा की सीटों की संख्या घटकर 12 हो गई है। ऐसी उम्मीद है कि 9 जून को शपथ ग्रहण समारोह होगा। भाजपा तथा उसके सहयोगी दल शपथ ग्रहण से पहले अपनी स्थिति स्पष्ट कर लेना चाहते हैं। सहयोगी दलों की मांग के सामने भाजपा झुकने को तैयार नहीं लग रही है। ऐसी खबर है कि भाजपा गृह, वित्त, रक्षा तथा विदेश जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय अपने पास रखेगी। इसके अलावा लोकसभा में स्पीकर का पद भी भाजपा में पाले में रखना चाहती है। बाकी के मंत्रालय एवं मंत्रियों की संख्या को लेकर बातचीत चल रही है। विपक्षी दलों के सामने कोई ज्यादा विकल्प नहीं है। इसी को देखते हुए तेदेपा एवं जदयू इंडिया गठबंधन के झांसे में आना नहीं चाहती है। सहयोगी दलों के सहारे सरकार चलाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समय-समय पर जरूर कठिनाई पैदा होगी। घरेलू मोर्चे पर भाजपा की नीतियों में कुछ बदलाव करना पड़ सकता है। सहयोगी दल अपने वोट बैंक के हित को देखते हुए समय-समय पर भाजपा पर दबाव डालने की कोशिश करेंगे। अब देखना है कि बदली परिस्थिति में मोदी मंत्रिमंडल का आकार कैसा होगा? इस चुनाव में मोदी सरकार के कई बड़े मंत्री चुनाव हार चुके हैं। ऐसी स्थिति में इस बार कुछ नए चेहरों को मौका मिल सकता है।