लोकसभा चुनाव का परिणाम भाजपा को करारा झटका दिया है। विभिन्न टीवी चैनलों द्वारा कराए गए एग्जिट पोल्स में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को भारी बहुमत मिलने का दावा किया गया था। अधिकांश सर्वेक्षण में भाजपा गठबंधन को 350 से लेकर 400 के बीच का आंकड़ा दिखाया गया था। लेकिन 4 जून को हुई मतगणना  के बाद सारी तस्वीर ही बदल गई। अब भाजपा गठबंधन को 300 पार करना भी मुश्किल हो गया है। खुद भाजपा को ही यह विश्वास नहीं हो रहा होगा कि यह कैसे हो गया। खासकर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने भाजपा को निराश किया है। उत्तर प्रदेश में जहां भाजपा 65 से 70 सीट मिलने की उम्मीद कर रही थी वहीं उसे आधी संख्या पर ही संतोष करना पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश में राम मंदिर तथा योगी फैक्टर भाजपा के लिए सहायक नहीं बन सका। राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद जिस तरह उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में धार्मिक  जागरूकता पैदा हुई थी उससे लग रहा था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ा इनाम मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। बहुजन समाज पार्टी की करारी हार ने भी विपक्षी गठबंधन इंडी को मजबूत किया है। ऐसा लगता है कि बहुजन समाज पार्टी के कोर वोटर समाजवादी पार्टी की तरफ खिसक गए हैं। इसका लाभ समाजवादी पार्टी को मिला है। पिछले तीन दशक के बाद समाजवादी पार्टी को इतनी सीटें मिली हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल से भी भाजपा को काफी उम्मीद थी। पार्टी को लग रहा था कि इस बार उसे पश्चिम बंगाल से कम से कम 25 सीटें  जरूर मिलेंगी किंतु ऐसा नहीं हो पाया। भाजपा को पश्चिम बंगाल में केवल 12 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भाजपा के दूसरे नेता लगातार पश्चिम बंगाल पर फोकस कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने कई जनसभाएं एवं रोडशो किया था। लेकिन वे अपनी मेहनत को वोट के रूप में तब्दील नहीं कर पाए। इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यंमत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने राज्य के सभी जिलों में जनसभा आयोजित कर भाजपा के लिए वोट मांगा था। ऐसा लग रहा था जैसे मोदी के साथ-साथ योगी का जादू भी चलेगा। बिहार में भाजपा गठबंधन को अनुपात के अनुसार ही सफलता मिली है। इस बार जनता दलयू की भाजपा पर बढ़त मिली है। महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना ने विभाजन करवाकर एकनाथ शिंदे वाली नेतृत्वी वाली पार्टी को अपने गठबंधन में शामिल किया। उसके बाद अजीत पवार के नेतृत्व में एनसीपी का एक घड़ा भाजपा गठबंधन में शामिल हो गया। लेकिन इसका लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में नहीं मिला। शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी, उद्धव ठाकरे की नेतृत्व वाली शिवसेना तथा कांग्रेस तीनों ने मिलकर महाराष्ट्र में भाजपा को सीमित दायरे में कर दिया। वर्ष 2019 के मुकाबले महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन को कम सीटें मिली है। दिल्ली, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भाजपा को भारी सफलता मिली है। इन तीनों जगहों में भाजपा 2019 के इतिहास को दोहराया रही है लेकिन राजस्थान में पार्टी को वर्ष 2019 के मुकाबले कम सीटें मिली है। ओडिसा एवं तेलंगाना को भाजपा को लाभ हुआ है। ओडिसा में तो भाजपा ने सत्तारुढ़ बीजू जनता दल को शिकस्त देकर विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल कर ली है। लोकसभा चुनाव में भी ओडिसा में भाजपा को भारी सफलता मिली है। आंध्र प्रदेश में भाजपा ने तेलुगु देशम पार्टी के साथ चुनावी तालेमेल किया था। यहां भी भाजपा गठबंधन को विधानसभा तथा लोकसभा दोनों जगहों पर भारी बहुमत मिला है। इसी तरह तेलंगाना में भी भाजपा अपनी संख्या बढ़ाने में कामयाब रही है। तमिलनाडु में भाजपा को इस बार खाता खोलने की उम्मीद थी किंतु ऐसा नहीं हो पाया। प्रधानंमत्री ने इस बार दक्षिण के राज्यों पर काफी फोकस किया था। तमिलनाडु में भाजपा प्रमुख ने काफी मेहनत की थी। भाजपा का वोट प्रतिशत निश्चित रूप से बढ़ा है किंतु सीट के रूप में तब्दील नहीं हो पाया। केरल में भी भाजपा का खाता खुलना संभव नहीं है। एनडीए गठबंधन को सत्ता के लिए बहुमत मिल रही है। किंतु भाजपा को अब अपने सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा। खासकर तेलुगु देशम पार्टी एवं जनता दल के सहयोग से ही सरकार बन पाएगी। ऐसी स्थिति में शायद मोदी का पहले जैसा रुतबा नहीं रह पाए।