कलकत्ता हाई कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के वक्त पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को करारा झटका दिया है। हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संचालित और सहायताप्राप्त विद्यालयों में वर्ष 2016 में हुए राज्य स्तरीय चयन परीक्षा (एसएलएसपी) की भर्ती प्रक्रिया के तहत नियुक्त किये गए सभी 24,640 लोगों की नौकरी को अवैध और अमान्य घोषित कर दिया है। न्यायमूर्ति देबांग्शुक बसात और न्यायमूर्ति मोहम्मद शब्बाद राशिदी की खंडपीठ ने नियुक्तियों को रद्द करने के साथ-साथ नियुक्ति प्रक्रिया के संबंध में और जांच कराने तथा तीन महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने पश्चिम बंगाल विद्यालय सेवा आयोग को लोकसभा के नतीजों की घोषणा की तारीख से एक पखवाड़े के अंदर नई नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है। मालूम हो कि इस मामले की जांच सीबीआई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने इसकी सुनवाई के लिए खंडपीठ का गठन किया था। खंडपीठ ने इस मामले में 350 याचिकाओं एवं अपीलों पर 20 मार्च तक सुनवाई पूरा कर लिया था। 282 पन्नों की रिपोर्ट के बाद पश्चिम बंगाल में सियासी सरगर्मी होना स्वाभाविक है।
जहां ममता बनर्जी ने कोर्ट के इस फैसले को अवैध बता दिया है, वहीं भाजपा का कहना है कि कोर्ट के फैसले से ममता सरकार का भ्रष्टाचार उजागर हो गया है। भाजपा ने कहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार के गैर-जिम्मेदाराना फैसले से हजारों की संख्या में युवाओं का जीवन बर्बाद हो गया है। भाजपा ने तो ममता के इस्तीफे तक की मांग कर दी है। अपनी साख बचाने के लिए ममता सरकार हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार इस मामले की जांच पूरी कर उच्च न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी थी।
शिक्षक नियुक्ति घोटाला मामले में पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी एवं विद्यालय सेवा आयोग में उस वक्त विभिन्न पदों पर नियुक्त अधिकारियों को गिरफ्तार किया था। पूछताछ के दौरान काफी खुलासे हुए थे। कोर्ट ने खाली उत्तर-पुस्तिका जमा करने के बाद नियुक्ति पाने वाले सभी व्यक्तियों से पूछताछ करने का निर्देश दिया है। लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के दौरान कोर्ट के इस फैसले से भाजपा को ममता सरकार पर हमला करने के लिए एक बड़ा हथियार मिल गया है।
पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में वहां की महिलाओं के साथ टीएमसी नेता शेख शाहजहां की काली करतूत के बाद भाजपा पहले से ही चुनावी रैली के दौरान इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाती रही है। वहां की कानून-व्यवस्था पर भी पहले से ही प्रश्नचिन्ह लग रहा था। रामनवमी के दिन पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बरहामपुर क्षेत्र में उपद्रवियों द्वारा की गई हिंंसात्मक गतिविधियों को हाई कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए कहा है कि वर्तमान स्थिति में वहां वोट कराने से कोई मतलब नहीं है। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार एवं चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कोर्ट के दो फैसलों ने ममता बनर्जी को बैकफुट पर ला दिया है। अब देखना है कि ममता बनर्जी इस मामले से किस तरह निपटती है।