हिमाचल प्रदेश भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपनी सुंदरता और बर्फ से ढकें पहाड़ों के लिए तो प्रसिद्ध है साथ ही यह अपने मेलों और रंग-बिरगें उत्सवों के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से करीब 120 किलोमीटर दूर रामपुर बुशहरा में भारत व तिब्बत के बीच व्यापार का प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय मेले। जिसे प्रत्येक वर्ष नवंबर माह की 11 तारीख को आयोजित किया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस मेले में देश-विदेश के लोग व्यापार करने एवं खरीदारी करने के लिए यहां आते हैं। यह मेला भारतीय संस्कृति का मेला है। अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला सैकड़ों वर्ष पुराना है। यह मेला भारत व चीन के बीच आपसी व्यापार के लिए जाना जाता है। इस मेले में देश के आधुनिक उत्पादों की भी बिक्री होती है तथा लोकल पारंपरिक उत्पाद भी बेचे जाते हैं। यह केवल व्यापारिक मेला ही नहीं, बल्कि इस मेले में हिमाचल प्रदेश की पुरानी संस्कृति की विशेष झलक दिखती है।
आज भी यहां पर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की खरीद फरोख्त, ऊनी वस्त्रों, ड्राई फ्रूट्स, जड़ी-बूटियों की खरीद प्रमुख है। आज यह मेला कई ऊंचाईयां छू रहा है। मेले में आज भी पारंपरिक सांस्कृतिक की झलक देने को मिलती है। लवी शब्द लोई का एक अपभ्रंश है। लोई ऊनी कपड़े को कहा जाता है जिसे पहाड़ के लोग ठंड से बचने के लिए पहनते एवं ओढ़ते हैं। लोई का पहाड़ों में खूब प्रचलन रहा है क्योंकि यहां अमूमन ठंड का ही मौसम रहता है। इसलिए इस मेले की महत्वता और ज्यादा बढ़ जाती है। यह मेला हिमाचल प्रदेश की पहचान का मेला है। अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला हथकरघा व्यवसाय को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं। लवी मेले के कारण ही ग्रामीण दस्तकारों की साल भर की रोजी चल रही है। ग्रामीण दूर दराज क्षेत्र के बुनकरों का अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला आर्थिक और रोजगार का प्रमुख साधन बना हैं।