पूर्वांचल प्रहरी डेस्क संवाददाता गुवाहाटी : जहां राज्य की भाजपा गठबंधन सरकार असम को देश के पांच विकसित राज्यों में से एक बनाने के लिए दिन-रात काम कर रही है, वहीं असम में गरीबी दर चिंताजनक रूप से दोगुनी हो गई है। आश्चर्यजनक रूप से असम में गरीबी दर 2011 की जनगणना में 31.98 प्रतिशत से बढ़कर अब लगभग 65 प्रतिशत हो गई है। इसका मतलब यह है कि असम में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 2021 की जनगणना दर की तुलना में 2024 में दोगुनी से अधिक हो गई है। असम और असमिया के लिए एक भयानक तथ्य सरकारी दस्तावेजों में ही प्रकाशित हुआ है। हालांकि 2021 के बाद जनगणना नहीं हुई है, फिर भी नीति आयोग के अनुसार असम की कुल जनसंख्या लगभग 3 करोड़ 60 लाख होने का अनुमान है। हालांकि, 3 करोड़ 60 लाख की इस आबादी के मुकाबले असम में गरीबी रेखा से नीचे के 2,31,41,341 लोगों को अब प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त चावल मिल रहा है।
खाद्य, सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामले विभाग के अनुसार राज्य में 66,26,421 गरीब परिवारों को अंत्योदय अन्न योजना के लाभार्थियों और प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लाभार्थियों के रूप में पहचाना गया है। इसका मतलब है खुद राज्य सरकार ने इन 2.31 करोड़ लोगों की पहचान गरीबी रेखा से नीचे के रूप में की है। यदि सरकार द्वारा पहचाने गए 2.31 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, तो असम की कुल वर्तमान आबादी का 65 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे रह रही है। इसका मतलब यह है कि जहां 2011 की जनगणना के अनुसार असम में 1 करोड़ 27 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे थे वहीं वर्तमान में आधिकारिक तौर पर 2.31 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। इसका मतलब है कि असम की कुल आबादी में से केवल 1 करोड़ 30 लाख लोग ही मध्यम और अमीर वर्ग में सूचीबद्ध हैं। लेकिन इसके बावजूद भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार असम को गरीबी से दूर ले जाने का दावा करते हुए प्रचार कर रही है।
गौरतलब है कि असम सरकार द्वारा राज्य के 2.31 करोड़ लोगों को गरीब मानने से नीति आयोग का सर्वेक्षण भी गलत साबित हुआ है। इस साल की शुरुआत में नीति आयोग ने दावा किया था कि असम में गरीबी दर पिछले साल घटकर 11.28 प्रतिशत हो गई है। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि वित्तीय वर्ष 2013-14 में असम में गरीबी दर 29.17 प्रतिशत थी लेकिन 2022-23 में यह दर घटकर 11.28 प्रतिशत हो गई। नीति आयोग ने दावा किया था कि 9 साल की अवधि के दौरान 17.89 प्रतिशत आबादी गरीबी से बाहर आ गई है। लेकिन हकीकत में आज असम की 65 प्रतिशत जनता को मुफ्त चावल के लिए सरकार के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है। अगर असम सरकार का मानना है कि असम की कुल आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे नहीं है, तो वह सरकारी खजाने से अन्न सुरक्षा योजना के तहत फर्जी लाभार्थियों को मुफ्त चावल क्यों मुहैया करा रही है? अब इस रहस्य को कौन सुलझाएगा यह फिलहाल करोड़ों रुपए का सवाल है।