आपने अक्सर सुना और कई किताबों में पढ़ा भी होगा कि पहला हवाई जहाज अमरीका के राइट ब्रदर्स ने बनाया था। और इसके बाद ही मनुष्य हवा में उड़ पाया था आज पूरी दुनिया के लिए राइट ब्रदर्स ही हवाई जहाज के असली खोजकर्ता है। सन् 1903 में अमरीका के कैरोलिना समुद्र तट पर इन दोनों भाइयों ने मिलकर पहला हवाई जहाज उड़ाया था। जो कि 120 फीट ऊंचाई पर जाकर 11 सेकंड बाद जमीन पर जा गिरा। इस प्रयोग को दुनिया में सबसे बड़ी खोज माना जाता है और राइट ब्रदर्स को इसक आविष्कारक।   इसी घटना के 8 साल पहले दुनिया के दूसरे छोर पर बसे एक गुलाम देश का व्यक्ति जो उडऩे के लिए तैयार था जी हां  मुंबई के समुद्र तट पर दूर-दूर से लोग इस घटना को देखने के लिए आए थे। और इन सब के बीच आसमान छूने के लिए तैयार थे एक भारतीय, जिनका नाम शिवकर बापूजी तलपड़े था। जिन्हे आज हवाई जहाज का असली जनक माना जाता है।  1864 में मुंबई में जन्मे शिवकर बापूजी तलपड़े आर्य समाज के अनुयायी थे। वे शुरुआत से ही पढ़ाई में तेज थे। इसके अलावा भारतीय संस्कृृति की पौराणिक ग्रंथों में उनकी विशेष रुचि थी और इन्हीं पौराणिक कथाओं में उन्होंने विमान का जिक्र सुना था। उन्होंने सुना था कि कैसे भगवान के पास एक ऐसा वाहन हुआ करता था जो उन्हें आकाश में उडऩे में सहायता करता था।

यूं तो कई सारे भारतीयों ने इसके बारे में पढ़ा था किंतु शिवकर बापूजी ने उस समय इस पर अलग ढंग से गौर किया उन्होंने हजारों साल पहले भारद्वाज ऋषि द्वारा लिखी गई विमानिका शास्त्र किताब को पढ़ा, और उनकी सोच ही बदल गई। भारत में हजारों साल पहले विमानों का उल्लेख मिलता है रामायण महाभारत के साथ-साथ कई अन्य वैदिक ग्रंथों में भी विमानों के बारे में उल्लेख है। बाकी लोगों के लिए यह बातें केवल एक कल्पना थी लेकिन शिवकर बापूजी ने इन्हें सच समझा और वे लग गए विमान बनाने में। विमान बनाने में सबसे बड़ी चुनौती जो थी वह थी कि जरूरी सामान कहां से लाया जाए। इस परेशानी के पीछे दो कारण थे पहला कारण था कि उनके पास पैसों की काफी कमी थी, सामान बहुत सारा लाना था। और दूसरा कारण था कि यह सब अंग्रेजों की नजर से बचाकर करना था। उन्होंने बांस की लकडिय़ों का इस्तेमाल कर विमान बनाना शुरू किया। ईंधन के तौर पर इसमें तरल पारा इस्तेमाल किया गया पारा वजन में हल्का था इसलिए विमान को उड़ाने में परेशानी नहीं होती थी। अपनी मेहनत और पैसा लगाने के बाद उन्होंने विमान को उसका रूप दे ही दिया। उन्होंने इस विमान का नाम मरूत्सखा रखा।

विमान पूरी तरह बनकर तैयार हो चुका था और अब बारी थी उसे उड़ाने की।  साल 1895 की एक सुबह शिवकर बापूजी अपना विमान लेकर मुंबई की चौपाटी पर पहुंच गए। उनके इस आविष्कार को देखने के लिए वहां ना कोई पत्रकार और ना ही कोई वैज्ञानिक मौजूद थे। वहां थे तो बस बापूजी के कुछ अपने जिन्हें उन पर भरोसा था। उन्होंने अपना विमान उड़ान के लिए तैयार किया मन ही मन सबने उनकी कामयाबी के लिए दुआ की। विमान शुरू हुआ और देखते-देखते वह जमीन से ऊपर उठने लगा। यह देखकर सब हैरान हो गए लोगों ने पहली बार ऐसी मशीन देखी थी कहते कि यह विमान करीब 1500 फिट कि ऊंचाई तक उड़ा। लेकिन इसके बाद वह नीचे आ गिरा विमान को नीचे गिरा देख सब निराश हो गए।  शिवकर बापूजी की कोशिश कामयाब तो थी पर पूरी तरह नहीं वह समझ गए थे कि अगली बार वे इसमें कामयाब हो जाएंगे। लेकिन दोबारा काम शुरू करने के लिए उनके पास बिल्कुल भी पैसा नहीं। उन्होंने कई व्यापारियों से मदद मांगी लेकिन सबने मना कर दिया कहते हैं कि उन्होंने उस समय बड़ौदा के राजा से भी मदद मांगी लेकिन उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए।