पर्यावरण को बचाने को लेकर मारवाड़ के लोगों ने सदियों पूर्व ही पर्यावरण का महत्व समझ लिया था। इसका उदाहरण है जोधपुर का खेजली गांव। इस गांव के लोगों ने 232 साल पूर्व तत्कालीन महाराजा के कारिन्दों (कर्मचारी) द्वारा हरे पेड़ों को काटने का विरोध किया था। एक महिला अमृता देवी के नेतृत्व में बारी-बारी से 363 लोग पेड़ों को पकड़ कर खड़े हो गए और महाराजा के कारिन्दों ने सभी को काट दिया। इस तरह पेड़ों की रक्षा करते हुए 363 लोग शहीद हो गए। पूरी दुनिया में पर्यावरण को बचाने के एक साथ इतनी संख्या में अपनी जान कुर्बान करने की मिसाल और कहीं नहीं मिलती। अमृता देवी ने संभाली थी विरोध की कमान : वर्ष 1881 में जोधपुर (मारवाड़) के महाराजा अभयसिंह ने मेहरानगढ़ में फूल महल का निर्माण शुरू कराया। इसके लिए लकडिय़ों की आवश्यकता पड़ी। महाराजा के कारिन्दों ने खेजड़ली गांव में एक साथ बड़ी संख्या में पेड़ देखे तो काटने पहुंच गए। गांव की अमृता देवी विश्नोई ने इसका विरोध किया। विरोध को अनसुना करने पर अमृता देवी पेड़ के चारों तरफ हाथों से घेरा बना कर खड़ी हो गई।

राजा के कारिन्दों ने तलवार से उसे मार दिया। इसके बाद बारी-बारी से उसकी तीन पुत्रियों ने पेड़ को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया। पेड़ बचाने के लिए अमृता देवी के शहीद होने का समाचार आसपास के गांवों में फैला तो बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए। आसपास के 60 गांवों के 211 परिवारों के 294 पुरुष, 65 महिलाएं विरोध करने गांव पहुंच गईं। ये सभी लोग पेड़ों को पकड़ कर खड़े हो गए। राजा के कारिन्दों ने बारी-बारी से सभी को मौत के घाट उतार दिया। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की जानकारी महाराजा तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत सभी को वापस लौटने का आदेश दिया। अब नहीं काटा जा सकता खेजलड़ी को :इसके बाद महाराजा ने लिखित में आदेश जारी किया कि मारवाड़ में कभी खेजड़ी के पेड़ को नहीं काटा जाएगा। इस आदेश की आज तक पालन होती आई है।

तब से लेकर आज तक भादवा सुदी दशम को बलिदान दिवस के रुप में खेजड़ली गांव में मेला लगता है। यहां इन शहीदों का एक स्मारक व वन क्षेत्र विकसित किया हुआ है। इस मेले में हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और बलिदानियों को नमन करते हैं। खेजड़ी का महत्व : रेगिस्तान के कल्पवृक्ष खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। यह मूलत: रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। अंग्रेजी में शमी वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया के नाम से जाना जाता है। रेगिस्तान में भी हरियाली बरकरार रखने में इस पेड़ की अहम भूमिका रही है। इस पेड़ पर लगने वाले फल सांगरी का उपयोग सब्जी बनाने में होता है। इसकी पत्तियों से बकरियों को भोजन मिलता है। इस कारण ग्रामीण क्षेत्र में खेजड़ी आय का प्रमुख जरिया भी मानी जाती है।