भारत का राष्ट्रीय ध्वज देश की अखंडता और एकता का प्रतीक है। 22 जुलाई भारत के इतिहास में एक अहम दिन के तौर पर दर्ज है। यही वो दिन है जब तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर स्वीकारा गया था। 19वीं सदी में जब भारत पर ब्रिटिश शासन था तो उस समय कई तरह के झंडे देश के अलग-अलग राज्यों के शासकों की तरफ से प्रयोग किए जा रहे थे। मगर सन 1857 में जब स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तो इस बात पर विचार किया गया कि एक समान ध्वज देश की जरूरत है।  है। 

किसने बनाया था तिरंगा? आज हमारे देश में जो तिरंगा फहराया जाता है और जिसे देश का राष्ट्रध्वज माना जाता है उसे डिजाइन करने का सारा श्रेय आंध्रप्रदेश के ‘पिंगली वैंकैया’ को जाता है। उन्होंने ही तिरंगे का डिजाइन बनाया था। महात्मा गांधी से मिलने के बाद ही उन्होंने सोच लिया था कि अपने देश के लिए कुछ ऐसा करना है जिससे देश का मान बड़े। काकीनाडा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कांफ्रेंस चल रही थी। उसी समय पिंगली वेंकैया ने सुझाव दिया कि भारत का भी राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए। महात्मा गांधी को उनका यह प्रस्ताव बहुत पसंद आया। जिसके बाद महात्मा गांधी ने ये घोषणा की कि वैंकेया ही राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइनिंग करेंगे। सन् 1916 ई. में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे राष्ट्र ध्वज की कल्पना की जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बांध सके। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर ‘नेशनल फ्लैग मिशन’ का गठन किया। विजयवाड़ा की नेशनल कांग्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने एक तीन रंगों वाला झंडा पेश किया जिसके बीच में अशोक चक्र बना हुआ था। महात्मा गांधी को उनका यह झंडा बेहद पसंद आया। परिणामस्वरूप यह झंडा आगे चलकर आधिकारिक तौर पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना। कहते हैं कि एक राष्ट्रीय ध्वज को बनाने के लिए पिंगली वेंकैया ने करीब 30 झंडों की डिजाइन पर शोध किया। इसके बाद ही पिंगली ने राष्ट्रपिता के सामने अपने झंडे को पेश किया। 

ध्वज को कब अपनाया गया था? वर्तमान में जो तिरंगा फहराया जाता है उसे 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की एक बैठक के दौरान राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाया गया था।