कल्पना कीजिए कि आपको एक दुर्लभ और जानलेवा बीमारी है। जिसके उपचार या सर्जरी से आपकी जान जाने का भी उच्च जोखिम है या प्रक्रिया बहुत कष्टदायक है। ऐसे में कितना अचछा हो कि आप खुद को क्लोन कर सकें और उपचार से जुड़े सभी प्रयोग एवं सर्जरी उस पर हों। लेकिन अब ऐसा संभव है। स्विजरलैंड की संघीय प्रयोगशाला, और ‘मैटेरियल साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ के कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने डेटा साइंस की मदद से रोगियों के डिजिटल जुड़वा बनाने में सफलता हासिल की है। रोगी के इस क्लोन पर इलाज के औषधीय प्रभावों से जुड़े संवेदनशील उपचारों का परीक्षण किया जा सकता है, ताकि वास्तविक रोगी से पहले एक स्पष्ट नतीजा हाथ में हो। यानी वैज्ञानिकों ने इंसानों के लंबी आयु तक जीवित रहने की तकनीक की ओर एक और कदम बढ़ा दिया है।
डिजिटल ट्विन से होंगे दीर्घायुः ईएमपीए के अनुसार, शोधकर्ता डिजिटल रूप में किसी भी रोगी की हूबहू कॉपी यानी ‘डिजिटल ट्विन’ बनाकर डिजिटल रोगी पर दुर्लभ अनुवांशिक रोगों और कैंसर का संभावित निदान, उपचार और संभव हो तो इलाज करने के लिए उपयोग कर सकते हैं। एक डिजिटल ट्विन संभावित परिणामों की भविष्यवाणी कर सकता है। डिजिटल ट्विन एक बेहतरीन तकनीक है जो भविष्य में जीवन बचाने में मदद कर सकती है। वैज्ञानिक ‘ट्रायल-एंड-एरर प्रोसेस’ की मदद से इलाज के नए रास्ते खोजने का प्रयास कर सकेंगे।
ऐसे बनाते हैं डिजिटल जुड़वांः शोधकर्ता गणितीय सिद्धांतों को डिजिटल ट्विन के आधार के रूप में उपयोग करते हैं। इस विशिष्ट अध्ययन में रोगी की सटीक डिजिटल कॉपी बनाने के लिए उसकी आयु, जीवन शैली, लिंग, जातीयता, रक्त रक्त समूह, ऊंचाई, वजन और अन्य विस्तृत जानकारी जैसी सामान्य जानकारियों की जरुरत पड़ती है।
रोगी डिजिटल ट्विन प्रतिक्रिया दे सकते हैंः जो रोगी अपना डिजिटल जुड़वां विकसित किए हैं वे उपचारों पर अपनी प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं। इन प्रतियों को उनके अनुभव के आधार पर वास्तविक रोगियों के इनपुट के साथ अपडेट किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस नई तकनीक से चिकित्सा जगत में क्रांति आ सकती है।
साइड इफेक्ट्स की कर सकेंगे पहचानः आधुनिक चिकित्सा में पर्याप्त प्रगति के बावजूद सटीक खुराक अब भी एक चुनौती बनी हुई है। यही वजह है कि आज, इस तरह के दर्द निवारक दवाओं को त्वचा के नीचे एक पैच के माध्यम से लगाया जाता है ताकि शरीर धीरे-धीरे उस दवा को अपना सके और रोगियों को कोई खतरा भी न हो। बर्न विश्वविद्यालय में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की टीम ने इसलिए एक डिजिटल जुड़वां विकसित किया है ताकि, डॉक्टर संभावित उपचारों का परीक्षण कर यह जान सकें कि उनका डिजिटल शरीर उस दवा के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करेगा।