आज के समय में जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, तापीय प्रदूषण, विकरणीय प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, समुद्रीय प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, नगरीय प्रदूषण, प्रदूषित नदियां, जलवायु बदलाव, और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसी हालत में हमें इतिहास की चेतावनी ही पर्यावरण दिवस का संदेश देती है। चलिए जानते हैं कि पर्यावरण को पहुंचाए जा रहे नुकसान से दुनिया में क्या बदलाव आए हैं और इससे आगे चलकर क्या खतरे हो सकते हैं-
दुनिया के लिए बड़ा खतरा बनती जा रही ग्लोबल वार्मिंग बीते 100 सालों में कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है। अध्ययन में सामने आया है कि बीते 100 सालों के बीच चाहे जितने भी प्रयास क्यों न किए गए हों, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग में कोई कमी नहीं आई है। माना जा रहा है कि साल 2100 तक दुनिया के औसत तापमान में डेढ़ से छह डिग्री तक की वृद्धि होगी। जो इस वक्त 15 डिग्री सेंटीग्रेड है। बढ़ते तापमान के कारण हिमखंड पिघल रहे हैं, जिससे समुद्री जल स्तर बढ़ता जा रहा है। इससे बाढ़ का खतरा तो बढ़ ही रहा है साथ ही समुद्री पानी भी गर्म हो रहा है। जो समुद्री जीवों के लिए जानलेवा है। समुद्र के बढ़ते जल स्तर का खतरा केवल बाढ़ आने तक ही सीमित नहीं रहेगा। बल्कि इससे द्वीपों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। जल का स्तर बढ़ने से जमीन के लगातार डूबते जाने का खतरा होगा। इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में पानी का खारापन भी बढ़ जाएगा। जो तटीय भूमि, तटीय जैव संपदा और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ सकता है। अंटार्कटिका के तापमान में बीते 100 सालों में दो गुना अधिक वृद्धि हुई है। जिससे इसके बर्फीले क्षेत्रफल में कमी आई है। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉसफेरिक रिसर्च के एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग ऐसे ही जारी रही तो उत्तर ध्रुवीय समुद्र में साल 2040 तक बर्फ दिखनी ही बंद हो जाएगी। तापमान बढ़ने से कई तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं। इसका एक कारण ये भी है कि ऐसा होने से साफ जल की कमी होती जा रही है, तेजी से शुद्ध हवा खत्म हो रही है, लोगों को ताजा फल और सब्जियां भी नहीं मिल पा रही हैं। इससे पशु पक्षियों को पलायन करना बढ़ रहा है और इनमें से कई प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं, या फिर लुप्त होने की कगार पर हैं। बीते साल 210 विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2100 तक पूर्वोत्तर के ग्लेशियर समाप्त हो सकते हैं। इसमें कहा गया था कि इस सदी के अंत तक हिंदू कुश पर्वतों के एक तिहाई से भी अधिक ग्लेशियर पिघल जाएंगे।
क्या है कारण? द फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार आगजनी की 90 फीसदी घटनाएं मानवीय गलती के कारण होती हैं। इसका शिकार हर साल 30.7 लाख हेक्टेयर जंगल होते हैं। ये समस्या उत्तराखंड, हिमाचल और घाटी के जंगलों में राष्ट्रीय चिंता का विषय बनी हुई है।