अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। इनका बड़ा मकसद दूसरे ग्रहों पर जीवन का पता लगाना है। अगर आपने ध्यान दिया हो तो पाएंगे कि स्पेस भेजे जा रहे सैटेलाइट हमेशा सोने में लिपटे हुए दिखते हैं। कई बार इसपर चांदी की परत भी दिखाई देती है। इसके पीछे एक खास मकसद होता है। दरअसल सोने की परत सैटेलाइट को अंतरिक्ष में होने वाले बेहद खतरनाक रेडिएशन से बचाती है।

क्या है ये रेडिएशन और सोने की परत इससे कैसे बचाती हैः इसे समझने के लिए पहले स्पेस के बारे में समझना होगा। असल में स्पेस का अपना कोई तापमान नहीं है। ये न तो ठंडा है और न ही गर्म, बल्कि इसमें पाए जाने वाली तमाम चीजों, जैसे ग्रहों, स्टेरॉइड, सैटेलाइट से मिलकर इसका तापमान बनता है। इसी वजह से स्पेस में हर वक्त खतरनाक रेडिएशन निकलती रहती हैं। अगर इंसान इसके संपर्क में आए तो उसकी जान जाने में कुछ ही पल लगेंगे। यही बात सैटेलाइटों पर भी लागू होती है। सैटेलाइट भी रेडिएशन के प्रभाव में खत्म हो सकता है। इसी से बचाने के लिए उसपर गोल्ड की तरह दिखने वाली परत चढ़ाई जाती है। हर सैटेलाइट पर ये परत है जो उसका तापमान नियंत्रित करती है और रेडिएशन से बचाती है। सोने की इस परत को मल्टी लेयर इंसुलेशन कहते हैं। ये एक तरह का इंसुलेटर होता है जो ढेर सारी पतली-पतली परतों से बना होता है। ये अपने भीतर किसी बाहरी एनर्जी को आने नहीं देता। इससे स्पेस क्राफ्ट किसी थर्मल रेडिएशन से सुरक्षित रहता है। हालांकि सोने की तरह दिखने वाली ये परतें सोने की नहीं होती हैं, बल्कि ये एक तरह का प्लास्टिक होती हैं, जिसे पोलयीमीडे कहते हैं। इसकी कई परतें मिलकर सैटेलाइट और अंतरिक्ष यात्रियों दोनों को थर्मल रेडिएशन से सुरक्षित रखती हैं। बता दें कि ये रेडिएशन स्पेस में तापमान को -200 फैरनहाइट से लेकर +300 डिग्री फैरनहाइट तक ले जाता है। ऐसे में सैटेलाइट के तुरंत ही नष्ट हो जाने का डर रहता है, जिससे ये परतें बचाती हैं। इसी मल्टी लेयर इंसुलेशन को आम बोलचाल में गोल्ड प्लेटिंग कहा जाता है।