एक समय था, जब राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीति में लालू प्रसाद यादव की तूती बोलती थी। अपने राजनीतिक स्वार्थ के हिसाब से माहौल बनाने में माहिर लालू प्रसाद ने बिहार में  पंद्रह वर्षों से ज्यादा समय तक शासन किया। उस वक्त उनको चुनौती देने वाला कोई दमदार नेता नहीं था। लेकिन चारा घोटाले के मामले में लालू के फंसने के साथ ही उनका राजनीतिक अवसान होने लगा। 30 जुलाई 1997 को चारा घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव को 134 दिन तक जेल में बितानी पड़ी। अभी वे जेल से छूट कर जमानत पर बाहर आए थे। उसके बाद 30 सितंबर 2013 को सीबीआई अदालत ने 37 करोड़ के चाईबासा चारा घोटाला मामले में दोषी पाया।  3 अक्तूबर सीबीआई कोर्ट ने लालू यादव को पांच वर्ष की सजा तथा 10 लाख का जुर्माना लगाया। इसी तरह 23 दिसंबर 2017 को देवघर चारा घोटाला मामले में लालू को दोषी पाया गया। कोर्ट 6 जनवरी 2018 को अपने फैसले में लालू यादव को साढ़े तीन वर्ष की सजा सुनाई। फिर दुमदुमा घोटाले में भी उसको सजा मिली। इस तरह अभी उनका जीवन जेल और अस्पतालों में गुजर रहा था। जमानत पर आने के बाद वे धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय भी होने लगे थे। लेकिन 139.35  करोड़ रुपए के डोरंडा चारा घोटाला मामले में सीबीआई अदालत ने कल 21 फरवरी को फिर से लालू को पांच साल की सजा तथा 60 लाख रुपए जुर्माना लगाने का निर्देश दिया।  इस मामले में सीबीआई कोर्ट ने लालू सहित कुल 38 व्यक्तियों को दोषी पाया था। 38 में से 35 अभियुक्त रांची के बिरसा मुंडा जेल में तथा तीन रांची स्थित राजेन्द्र आयुर्वेदिक संस्थान में भर्ती हैं। लालू के साथ ही पूर्व सांसद आरके राणा एवं पशु पालन विभाग के तत्कालीन सचिव जुलियस को भी कोर्ट ने सजा के दायरे में लाया। अन्य अभियुक्तों को भी सजा सुनाई गई। कोर्ट ने लालू के वकील की कोई दलील नहीं सुनी, जिसमें कहा गया था कि उनकी उम्र 75 वर्ष हो चुकी है और 17 बीमारियों से ग्रस्त हैं। हालांकि उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल इसके लिए भारतीय जनता पार्टी तथा मोदी सरकार पर लालू को फंसाने का आरोप लगा रही है। सीबीआई कोर्ट के फैसले के खिलाफ उनकी पार्टी राजद हाईकोर्ट जाने की तैयारी में है। विभिन्न चारा घोटालों में फंसे लालू प्रसाद यादव अब भारतीय राजनीति के हाशिए पर चले गए हैं। अभी तक वे अपने बेटों को राजनीति में पूरी तरह स्थापित करने का सपना पूरा नहीं कर पाए हैं।