रूस और यूक्रेन के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इस तनाव से दुनिया के दूसरे देश भी प्रभावित हो रहे हैं। इसको लेकर रूस तथा अमरीका सहित नाटो देशों की जिस तरह लामबंदी हो रही है उसको देखते हुए तृतीय विश्वयुद्ध का खतरा मंडराने लगा है। अमरीका तथा नाटो संगठन के सदस्य देश यूक्रेन की तरफ से खड़े हैं जबकि रूस खुलेआम नाटो को चुनौती दे रहा है। रूस अपनी धरती के साथ-साथ बेलारूस एवं क्रीमिया की तरफ से यूक्रेन को घेर रखा है। रूस के एक लाख तीस हजार सैनिक यूक्रेन की सीमा पर तैनात हैं। यूक्रेन की सीमा को घेरने के बाद रूस ने बेलारूस एवं काला सागर में युद्धाभ्यास भी शुरू कर दिया है। काला सागर में रूस ने 30 नेवी जहाज को उतारा है। अमरीका सहित नाटो के देश भी यूक्रेन के समर्थन में काला सागर में अपने जंगी बेड़ों को भेजे हैं। दोनों तरफ से चल रही तनातनी के बीच अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तथा रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के बीच 62 मिनट की ऑनलाइन वार्ता हुई है, जिसमें समस्या का हल नहीं निकल पाया है। दोनों पक्षों के अडिग रुख के कारण स्थिति जस की तस बनी हुई है। हालांकि दोनों पक्ष आगे भी समस्या के हल के लिए कूटनीतिक बातचीत को तैयार हैं। रूस चाहता है कि अमरीका यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं करने की गारंटी दे। अमरीका गारंटी देने से मुकर रहा है। रूस का मानना है कि यूक्रेन के नाटो में शामिल होने से अमरीकी विमान, उन्नत मिसाइलें आदि यूक्रेन में तैनात होगी जिससे रूस की सुरक्षा को खतरा होगा। इसी समस्या को लेकर अमरीका और रूस के बीच तलवारें खिंची हुई हैं। यद्यपि यह तनाव रूस और यूक्रेन के बीच है, किंतु यह वास्तव में अमरीका एवं रूस के बीच वर्चस्व की लड़ाई बन गई है। अगर यह लड़ाई छिड़ गई तो नौबत परमाणु युद्ध तक आ जाएगी। अमरीका सहित कई देशों ने यूक्रेन की विस्फोटक स्थिति को देखते हुए अपने राजनयिकों एवं नागरिकों को वहां से निकालना शुरू कर दिया है। कई देशों ने यूक्रेन के साथ विमान सेवा को स्थगित कर दिया है। भारत के भी यूक्रेन में पढ़ रहे लगभग 20 हजार छात्र वर्तमान तनाव के कारण संकट में फंस सकते हैं। उनको बाहर निकालने के लिए राष्ट्रपति सचिवालय में याचिका दायर की गई है। बढ़ते तनाव के बीच संकट को खत्म करने के लिए कूटनीतिक प्रयास भी जारी है। जर्मनी के चांसलर ने भी रूस और यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ बातचीत की है। अगर यह युद्ध हुआ तो यूक्रेन के साथ-साथ पूर्वी यूरोप के देश भी प्रभावित होंगे। रूस से आपूर्ति होने वाली गैस की पाइपलाइन पूर्वी यूरोप तक पहुंचती है। युद्ध की स्थिति में गैस की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। पूर्वी यूरोप के देश भी नहीं चाहते हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध हो, क्योंकि इसका असर कई देशों पर पड़ेगा। यूक्रेन में लगभग 30 प्रतिशत रूसी बोलने वाले लोग रहते हैं। इस पूरे मामले में भारत की स्थिति भी अजीबोगरीब हो गई है। भारत का रूस और अमरीका दोनों के साथ मधुर संबंध है। ऐसी स्थिति में भारत को तटस्थ भूमिका निभानी होगी। संयुक्त राष्ट्र संघ में यूक्रेन विवाद पर हुई बहस के दौरान भारत ने तटस्थ भूमिका निभाते हुए मतदान का बहिष्कार किया था। सभी पक्षों को मिलकर प्रयास करना चाहिए ताकि संभावित युद्ध को टाला जा सके। युद्ध किसी के हित में नहीं, बल्कि वह विनाश को आमंत्रित करती है। कोरोनाकाल में वैसे भी विश्व की आर्थिक स्थिति चरमरा रही है। अगर युद्ध हुआ तो वैश्विक आर्थिक स्थिति और विकट हो जाएगी। यूक्रेन-रूस तनाव को टालने के लिए दुनिया को आगे आना होगी। अमरीका और रूस के जिद्द के लिए दुनिया को विश्वयुद्ध की आग में झोंका नहीं जा सकता।
यूक्रेन पर हमले का खतरा
