फिलवक्त मेघालय, अरुणाचल, असम, मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड पर नजर दौड़ाते हैं तो लगता है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अब कांग्रेस इतिहास बनती जा रही है,उसकी वर्तमान स्थिति को देखने से लगता है कि इसका अतीत इस क्षेत्र में भले ही सुनहरा रहा हो,परंतु वर्तमान उम्मीद की आस को जगाने के लिए  भी काफी नहीं है। मेघालय में कांग्रेस विधायकों का टीएमसी में जाना और बाकी विधायकों का कॉनराड संगमा सरकार में शामिल होने से स्पष्ट हो गया कि वहां अब कांग्रेस का कोई नामलेवा नहीं बचा है। नगालैंड में कांग्रेस नेफ्यू रियो सरकार का हिस्सा बन गई है। मणिपुर में विधानसभा चुनाव है, परंतु वहां कांग्रेस को जिस मजबूती के साथ चुनाव लड़ना चाहिए, वह नहीं लड़ रही है। अरुणाचल में पहले जो कांग्रेसी हुआ करते थे, अब भाजपाई बन गए हैं। असम में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस  एआईयूडीएफ के साथ महागठबंधन बनाकर मजबूती के साथ चुनाव लड़ी, परंतु चुनाव के बाद जिस तरह से विधायक कांग्रेस को छोड़कर फिर से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनावी जीत हासिल की, वैसी स्थित संसदीय प्रणाली में बहुत ही कम देखी जाती है। दूसरी ओर राज्य में अगले महीने छह मार्च को 80 नगरपालिकाओं का चुनाव होने जा रहा है, परंतु  इन चुनावों को जीतने के लिए जितनी मजबूती चाहिए, उतनी मजबूती कांग्रेस नहीं दिखा रही है। ऐसे में इन चुनावों में अभी से कहा जा रहा है कि कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो जाएगा। ऐसे में कहा जाता है कि भले ही अभी भारत कांग्रेस मुक्त न हुआ हो, परंतु पूर्वोत्तर भारत कांग्रेस मुक्त होने की ओर आगे बढ़ रहा है। इसी बीच कांग्रेस के लिए त्रिपुरा से एक सुखद खबर आई है,जो संभवतः 2023 से पूर्वोत्तर में कांग्रेस की वापसी की स्थिति बन सकती है।  त्रिपुरा विधानसभा चुनाव होने में महज सालभर का समय रह जाने के बीच सत्तारूढ़ भाजपा के दो विधायकों के सदन से इस्तीफा देकर कांग्रेस के पाले में जाने से नया राजनीतिक समीकण उभर रहा है। ऐसा जान पड़ता है कि कभी राज्य में शासन कर चुकी सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है और कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही भाजपा को वह चिढ़ाना चाहती है। इतना ही नहीं, उससे अलग होकर बनी तृणमूल कांग्रेस भी वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में आने का प्रयास करती दिख रही है। पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराकर तृणमूल कांग्रेस उत्साहित है और वरिष्ठ तृणमूल नेता अभिषेक बनर्जी ने पिछले साल दावा किया था कि उनकी पार्टी आगामी त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाएगी। मेघालय,त्रिपुरा और अब गोवा में कांग्रेस के बागियों को अपने पाले में लाकर भाजपा के सामने असली विपक्षी होने का तृणमूल का दावा लगता है कि कम से कम त्रिपुरा में धराशायी होता जा रहा है। त्रिपुरा में कांग्रेस फिर से दमखम के साथ उठने लगी है। ऐसी अटकलें थीं कि बागी भाजपा विधायक सुदीप रॉय बर्मन और उनके सहयोगी आशीष साहा भगवा धड़े से निकलकर तृणमूल कांग्रेस में जाएंगे,लेकिन इस्तीफा देने के बाद वे सीधा दिल्ली जाकर राहुल और प्रियंका गांधी से मिले और दोनों फिर से कांग्रेस पार्टी के साथ हो गए। भाजपा के दो अन्य विधायकों ने भी राहुल और प्रियंका गांधी से भेंट की तथा कुछ महीने बाद कांग्रेस में शामिल होने में रुचि दिखाई। रॉय बर्मन ने अपनी पूर्व पार्टी पर भ्रष्टाचार और लोकतंत्र का गला घोटने का आरोप लगाया है। सीपीआई (एम) की त्रिपुरा इकाई के सचिव जितेंद्र चौधरी ने कहा कि रॉय बर्मन का भाजपा छोड़ना उम्मीदों के विपरीत नहीं है। चौधरी ने दावा किया कि लोग अब राज्य में राजनीतिक बदलाव महसूस करने लगे हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है राजनीतिक परिस्थितियां सदैव एक-सी नहीं रहती है। समय और परिवेश के मुताबिक उसमें बदलाव की गुंजाइश बनी रहती है। त्रिपुरा की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितयों की अनुगूंज कांग्रेस के लिए सुखद साबित हो सकती है, इसके लिए हमें 2023 में त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनाव तक के नतीजे तक इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि फिलहाल सब कुछ भविष्य के गर्भ में है।