कहते हैं कि दुनिया का दर्शन कुछ अजीब है। जन्म लेना, बढ़ना, पौढ़ और बुजुर्ग होकर इसे छोड़ देना इसकी नियति है, परंतु असम के प्रसिद्ध गायक जुबिन के साथ ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने अभी पौढ़ता की ओर कदम बढ़ाया ही था कि नियति ने उन्हें हमसे छीन लिया। असम की सबसे बड़ी पीड़ा भी यही है कि ईश्वर ने उन्हें समय से पहले ही छीन लिया। कुछ लोग इसे अकाल मृत्यु कहते हैं, जिसके लिए असम पहले से कतई तैयार नहीं था। 19 सितंबर 2025 को संगीत की दुनिया ने एक नायाब हीरा खो दिया। असम के गौरव, भारत के मशहूर गायक और संगीतकार जुबिन गर्ग अब हमारे बीच नहीं हैं। सिंगापुर में स्कूबा डाइविंग के दौरान हुई एक दुखद दुर्घटना में उनकी मृत्यु ने न केवल असम, बल्कि पूरे देश को गहरे शोक में डुबो दिया। जुबिन का जाना केवल एक कलाकार की मृत्यु नहीं, बल्कि एक युग का अंत है। जुबिन गर्ग केवल एक नाम नहीं थे, बल्कि असमिया और हिंदी संगीत जगत की वो आवाज़ थे, जो दिलों को छू जाती थी। उनके गानों में भावनाओं की वो गहराई थी,जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। मायाबनी,या अली और फालाम्बा जैसे गीत आज भी हर उम्र के श्रोताओं के दिलों में बसे हुए हैं। उन्होंने संगीत को केवल पेशा नहीं, पूजा की तरह जिया। 23 सितंबर को गुवाहाटी से सोनापुर तक की यात्रा, कोई आम अंतिम यात्रा नहीं थी। यह यात्रा थी उस कलाकार को विदा देने की, जिसने लाखों दिलों में अपनी जगह बनाई। अर्जुन भोगेश्वर बरुवा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से शुरू हुई ये यात्रा जब सोनापुर के कमरकुची गांव पहुंची, तब तक हजारों लोग उस कारवां में शामिल हो चुके थे। राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार, जुबिन गर्ग को उनके फैंस और परिवार की ओर से अंतिम सलामी थी। हर तस्वीर, हर वीडियो, हर शब्द जुबिन की पत्नी गरिमा गर्ग की उस मौन पीड़ा को बयान करने में असमर्थ है, जो उनके चेहरे पर सा$फ झलक रही थी। ताबूत के पास बैठी गरिमा की हाथ जोड़ती झलक, वो शून्यता जो उनके चेहरे पर थी, पूरे माहौल को भावुक कर गई। एक साथी, एक प्रेमी और एक जीवनसंगी को खोने का दर्द हर किसी को महसूस हो रहा था। जुबिन अपने चार पालतू कुत्तों - इको, दीया, रैंबो और माया से बेहद प्यार करते थे। जब ये चारों जुबिन के पार्थिव शरीर के पास लाए गए, तो वहां मौजूद हर आंख नम हो गई। वहीं, स्टेडियम में मौजूद हजारों फैंस उनकेआइकॉनिक गीत मायाबनी को गा रहे थे मानो उनके सुरों को विदाई दे रहे हों। संगीत से ही जिसने जीवन जिया, उसे संगीत से ही विदा दी गई। गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में दो बार पोस्टमार्टम - ये घटना कई सवाल भी खड़े करती है। जुबिन की मृत्यु केवल एक दुर्घटना थी या कुछ और, इस पर जांच अभी जारी है,लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि एक महान कलाकार अब इस दुनिया में नहीं है। जुबिन भले ही शारीरिक रूप से इस दुनिया से विदा ले चुके हों, लेकिन उनका संगीत हमेशा जीवित रहेगा। उनके गीत,उनके सुर, उनकी रचनाएं, उनकी आवाज - आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। शब्द कम पड़ जाते हैं, जब कोई जुबिन गर्ग जैसा कलाकार जाता है। जुबिन अपने सूफियाना अंदाज के लिए सदैव याद किए जाएंगे,उनमें कबीर की फक्कड़ता पाई जाती थी, उन्होंने कभी ङ्क्षहदी के मस्त और अल्हड़ कवि नागार्जुन की कविता मंत्र को भी गाया था। यदि बाबा नागार्जुन और जुबिन के जीवन दर्शन का हम अध्यन करेंगे तो उनमें काफी सामनता देखने को मिलेगी। बाबा नागार्जुन ने कभी सत्ता के शीर्ष पर बैठे पंडित नेहरु और इंदिरा गांधी को जमकर सुनाया था तो जुबिन ने भी कभी सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की परवाह नहीं की और वहीं कहा,जिसे उनके मन ने सही कहा। जुबिन के जीवन दर्शन में उर्दू के मशहूर शायर जान इलिया के भी अंदाज देखने को मिलते हैं और जब हम उन्हें या अली गाते देखते हैं तो जान इलिया भी उनमें झलकने लगते हैं। सच यह है कि जुबिन हमसे दूर नहीं गए हैं। बस सुरों की दुनिया में विलीन हो गए हैं। अलविदा जुबिन। आपकी आवाज कभी नहीं थमेगी।
अलविदा जुबिन!
