डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की आगामी मुलाकात ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। यह मुलाकात ऐसे समय हो रही है जब रूस-यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और अब तक इसका कोई ठोस समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। मुडोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की आगामी मुलाकात ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। यह मुलाकात ऐसे समय हो रही है जब रूस-यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और अब तक इसका कोई ठोस समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। मुलाकात की पुष्टि स्वयं ट्रंप ने अपने सोशल प्लेटफॉर्म ट्रूथ सोशल पर की है और इसे 15 अगस्त को अलास्का में आयोजित किया जाएगा। इस बीच एक बड़ा प्रश्न यह भी बना हुआ है कि क्या इस मुलाकात में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की शामिल होंगे? अब तक कोई स्पष्ट सूचना नहीं है, लेकिन यूक्रेन इस अनिश्चितता को लेकर बेचैन है। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि बिना यूक्रेन की भागीदारी के कोई भी समझौता शांति के खिलाफ होगा और ऐसा फैसला जन्म लेते ही मर जाएगा। ट्रंप लंबे समय से दावा करते आए हैं कि वे 24 घंटे में युद्ध खत्म कर सकते हैं। यह एक राजनैतिक वादा है या यथार्थवादी रणनीति - इसका उत्तर तो समय देगा। लेकिन तथ्य यह है कि अब तक न तो ट्रंप के पिछले प्रयासों से और न ही पुतिन-जेलेंस्की की पिछली अप्रत्यक्ष बातचीतों से कोई ठोस परिणाम सामने आया है। अमरीका और रूस की यह संभावित वार्ता अलास्का में हो रही है - एक ऐसा प्रतीकात्मक स्थल जिसे रूस ने 1867 में अमरीका को बेचा था और जो आज भी भौगोलिक रूप से दोनों देशों के बीच की दूरी कम करता है। वहीं, यह भी एक कूटनीतिक सच्चाई है कि पुतिन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट के चलते, उनकी यात्रा सीमित हो गई है, जिससे मुलाकात के लिए तटस्थ स्थान चुनना आवश्यक हो गया। इस मुलाकात को लेकर जो सबसे बड़ा नैतिक और कूटनीतिक प्रश्न उठता है, वह यह है कि क्या युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित देश को वार्ता से बाहर रखना तर्क संगत है? यूक्रेन के बिना कोई भी संधि केवल कागज़ी होगी, व्यावहारिक नहीं। शांति वार्ता तभी सार्थक हो सकती है जब उसमें सभी संबंधित पक्षों की सहमति और सहभागिता हो। रूस बार-बार यह संकेत देता रहा है कि वह शांति के लिए तैयार है, लेकिन अपनी शर्तों पर - जिनमें यूक्रेन से कब्जाए गए इलाकों को मान्यता देना और नाटो से दूरी बनाना शामिल है। दूसरी ओर, यूक्रेन संघर्षविराम और क्षेत्रीय अखंडता की बात करता है। यह टकराव वार्ता की मेज पर भी दिखेगा। ट्रंप की यह पहल उन्हें एक डील मेकर के रूप में स्थापित करने का प्रयास हो सकती है, खासकर जब वे अमरीका में एक बार फिर राष्ट्रपति पद संभाल चुके हैं। लेकिन उनकी कथनी और करनी के बीच अक्सर विरोधाभास रहा है। व्हाइट हाउस में दिए गए बयानों में उन्होंने कुछ क्षेत्रों की अदला-बदली की बात कहकर शंका को और गहरा कर दिया है। यदि ट्रंप वाकई युद्ध समाप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें एक निष्पक्ष मध्यस्थ की भूमिका निभानी होगी, न कि किसी एक पक्ष के हितों के प्रतिनिधि की। शांति की कोई भी पहल तभी सफल हो सकती है जब उसमें पारदर्शिता, सहभागिता और समानता हो। यूक्रेन की अनदेखी करके कोई भी समझौता अस्थायी होगा। पुतिन और ट्रंप की यह मुलाकात केवल फोटो अवसर बनकर न रह जाए, इसके लिए जरूरी है कि यह संवाद एक वास्तविक, समावेशी और न्यायपूर्ण प्रक्रिया की शुरुआत बने। यदि युद्ध को इतिहास बनाना है, तो संवाद में सभी की आवाज शामिल होनी चाहिए। रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराना समय की सबसे बड़ी मांग है। अच्छी बात है कि इस युद्ध को रोकने के लिए ट्रंप और पुतिन मिलने वाले हैं। जेलेंस्की की इस बात में दम है कि बैठक में उनके रहे बिना युद्ध को समाप्त करने को लेकर बातचीत का कोई औचित्य नहीं है। लड़ाई रूस और यूक्रेन के बीच चल रही है। पुतिन और जेलेंस्की दोनों अपने-अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं, ऐसे में जेलेंस्की के बिना सही बातचीत नहीं हो सकती है। यह अमरीका की जिम्मेवारी है कि वह रूस से बातचीत में यूक्रेन को शामिल करने को तैयार करे। ङ्क्षकतु पुतिन कतई नहीं चाहेंगे कि जेलेंस्की बातचीत में शामिल हों। ऐसे में जेलेंस्की की जगह ट्रंप से बातचीत करना कहां तक न्यायसंगत है? ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार चाहिए, इसलिए येन-केन-प्रकारेण किसी तरह बातचीत करने को तैयार हैं। ट्रंप चाहते हैं कि बातचीत बिना विघ्न के सफल हो जाए और वे शांतिदूत बनकर पूरी दुनिया में छा जाएं, परंतु वार्ता की जो पटकथा लिखी जा रही है शायद ही वह जेलेंस्की और यूक्रेन को मंजूर हो।
ट्रंप और पुुतिन वार्ता
