ईरान-इजरायल और अमरीका के ट्राईंगल ने नया मोड़ ले लियाहै। इजरायल-ईरान युद्ध के तनाव को अमरीका की एंट्री ने और बढ़ा दिया है। इजरायल-ईरान के भीषण युद्ध में जहां इजरायल ने ईरान की राजधानी तेहरान सहित ईरान के सत्ता है। इजरायल-ईरान युद्ध के तनाव को अमरीका की एंट्री ने और बढ़ा दिया है। इजरायल-ईरान के भीषण युद्ध में जहां इजरायल ने ईरान की राजधानी तेहरान सहित ईरान के सत्ता प्रमुख अयातुल्लाह खामनेई को खत्म करने की ठान ली है। वहीं ईरान ने जवाबी हमले में तेल अबीब के गैस और तेल के ठिकानों सहित स्टॉक एक्सचेंज, अस्पताल सहित अनेक नागरिक केंद्रों को बर्बाद कर दिया है। ईरान की टारगेटेड मिसाइल को इजरायल रोक पाने में असफल रहा है। वैसे अब इजरायल के पास ईरान को रोकने के लिए उतने अस्त्र-शस्त्र शेष नहीं बचे क्योंकि विगत एक साल से ज्यादा समय से उसकी लड़ाई हमास, हिजबुल्ला और हूती विद्रोहियों के साथ गाजा पट्टी तथा फिलिस्तीन पर चल रही है। अब इजरायल में वह दम-खम नहीं रहा जिसके लिए वह जाना जाता है। जबकि ईरान के पास अभी सैकड़ों मिसाइल्स का भंडार बचा हुआ है जिसके दम पर वह इजरायल के शहरों में ताबड़तोड़ हमले कर रहा है। इजरायल ने इन परिस्थितियों में अमरीका से ईरान पर हमले की गुजारिश भी की थी और अमरीका ने बीती रात अपने सबसे खतरनाक एयर स्ट्राइकर से ईरानी परमाणु ईंधन केंद्रों जिनमें प्रमुख फोर्दो, नतांज और इस्फहान हैं जहां के गहरे बंकरों में वह परमाणु ईंधन छुपा कर रखता है, पर हमला कर दिया है। समाचार एजेंसी के अनुसार इनमें एक फोर्दो सबसे बड़ा परमाणु ईंधन भंडारण केंद्र है जो पूरी तरह तबाह हो चुका है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस हमले की पुष्टि भी कर दी है। उन्होंने अपने मीडिया हैंडल में लिखा है कि हमने इन तीन परमाणु भंडारण केंद्र में हमले कर उसे तबाह करने की कोशिश की है और हमारे दोनों फाइटर प्लेन सुरक्षित वापस अमरीका आ चुके हैं। ट्रंप ने ईरान को धमकी दी है कि और हमले हो सकते हैं। इजरायल के प्रधानमंत्री ने कहा कि शांति का रास्ता हमले से गुजर कर जाता है। हीरा के सट्टा प्रमुख ने इसके जवाब में कहा है कि हमले रुकेंगे नहीं और अब शांति प्रस्ताव पर कोई चर्चा नहीं होगी। उल्लेखनीय है कि मिडिल ईस्ट में इजरायल के अलावा किसी के पास परमाणु बम नहीं है, वैसे तो घोषित तौर पर इजरायल के पास भी परमाणु बम नहीं है पर रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि इजरायल ने परमाणु बम बना लिया है एवं वह इस दुनिया के सामने इसकी घोषणा नहीं करता है। इन परिस्थितियों में ईरान अमरीका तथा इजरायल के सामने अलग-थलग पड़ गया है। इसका एक बड़ा कारण मिडिल ईस्ट में शिया तथा सुन्नी समुदाय का आंतरिक विरोध भी है। पिछले 36 साल से ईरान पर शासन कर रहे अयातुल्लाह खामनेई ने शिया-सुन्नी विवाद को बहुत आगे बढ़ा दिया और मिडिल ईस्ट के कई देशों को परेशान भी किया है। ऐसे में सारे मुस्लिम देश इजरायल तथा अमरीका के विरोध में एकत्र नहीं हो पाए। गौरतलब है कि इजरायल ने ईरान के 11-12 प्रमुख परमाणु वैज्ञानिकों तथा उसके सबसे ताकतवर सैन्य कमांडरों की मिसाइल हमले से हत्या भी कर दी है। ऐसे में ईरानी प्रमुख के पास वर्तमान में सेना को नेतृत्व करने वाले कमांडरों की कमी हो गई है और उसके परमाणु प्रोग्राम का भविष्य भी चौपट हो गया है। रही-सही कसर अमरीका के लड़ाकू विमान ने परमाणु ईंधन भंडारण ठिकानों पर हमला कर उसे नष्ट कर पूरा कर दिया है। ईरान भी युद्ध के शुरुआती दौर में पाकिस्तान के भरोसे परमाणु हमले की धमकी दे रहा था पर पाकिस्तान के सो- कॉल्ड फील्ड मार्शल असीम मुनीर डोनाल्ड ट्रंप की लंच पॉलिटिक्स में उलझ कर उसके खेमे में जाकर ईरान का साथ देने से साफ इनकार कर दिया है। पाकिस्तान अमरीका को अपने दो ऐसे एयर-बेस जो ईरान के एकदम नजदीक हैं को इस लड़ाई में उपयोग करने हेतु देने पर सहमत हो गया है और अब ईरान के समर्थन में पाकिस्तान परमाणु बम का किसी भी तरह उपयोग नहीं करेगा। इन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप यदि ईरान इजरायल पर हमले जारी रखता है तो इजरायल,अमरीका,यूरोपीय देश और नाटो संगठन ईरान के विरुद्ध हमले करने से पीछे नहीं हटेंगे जो किसी भी विश्व युद्ध से कम नहीं होगा।
इजराइल ईरान और अमरीका के युद्ध में मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव के कारण भारत के लिए एक कठिन परीक्षा की घड़ी होगी। भारत के संबंध ईरान से बहुत पुराने हैं और वह ईरान से क्रूड ऑयल भी आयात करता है। दूसरी तरफ भारत के इजराइल से भी अच्छे मैत्रीपूर्ण संबंध है अब भारत को किसी एक देश को समर्थन देना राजनीतिक तौर पर बहुत कठिन एवं असमंजस वाला होगा। अगर दोनों के बीच युद्ध और बढ़ता है तो मिडिल ईस्ट में बड़ी संख्या में रहने वाले भारतीय प्रवासियों तथा ईरान से आने वाले क्रूड ऑयल के मार्ग पर भी बाधा उत्पन्न हो सकती है जिससे पेट्रोल-डीजल भारत में महंगे होकर इस महंगाई का फर्क देश की आवश्यक वस्तुओं पर भी डाल सकते हैं। इसलिए बेहतर यह होगा कि भारत इजरायल-ईरान युद्ध विराम के प्रयासों को बढ़-चढकर समर्थन प्रदान करे।
वैसे भी इतिहास गवाह है कि युद्ध या विशव युद्ध से मानवता और संवेदना ही हताहत हुई है। बच्चे, बूढ़े तथा स्त्रियां इन युद्धों में सबसे ज्यादा आहत और परेशान हुए हैं। इसीलिए युद्ध विराम कर वैश्विक शांति की स्थापना के हर तरह के प्रयास किए जाने चाहिए।