जब कांग्रेस कहती है कि उसकी सरकार ने अटल जी को पाकिस्तान के विरुद्ध भारत का पक्ष रखने संयुक्त राष्ट्र भेजा था तो उसे यह जान लेना चाहिए कि अटल जी देश के बहुत बड़े और सर्वमान्य नेता के साथ-साथ उच्च बौद्धिक क्षमता वाले साहित्यकार और राजनेता थे और यह भी कि उस समय देश के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे जो खुद एक बहुत बड़े स्कॉलर थे। आज यदि प्रधानमंत्री मोदी ने चुने हुए विपक्षी नेताओं को डेलिगेशन में भेजा है तो यह भी उनका निजी मूल्यांकन है कि कौन सा विपक्षी नेता भारत के पक्ष को मजबूती से और स्पष्टता से रख सकता है। शशि थरूर, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, प्रियंका चतुर्वेदी, सलमान खुर्शीद, सुप्रिया सुले और एमआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ऐसे नेता हैं जिनकी बौद्धिकता और देश के प्रति जिम्मेदारी पर किसी तरह का संदेह नहीं किया जा सकता। निश्चित ही यह बात कांग्रेस को बहुत चुभ रही होगी कि उसके द्वारा अनुशंसित नेताओं की जगह उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को क्यों भेजा गया। हालांकि अब जब डेलिगेशन के लोगों द्वारा भारत के पक्ष को मजबूती से रखने और पाकिस्तान की दहशतगर्दी की कारगुजारियों के पर्दाफाश करने के समाचार सामने आ रहे हैं तब गांधी परिवार के सदस्यों को समझ में आ गया होगा कि मोदी ने इन्हें क्यों चुना। वहीं जिस गांधी परिवार का हर सदस्य और उनके चहेते सहयोगी नेता मोदी को दिन-रात गलियां देते हों और जो परिवार मोदी विरोध करते-करते राष्ट्र विरोध पर उतर आए जो परिवार दुश्मन देश चीन से गुपचुप समझौता कर एमओयू पर हस्ताक्षर कर दे और जिसके मणिशंकर जैसे बड़े नेता मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए पाकिस्तान से मदद मांगें, जो हिंडनवर्ग की रिपोर्ट पर उछल-उछलकर इस्तीफा मांगे, जो सोरोस के साथ मिलकर सरकार को अस्थिर करने के जतन करे जो अमरीका जाकर भारत में लोकतंत्र खतरे में है, संविधान खतरे में है कहकर भारत की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दे ऐसे परिवार के सदस्यों द्वारा अनुशंसित नेताओं को देश के प्रधानमंत्री भारत की प्रतिष्ठा धूमिल करने कैसे भेज सकते थे। निश्चित ही देश ना तो वीरों से खाली है और न ही बुद्धिमानों से और न राष्ट्रभक्तों से खाली है बस जरूरत है तो उन्हें पहचानने की और मोदी इस तरह की पहचान करने में सिद्धहस्त हैं।
कौन नहीं जानता असदुद्दीन ओवैसी भाजपा के धुर विरोधी हैं। यही नहीं उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने जो 15 मिनट वाला बयान दिया वह कभी भुलाया नहीं जा सकता। यही नहीं असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी एक आमसभा में घड़ी देखते हुए उपस्थित भीड़ को कहा था कि अभी 15 मिनट बाकी हैं जिसका आशय उपस्थित लोगों को अकबरुद्दीन के 15 मिनट वाले बयान की याद दिलाना था, लेकिन इसके बावजूद भारत की आंतरिक राजनीति से अलग हटकर डेलिगेशन के लिए विपक्ष के प्रबुद्ध नेताओं का उचित चयन करना एक बहुत बड़ा टास्क था जिसे मोदी ने कर दिखाया। आज जब डेलिगेशन के समाचार मिल रहे हैं तो यह सिद्ध हो रहा है कि मोदी ने शानदार ग्रुप बनाए। जब देश का पूरा विपक्ष हमेशा मोदी और भाजपा के विरोध में खड़ा हो किंतु बात जब देश की हो तो निश्चय ही असदुद्दीन ओवैसी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है जिन्होंने डेलिगेशन का नेतृत्व करते हुए जहां-जहां भी गए पाकिस्तान को न केवल आड़े हाथों लिया बल्कि भारत के ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान को सबक सिखाने वाले निर्णय को विदेशियों के सामने पुरजोर तरीके से रखा। मिडिल ईस्ट के देशों में पाकिस्तान के विरुद्ध भारत की आतंक के विरुद्ध कार्रवाई को समझाने में ओवैसी सफल रहे। इसे ही राष्ट्रीयता कहते हैं। ओवैसी ने विदेश में कहा कि पाकिस्तान आतंकियों को ट्रेनिंग, फंडिंग और हथियार देता है यह देश अब मानवता के लिए खतरा बन गया है। यही नहीं अल्जीरिया में ओवैसी ने पाकिस्तान की पोल खोलते हुए तंज कसा की जकीउर्रहमान लखवी जेल में बैठे-बैठे ही एक बेटे का बाप बन गया। पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश के बारे में एक भारतीय मुसलमान ऐसा कहे तो यह बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावी बात है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान खुद को इस्लाम का रक्षक बताता है लेकिन यह कोरी बकवास है। मिडिल ईस्ट के देशों में ओवैसी ने भारत का जैसा पक्ष रखा वह नि:संदेह बहुत प्रभावशाली रहा है।
एक डेलिगेशन दल के प्रमुख शशि थरूर की बात करें तो देश की राजनीति से अलग हटकर शशि थरूर एक योग्य और विदेश नीति के जानकार नेता हैं। वह यूपीए शासन में विदेश राज्यमंत्री की भूमिका निभा चुके हैं। ऐसे सदस्य का कांग्रेस नेतृत्व द्वारा डेलिगेशन के लिए नाम ना भेजना कांग्रेस की थरूर के साथ नाइंसाफी थी। सच्चाई यह है कि पूरा गांधी परिवार शशि थरूर से तब से खुश नहीं है जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवारी का पर्चा भर कर प्रथम परिवार को नाखुश कर दिया था। यही नहीं उनकी योग्यता के बारे में गांधी परिवार अच्छी तरह जानता है इसलिए लगता है वह नहीं चाहता था की थरूर का कद बढ़ जाए। लेकिन थरूर मोदी की नजरों से बच नहीं पाए। मोदी ने आगे रहकर शशि थरूर को अपने डेलिगेशन दलों में से एक का नेतृत्व सौंप दिया। जब से भारत के डेलिगेशन विदेश गए हैं तब से जितनी चर्चा शशि थरूर, असदुद्दीन ओवैसी, प्रियंका चतुर्वेदी, सुप्रिया सुले और सलमान खुर्शीद तथा अन्य नेताओं की हो रही है वह कांग्रेस के लोग पचा नहीं पा रहे हैं। दुनिया जानती है कि भारत प्रतिभाओं से खाली नहीं है और उसका लोहा दुनिया मानती है। शशि थरूर ने कोलंबिया में भारत का जो पक्ष रखा वह वाकई प्रशंसा योग्य है। उसका जो प्रतिसाद मिला उसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। असल में कोलंबिया वह देश है जिसने 10 मई को पाकिस्तान द्वारा आतंकियों के जनाजे पर फातिया पढ़े जाने के चित्र को देखकर अफसोस जताते हुए भारत की मजम्मत करते हुए पाकिस्तान का समर्थन किया था। लेकिन थरूर ने जब वास्तविक स्थिति से वहां के प्रतिनिधियों को अवगत कराया तो कोलंबिया ने अपने बयान को वापस ले लिया और भारत का साथ देने का भरोसा दिलाया। विदेश गए ये सारे नेता एकजुट भारत की तस्वीर पेश कर रहे हैं, लेकिन भारत में कांग्रेस के कई नेता विचलित हैं। जयराम रमेश तो इतने विचलित हैं कि वह डेलिगेशन सदस्यों की तुलना आतंकियों से करने से भी नहीं चूके। उन्होंने कहा विदेश में हमारे सांसद घूम रहे हैं और देश में आतंकवादी घूम रहे हैं। असल बात यह है कि कांग्रेस खेमे के सारे वे सदस्य मोदी के बढ़ते कद और निर्णायक फैसलों से उन्हें मिल रही अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा से परेशान हैं। वह ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते जिसमें वह मोदी को न घेरें। राहुल गांधी हों या जयराम रमेश हों या पवन खेड़ा या अन्य कांग्रेस परिवार के चहेते सभी उन लोगों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं जो ऑपरेशन सिंदूर और मोदी की प्रशंसा कर रहे हैं।