जिस जमाने में वाट्सएप तो छोडिए, डाकिए तक नहीं थे। उस वक्त घुड़सवार चिट्ठियां लेकर जाते थे। लेकिन ऊबड़-खाबड़ रास्तों और बीच में दुश्मनों के डर के कारण काम मुश्किल था। फिर इसमें टाइम भी ज्यादा लगता है। ऐसे में लोगों को इस काम के लिए कबूतर सबसे मुफीद लगा। ये तरीका काम भी कर गया। मगर सवाल ये है कि कबूतर ही क्यों, तोता-कौआ और भी तमाम पक्षी हैं। लेकिन उन्हें छोड़कर सिर्फकबूरत को ही चिट्ठियां पहुंचाने क्यों चुना गया?

होमिंग कबूतर, ये कबूतरों की एक खास प्रजाति है। इनमें रास्ता खोजने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। इनकी विशेषता है कि ये हमेशा घर वापस लौटते हैं। रिसर्च में भी सामने आया कि कबूतरों को दिशाओं का बहुत अच्छा ज्ञान होता है। ऐसे में कबूतर को कहीं भी छोड़ दिया जाए, वो वापस घर लौट आता है। वहीं, पक्षियों में मैग्निटो रिसेप्शन स्किल पाई जाती है। इसकी मदद से वो बखूबी अंदाजा लगा पाते हैं कि वो धरती पर कहां हैं। इसी का इस्तेमाल कर कबूतर भी धरती के किसी भी कोने से घर वापस लौट आता है। ये भी माना जाता है कि कबूतर सूर्य की स्थिति और कोण का उपयोग करके अपने घर का रास्ता खोज सकते हैं। ऐसे में लोग कबूतरों को इस काम के लिए पालने लगे। वो उनके पैर पर चिट्ठी बांधकर उड़ा देते। फिर कबूतर चिट्ठी पहुंचाकर वापस घर आ जाता।  इस काम में कबूतरों की स्पीड ने उन्हें परफेक्ट बना दिया। कबूतर लगभग 80 से 90 किमी की रफ्तार से उड़ सकते हैं। साथ ही, एक दिन में हजार किमी का सफर तय कर सकते हैं। वहीं, 6 हजार फीट की ऊंचाई पर भी उड़ सकते हैं। उनकी इन खास बातों के चलते ही कबूतरों को चिट्ठी पहुंचाने के लिए सबसे मुफीद माना गया।