अंतरिक्ष की गहराइयों में छिपे रहस्यों को उजागर करने की इंसानी कोशिशें लगातार जारी हैं। लेकिन इस सफर में सबसे बड़ी बाधा रेडिएशन यानी विकिरण बना हुआ है। यह न सिर्फ अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करता है बल्कि अंतरिक्ष अभियानों की सफलता को भी प्रभावित करता है। इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए दिल्ली में एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। जहां विशेषज्ञों ने अंतरिक्ष रेडिएशन की चुनौतियों और उसके समाधान पर विचार-विमर्श किया। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय कुमार सूद ने कहा कि अंतरिक्ष अन्वेषण में सबसे कठिन चुनौतियों में से एक रेडिएशन का प्रभाव है। लंबी अवधि की अंतरिक्ष उड़ानों के दौरान यह अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा करता है। खासतौर पर चंद्रमा और मंगल जैसे दूरस्थ गंतव्यों पर जाने वाले मिशनों में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। 27 फरवरी से 1 मार्च तक दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रयोगशाला, नाभिकीय औषधि एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (INMAS) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय रेडियोबायोलॉजी सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में अंतरिक्ष रेडिएशन, भारी आयनों और मानव अंतरिक्ष मिशनों पर जैविक प्रभावों के समाधान पर चर्चा की गई।

एकीकृृत दृष्टिकोण जरूरी : डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने इस सम्मेलन में कहा कि अंतरिक्ष विकिरण से निपटने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक क्षेत्रों की विशेषज्ञता को मिलाकर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज के समय में अंतरिक्ष की खोज मानवता के भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक हो गई है।

चंद्रमा और मंगल मिशन के लिए महत्वपूर्ण रणनीति : डॉ. कामत के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर लंबे समय तक मानव उपस्थिति और चंद्रमा व मंगल पर भेजे जा रहे मिशनों ने यह साबित कर दिया है कि हम अंतरिक्ष में जीवन बनाए रखने की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी रणनीति और सुरक्षा उपाय विकसित करने की जरूरत है।