हिंदू धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य से पहले कलाई पर कलावा बांधने की परंपरा है, जिसे रक्षा सूत्र या मौली के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रथा वैदिक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यज्ञ के दौरान इसे बांधने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पौराणिक कथाओं में भी इसका उल्लेख मिलता है, जिसमें कहा गया है कि भगवान वामन ने असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए उनकी कलाई पर कलावा बांधा था। सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्यों के दौरान कलाई पर कलावा बांधा जाता है।

कलावा कब बांधना चाहिए :  रक्षा सूत्र कलावा हम किसी भी वार को बांध सकते हैं, लेकिन जिस वार को रक्षा सूत्र बांधे उस दिन का शुभ मुहूर्त जरूर देख लेना चाहिए। लेकिन रक्षा सूत्र जब हाथ के बंधे हुए 21 दिन से ज्यादा हो जाए अर्थात पुराना हो जाए तो उसे उतारने के लिए मंगलवार व शनिवार का दिन सबसे अच्छा माना गया है।

कलावा बांधने के लाभ : शास्त्रों में व पौराणिक कथाओं में कलावा को रक्षा सूत्र के रूप में धारण किया जाता है। रक्षाबंधन पर जब हम अपनी बहनों से रक्षा सूत्र बंधवाते हैं तो यह रक्षा सूत्र हमें उनकी रक्षा हेतु कर्तव्य पालन का बोध करवाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से यह त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश का सूचक भी माना गया है, इसे विधिवत रूप से बांधने से त्रिदेवों की कृपा बनी रहती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कलावा बांधने से ब्लड प्रेशर (बीपी), डायबिटीज, हार्ट संबंधित समस्याओं में व अन्य शारीरिक समस्याओं में भी लाभ मिलता है।  विधिवत नियम पूर्वक कलावा बांधने से मंगल व गुरु ग्रह की अनुकूलता भी प्राप्त होती है।

कलावा बांधने का सही नियम : पुरुषों और अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में रक्षा सूत्र बांधना चाहिए। शादीशुदा महिलाएं बाएं हाथ में रक्षा सूत्र बंधवाएं। कलावा बंधवाते समय उस हाथ की मुट्ठी बंद रखें, मुट्ठी में दक्षिणा रखनी चाहिए और जो कलावा बांधता है उसे वह दक्षिणा दे दी जाती है। कलावा बंधवाते वक्त दूसरा हाथ हमेशा सिर पर रखना चाहिए। कलावा सिर्फ तीन बार ही लपेटाना चाहिए या फिर पांच, सात, नौ बार भी लपेट सकते हैं।