चौतरफा दबाव के बीच कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने प्रधानमंत्री तथा पार्टी प्रमुख के पद से सोमवार को इस्तीफा दे दिया। पिछले 10 वर्षों से ट्रूडो प्रधानमंत्री के पद पर थे। देश में बढ़ती महंगाई, मुद्रा स्फीति तथा हाउसिंग सेक्टर में कीमतों में वृद्धि के चलते कनाडा की जनता में काफी असंतोष था। उनकी लिबरल पार्टी में भी कई नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। कनाडा में कराये गए एक सर्वे के अनुसार लिबरल पार्टी की लोकप्रियता घटकर 20.9 प्रतिशत रह गई थी, जबकि विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी की लोकप्रियता 44 प्रतिशत हो गई है। सर्वप्रथम न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई थी। उसके बाद कनाडा के उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैड ने प्रधानमंत्री से मतभेद के बाद इस्तीफा दे दिया था। वे ट्रूडो सरकार की नीति से काफी नाराज थे। मालूम हो कि इस वर्ष अक्तूबर में कनाडा में चुनाव होने वाले हैं। लिबरल पार्टी का मानना है कि अगर ट्रूडो के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया तो पार्टी की हार निश्चित है। कनाडा में सक्रिय खालिस्तानियों का खुला समर्थन के कारण भी ट्रूडो को खामियाजा भुगतना पड़ा है। खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में ट्रूडो ने लगातार भारत को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा। सबूत के अभाव में ट्रूडो की अंतर्राष्ट्रीय जगत में किरकिरी हुई। अमरीका की शह पर ट्रूडो ने सरेआम भारत विरोधी अभियान चलाया, जिससे कनाडा की जनता भी नाराज हुई। अमरीका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद ट्रूडो पर और दबाव बढ़ गया। ट्रंप ने कनाडा से होने वाले आयात पर टैरिफ लगाने का जो एलान किया उससे वहां की आर्थिक स्थिति और बिगड़ने की आशंका पैदा हो गई है। ट्रंप और ट्रूडो के बीच पहले से ही छत्तीस का रिश्ता है। ट्रंप ने तो कनाडा को अमरीका में विलय करने तक की सलाह दे दी है। ट्रूडो के इस्तीफे को भारत की जीत के रूप में देखा जा रहा है। सिख फॉर जस्टिस के सुप्रीमो गुरपतवंत सिंह पन्नू के समर्थन में अमरीका के बाइडेन प्रशासन ने भी भारत को घेरने का भरसक प्रयास किया था। लेकिन ऐसा लगता है कि इस मामले में गिरफ्तार भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता की सकुशल रिहाई ने इस मामले का पटाक्षेप कर दिया है। यह सबको मालूम है कि कनाडा खालिस्तानियों का गढ़ है। न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी में खालिस्तान समर्थकों की भरमार है। यही पार्टी ट्रूडो सरकार को समर्थन दे रही थी। इसके अलावा अमरीका और ब्रिटेन में भी खालिस्तानियों का एक बड़ा ग्रुप है जो भारत विरोधी कार्यों में लिप्त रहता है। ट्रूडो के शासन में भारत और कनाडा के संबंधों में इतनी खटास आ गई है कि आने वाली सरकारों को संबंधों को पटरी पर लाने के क्षेत्र में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। देखना है कि लिबरल पार्टी अगले चुनाव तक ट्रूडो को कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में बनाये रखती है या नए नेता को प्रधानमंत्री के रूप में मौका देती है। उम्मीद है कि अमरीका में ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद खालिस्तानियों की नकेल कसने के लिए कार्रवाई होगी। भारत सरकार को किसी दूसरे पर निर्भर न रहते हुए खालिस्तानी जैसे राष्ट्रविरोधी तत्वों के खिलाफ कूटनीतिक एवं मैदानी स्तर पर कार्रवाई करनी होगी।