महान वैज्ञानिक डॉ. दौलत सिंह कोठारी 12 जून 1948 को रक्षा मंत्री के प्रथम वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुए। इसके बाद उन्होंने देश में रक्षा विज्ञान के नए अध्याय की शुरुआत करते हुए 40 सीनियर, 100 जूनियर व 25 सहायक वैज्ञानिकों की नियुक्ति की। आज यह संस्थान रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान के नाम से जाना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध में अणु बम गिराए जाने के बाद कोठारी ने सेना और आम जनता के नाम दो व्याख्यान दिए जिनकी प्रधानमंत्री नेहरू ने सराहना की और कोठारी व डॉ. होमी जहांगीर भाभा को इस विषय पर विस्तार से लिखने को कहा। कोठारी ने इस पर एक पुस्तक लिखी जिसे 1956 में न्यूक्लियर एक्सप्लोजन एंड देयर इफेक्ट्स नाम से भारत सरकार ने प्रकाशित किया। इसके रूसी, जापानी व जर्मन में अनुवाद हुए। इसे विश्व भर में सराहा गया। इसके बाद कोठारी भारत में रक्षा विज्ञान के पितामह कहलाए। 1958 में डॉ. कोठारी ने पहली रक्षा विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन किया जिसका उद्घाटन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने किया। उन दिनों भारत सरकार के सामने यह सवाल था कि छोटा जेट लड़ाकू विमान खरीदा जाए या नहीं। इसकी उपयोगिता को लेकर एक्सपर्ट्स भी बंटे हुए थे। तब कोठारी की ही राय निर्णायक साबित हुई। उन्होंने प्रधानमंत्री को दी अपनी सलाह में कहा कि मच्छर की भनभनाहट तो हम सुन सकते हैं किंतु उसे ढूंढकर उस पर निशाना साधना बड़ा कठिन होता है। इसलिए छोटा जेट लड़ाकू विमान हमारे लिए जरूरी है। उसके बाद सरकार ने जेट विमान खरीदने की स्वीकृति दे दी। फिर कोठारी ने अपना ध्यान विजयंत टैंक पर केंद्रित किया जो देश में बना पहला टैंक था। विश्व के अनेक शक्तिशाली देश भारत पाक युद्धों में छोटे जेट लड़ाकू विमान और विजयंत टैंक का कमाल देखकर दंग रह गए। डॉ. कोठारी को 1962 में पद्म भूषण, 1966 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, 1978 में मेघनाथ साहा पुरस्कार और 1973 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।