रिभाऊ उपाध्याय प्रसिद्ध साहित्यकार तथा राष्ट्रसेवी थे। 24 मार्च 1892 कोमहाकाल की नगरी उज्जैन (मध्य प्रदेश) के गांव भौंरोसा में पैदा हुए हरिभाऊ की मृत्यु 25 अगस्त 1972 को हुई। उनकी हिंदी साहित्य को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की ‘मेरी कहानी’ और पट्टाभि सीतारमैया द्वारा लिखित ‘कांग्रेस का इतिहास’ का हिंदी में अनुवाद किया। हरिभाऊ की अनेक पुस्तकें आज हिंदी साहित्य जगत को प्राप्त हो चुकी हैं। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर हरिभाऊ उपाध्याय राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े थे। पुरानी अजमेर रियासत में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्चि के बाद वे अजमेर के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे। विद्यार्थी जीवन से ही इनके मन में साहित्य के प्रति चेतना जाग्रत हो गई थी। संस्कृत के नाटकों तथा अंग्रेजी के प्रसिद्ध उपन्यासों के अध्ययन के बाद ये उपन्यास लेखन की अग्रसर हुए। हरिभाऊ उपाध्याय ने हिंदी सेवा से सार्वजनिक जीवन आरंभ किया और पहले पहल औदुम्बर मासिक पत्र के प्रकाशन द्वारा हिंदी पत्रकारिता जगत में पर्दापण किया। सबसे पहले 1911 में वे औदुम्बर के संपादक बने। पढ़ते-पढ़ते ही इन्होंने इसके संपादन का कार्य भी आरंभ किया। 

महावीर प्रसाद द्विवेदी का सान्निध्य औदुम्बर में अनेक विद्वानों के विविध विषयों से संबद्ध पहली बार लेखमाला निकली, जिससे हिंदी भाषा की स्वाभाविक प्रगति हुई। इसका श्रेय हरिभाऊ के उत्साह और लगन को ही है। सन 1915 ई. में हरिभाऊ उपाध्याय महावीर प्रसाद द्विवेदी के सान्निध्य में आए। हरिभाऊ जी स्वयं लिखते हैं कि- औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुंचाया। द्विवेदी जी के साथ सरस्वती में कार्य करने के पश्चात् हरिभाऊ उपाध्याय ने प्रताप, हिंदी नवजीवन (सन 1921) और प्रभा के संपादन में योगदान दिया और स्वयं मालव मयूर (सन 1922) नामक पत्र निकालने की योजना बनायी किंतु यह पत्र अधिक दिन नहीं चल सका। हरिभाऊ जी का प्रयास हमें भारतेन्दु काल की याद दिलाता है, जब प्रायः सभी हिंदी लेखक बांग्ला से हिंदी में अनुवाद करके साहित्य की अभिवृद्धि करते थे। अनुवाद करने में भी उन्होंने इस बात का सदा ध्यान रखा कि पुस्तक की भाषा लेखक की भाषा और उसके व्यक्तित्व के अनुरूप हो। इस प्रकार हरिभाऊ जी ने अपने साथी जननायकों के ग्रंथों का अनुवाद करके हिंदी साहित्य को व्यापकता प्रदान की। उनके प्रमुख रचनाएं : बापू के आश्रम में, स्वतंत्रता की ओर, सर्वोदय की बुनियाद, श्रेयार्थी जमनालाल जी, साधना के पथ पर, भागवत धर्म, मनन,विश्व की विभूतियां, पुण्य स्मरण, प्रियदर्शी अशोक, हिंसा का मुकाबला कैसे करें, दूर्वादल (कविता संग्रह), स्वामी जी का बलिदान, हमारा कर्त्तव्य और युगधर्म। हरिभाऊ उपाध्याय कई वर्षों तक राजस्थान की शासकीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी रहे।