जब दो लोगों के स्वभाव अथवा उनकी प्रवृत्ति अलग-अलग होती है तो अक्सर कहा जाता है कि दोनों के बीच 36 का आंकड़ा है। इस मुहावरे का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जिनके बीच में बहुत मतभेद होता है और वह एक-दूसरे से मिलना भी पसंद नहीं करते। लेकिन आपके मन में कभी ना कभी यह जिज्ञासा भी उत्पन्न हुई होगी कि इस मुहावरे के लिए 36 संख्या का ही प्रयोग क्यों किया गया है। आखिर यही संख्या इस मुहावरे के लिए उचित क्यों है?आपको जानकर हैरानी होगी कि इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही सरल है और हमारी मातृभाषा हिंदी से ही जुड़ा हुआ है। हम सामान्यतः गिनतियां लिखने और पढ़ने के लिए 1, 2, 3, 4... आदि संख्याओं का उपयोग करते हैं। जो कि रोमन संख्याएं हैं। इसलिए इस प्रश्न का उत्तर इन संख्याओं में नहीं छिपा है। हम जानते हैं कि 36 का आंकड़ा एक हिंदी मुहावरा है। और हिंदी देवनागरी में अंकों को 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9... किस प्रकार लिखा जाता है। जहां 3 को 3 और 6 को 6 लिखा जाता है। अब गौर से देखने पर आपको पता चलेगा कि यह दोनों अंक आईने के सामने रखी किसी चीज के प्रतिबिंब की तरह दिखते हैं। इसलिए 3 को यदि पलट कर लिखेंगे तो 6 हो जाएगा। जिस प्रकार एक-दूसरे की सोच से सहमत ना होने वाले लोग एक-दूसरे के विपरीत खड़े होते हैं उसी प्रकार यह दोनों अंक भी विपरीत दिशा में मुख किए हुए प्रतीत होते हैं। जिससे आपस में विरोध प्रकट होता है। हालांकि हम आज रोमन संख्याओं का अधिक प्रयोग करते हैं परंतु प्राचीन काल में देवनागरी संख्याएं ही पढ़ी लिखी जाती थी। अभी इसी तर्क का सहारा लेते हुए 36 का आंकड़ा मुहावरा बना दिया गया। जो कि उन व्यक्तियों के चरित्र का वर्णन करता है जो आपस में बिल्कुल भी सहमति प्रकट नहीं करते हैं और एक दूसरे की हर बात को काटते हैं।