हालांकि अभी तक राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं मिजोरम में चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की विधिवत घोषणा नहीं की गई है, किंतु भाजपा अभी से ही पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है। इन राज्यों में कभी भी चुनाव कराने की घोषणा हो सकती है। संसद के दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा से नारी शक्ति वंदन (महिला आरक्षण विधेयक) पारित करवाने के बाद भाजपा पूरी तरह चुनावी मैदान में कूद चुकी है। हालांकि कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक पाॢटयां महिला आरक्षण विधेयक पारित करवाने का श्रेय लेने से पीछे नहीं हट रही हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाकर महिला आरक्षण विधेयक पारित करवा कर जो मास्टर स्ट्रोक खेला है उसका लाभ पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव तथा लोकसभा चुनाव में निश्चित रूप से मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में स्पष्ट रूप से कहा है कि विपक्षी पाॢटयों ने मजबूरी में नारी शक्ति वंदन विधेयक का समर्थन किया है। सभी राजनीतिक पाॢटयों को मालूम है कि चुनाव जीतने के लिए महिला मतदाताओं का समर्थन पाना आवश्यक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए कांग्रेस पर करारा हमला किया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में राज्यों का विकास नहीं हो पाया क्योंकि यह पार्टी भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी।
अभी विपक्षी पाटयां अपनी रणनीति बनाने में ही जुटी हुई हैं, जबकि भाजपा ने टिकट बंटवारे का काम भी शुरू कर दिया है। मध्यप्रदेश में भाजपा ने अब तक उम्मीदवारों की दो सूची जारी की है, जिसमें 79 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी गई है। भाजपा की दूसरी सूची में तीन केंद्रीय मंत्रियों क्रमश: नरेन्द्र सिंह तोमर, फग्गन ङ्क्षसह फुलस्ते एवं प्रह्लाद पटेल सहित सात सांसदों को विधानसभा का टिकट दिया गया है। मालूम हो कि इन 79 सीटों में से केवल तीन सीटों पर ही वर्ष 2018 में भाजपा को जीत मिली थी। बाकी सीटों पर कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी का कब्जा था। इनमें से 52 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार भारी बहुमत से पराजित हुए थे। इस बार भाजपा हारे हुए सीटों पर फिर से कब्जा जमाने के लिए पूरी रणनीति के साथ उतर रही है। छत्तीसगढ़ में भी भाजपा ने टिकट बांटना शुरू कर दिया है। अब तक के चुनाव प्रचार से ऐसा लग रहा है कि भाजपा पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बिना सीएम फेस के ही मैदान में उतरेगी। अभी तक भाजपा राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में लगातार सामूहिक नेतृत्व की बात कर रही है। मिजोरम और तेलंगाना के लिए भी यही रणनीति होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार भाजपा किसी पुराने नेता की एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को हावी होने देना नहीं चाहती है। ऐसे में पार्टी सीएम चेहरे को साथ तो रखना चाहती है, किंतु उसको सार्वजनिक करने से बच रही है। पिछली गलतियों से सबक लेते हुए भाजपा किसी एक चेहरे के भरोसे उतरने का जोखिम नहीं ले रही है। मध्यप्रदेश के जारी उम्मीदवारों की अब तक की सूची में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम शामिल नहीं है। ऐसी चर्चा है कि पार्टी उनको दरकिनार कर दूसरे नेता पर दांव लगा सकती है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि शिवराज का कद जस का तस ही रहेगा। राजस्थान में भी कमोबेस यही स्थिति है। राजस्थान में वसुंधरा और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के भरोसे भाजपा नहीं रहना चाहती है। वसुंधरा को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। भाजपा वसुंधरा को किनारे करने की बजाय विकल्प खुला रखना चाहती है। केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल को वसुंधरा के प्रतिद्वंद्वियों के तौर पर देखा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में भी पार्टी रमन ङ्क्षसह और अरुण साव का विकल्प रखकर चल रही है, लेकिन चुनाव से पहले कुछ भी तय करने की योजना नहीं है। भाजपा ने 2017 में यूपी में भी ऐसा किया था जिसका लाभ चुनाव में मिला था। इन राज्यों में भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि को आगे कर ही चुनाव लड़ेगी और चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के उम्मीदवार का फैसला हो जाएगा। भाजपा की आंतरिक गुटबाजी भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करने का बड़ा कारण माना जा रहा है।