भगवान शिव के चमत्कारों की कोई सीमा नहीं। वह देवों के भी देव हैं और हर काल मेंअपने अस्तित्व का दर्शन कराते हैं। मध्य प्रदेश के खजुराहो में ऐसा ही चमत्कारिक शिव मंदिर है, जो आधुनिक विज्ञान के सामने किसी चुनौती से कम नहीं है। मध्य प्रदेश के खजुराहो शहर में प्राचीन भगवान शिव का मंदिर है। जो मतंगेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर में देवाधिदेव महादेव का अनोखा शिवलिंग है, जो हर वर्ष आकार में एक इंच बढ़ जाता है। इस बात की पुष्टि श्रद्धालुओं के साथ वहां मौजूद सरकारी कर्मचारी पूरी तरह वैज्ञानिक नाप जोख करने के बाद करते हैं।
प्रेम के देवता हैं मतंगेश्वर : खजुराहो का मतंगेश्वर महादेव मंदिर किसी महान आश्चर्य से कम नहीं है। इस मंदिर में विशाल शिवलिंग मौजूद है, जो ढाई मीटर ऊंचा और एक मीटर व्यास का है। मान्यता है कि यह शिवलिंग जितना जमीन के ऊपर है, उतना ही जमीन के नीचे भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर में शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। जिसकी वजह से यह मंदिर आदि देव और आदिशक्ति के पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
चमत्कारिक है यह शिवलिंग : मतंगेश्वर शिवलिंग का आकार धरती के ऊपर और नीचे हर साल बढ़ जाता है। धरती के अंदर तो इस शिवलिंग की वृद्धि की पुष्टि करना संभव नहीं। लेकिन धरती के ऊपर हर साल की कार्तिक पूर्णिमा के दिन पर्यटन विभाग के कर्मचारी आकर इस शिवलिंग की माप करते हैं। जिससे पता चलता है कि इस शिवलिंग का आकार हर साल बढ़ रहा है।
मनोकामना पूर्ति लिंग है मतंगेश्वर मतंगेश्वर महादेव का यह मंदिर मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जाना जाता है। यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इस मंदिर में प्रतिदिन नियमपूर्वक पूजा अर्चना की जाती है।
मतंग ऋषि से संबंधित है यह मंदिर : इस मंदिर का नाम मतंगेश्वर महान मतंग ऋषि के नाम पर पड़ा है। वैसे तो यह स्थान अति प्राचीन बताया जाता है। क्योंकि आदिकाल में यहां शिव पार्वती का पाणिग्रहण हुआ था। लेकिन इस मंदिर परिसर का निर्माण महाभारत काल का माना जाता है। लेकिन इसका वर्तमान स्वरुप 9वीं शताब्दी में हुए जीर्णोद्धार के तहत कराया गया। तब से यह मंदिर इसी रूप में है।
ये है मंदिर के चमत्कारिक होने के कारण : इस मंदिर का निर्माण एक विशेष मणि रत्न के ऊपर कराया गया है। यह मणि स्वयं भगवान शिव ने सम्राट युधिष्ठिर को प्रदान की थी। बाद में संन्यास धारण करते समय युधिष्ठिर ने इसे मतंग ऋषि को दान में दे दिया था। मतंग ऋषि के पास से यह मणि राजा हर्षवर्मन के पास आई। जिन्होंने लोक कल्याण के लिए इस मणि को धरती के नीचे दबाकर उसके ऊपर इस मंदिर का निर्माण कराया। सबकी मनोकामना पूरी करने वाली इस मणि के कारण ही यहां आने वाले हर व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती है। चूंकि यह मणि मतंग ऋषि द्वारा प्रदान की गई थी। इसलिए इस मंदिर को मतंगेश्वर (मतंग के ईश्वर) का नाम मिला।