जब भी देश के इतिहास में महान राजाओं के बारे में बात होगी तो शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का नाम इसमें जरूर आएगा।पंजाब पर शासन करने वाले महाराजा रणजीत सिंह ने 10 साल की उम्र में पहला युद्ध लड़ा था और 12 साल की उम्र में गद्दी संभाल ली थी। वहीं 18 साल की उम्र में लाहौर को जीत लिया था। 40 वर्षों तक के अपने शासन में उन्होंने अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के आसपास भी नहीं फटकने दिया। दशकों तक शासन के बाद रणजीत सिंह का 27 जून, 1839 को निधन हो गया, लेकिन उनकी वीर गाथाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। महाराजा रणजीत सिंह का जन्म महा सिंह और राज कौर के परिवार में पंजाब के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में 13 नवंबर 1780 को हुआ था।
छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी चली गई थी। जब वे 12 साल के थे, तभी उनके पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर आ गया। उस समय पंजाब प्रशासनिक तौर पर टुकड़े-टुकड़े में बंटा था। इनको मिस्ल कहा जाता था और इन मिस्ल पर सिख सरदारों की हुकूमत चलती थी। रणजीत सिंह के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिस्ल के कमांडर थे, जिसका मुख्यालय गुजरांवाला में था। महाराजा रणजीत सिंह ने अन्य मिस्लों के सरदारों को हराकर अपने सैन्य अभियान की शुरुआत की।
7 जुलाई, 1799 को उन्होंने पहली जीत हासिल की। उन्होंने चेत सिंह की सेना को हराकर लाहौर पर कब्जा कर लिया, जब वे किले के मुख्य द्वार में प्रवेश किया तो उन्हें तोपों की शाही सलामी दी गई। उसके बाद उन्होंने अगले कुछ दशकों में एक विशाल सिख साम्राज्य की स्थापना की। इसके बाद 12 अप्रैल, 1801 को रणजीत सिंह की पंजाब के महाराज के तौर पर ताजपोशी की गई। गुरु नानक जी के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। महज 20 साल की उम्र में उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की थी।