रानी अब्बक्का एक मातृवंशीय परंपरा का पालन करने वाले वंश से ताल्लुक रखती थीं। बता दें कि मातृवंशीय परंपरा प्राचीन समय की एकऐसी सामाजिक व्यवस्था है, जहां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती थी। इसके तरह अब्बक्का के तिरुमला राय ने रानी अब्बक्का को उल्लाल नगर की रानी का ओहदा सौंपा था। इस दौरान रानी अब्बक्का ने समाज के नीति-निर्माण में अपनी एक अहम भूमिका अदा की है। इतिहास के अनुसार 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के साथ युद्ध किया और रानी ने अपनी चतुर रणनीति बनाकर उन्हें पराजय कर दिया।
बता दें कि इस समय पुर्तगालियों ने गोवा पर आक्रमण कर उस पर अपना अधिग्रहण जमा लिया था। इसके बाद पुर्तगाली वहां के हिंदू निवासियों पर अत्याचार किया करते थे। उसके बाद पुर्तगालियों ने मंगलौर यानी उल्लाल पर कब्जा किया और मंगलौर बंदरगाह को नष्ट कर दिया। यह रानी को कतई रास नहीं आया और उन्होंने पुर्तगालियों को हरा दिया।
यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मंगलौर उर्फ उल्लाल की रानी अब्बक्का को पहली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है। क्योंकि पुर्तगालियों ने उल्लाल शहर और वहां रहने वाले सभी लोगों को लगभग 4 साल परेशान किया लेकिन अंत में रानी उन्हें भगाने में कामयाब रहीं। उनका योगदान और साहस को भारत कभी नहीं भूल पाएगा। लेकिन आज उनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं दब गया है।
भले ही भारत उनके योगदान को भूल गया हो लेकिन आज भी उनके शहर मंगलौर यानी उल्लाल में उनके बलिदान को याद किया जाता है। हर वर्ष उनकी याद में वीर रानी अब्बक्का के नाम से उत्सव मनाया जाता है। साथ ही, यहां महिलाओं को रानी अब्बक्का के नाम से भी पुरस्कार भी दिया जाता है। इसके अलावा, यहां रानी के नाम से एक पत्थर की मूर्ति भी स्थापित की गई है।