हमारी धरती का 75 प्रतिशत हिस्सा पानी में डूबा हुआ है। सात महाद्वीपों के साथ चार महासागर जीवन का आधार हैं। हालांकि, नैशनल जियोग्राफिक के मुताबिक महासागर चार नहीं बल्कि पांच हैं। इसके मुताबिक अंटार्कटिका के पास दक्षिणी महासागर भी अपने आप में एक अलग महासागर है और उसे आर्कटिक, अटलांटिक, हिंद और प्रशांत महासागर के साथ जगह मिलनी चाहिए। नैशनल जियोग्राफिक सोसायटी जियोग्राफर अलेक्स टेट के मुताबिक वैज्ञानिक तो अंटार्क टिक दक्षिणी महासागर को अलग मानते रहे हैं लेकिन कभी अंतरराष्ट्रीय सहमति नहीं बन पाई जबकि दुनिया का यह हिस्सा बेहद खास है।
अब तक कहां छिपा था? नैशनल जियोग्राफिक के मुताबिक यह महासागर अंटार्कटिका के तट से 60 डिग्री दक्षिण की ओर है और दूसरे देशों से किसी महाद्वीप नहीं बल्कि अपने करंट की वजह से अलग होता है। इसके अंदर आने वाले इलाका अमरीका से दोगुना है। सोसायटी आमतौर पर इंटरनैशनल हाइड्रोग्राफिक ऑर्गनाइजेशन के नामों को मानती है जिसने 1937 की गाइडलाइन्स में दक्षिणी महासागर को अलग माना था लेकिन 1953 में इसे बाहर कर दिया। इसके बावजूद अमरीका के जियोग्राफिक नेम्स बोर्ड ने 1999 से दक्षिणी महासागर नाम का इस्तेमाल किया है। फरवरी में राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय संचालन ने इसे मान लिया।
खतरों से घिराः यह कदम कई मायने में खास है। नैशनल जियोग्राफिक एक्सप्लोरर एनरिक साला ने बताया है कि दक्षिणी महासगर में बेहद अनोखे और नाजुक जलीय ईकोसिस्टम पाए जाते हैं जहां वेल, पेंग्विन्स और सील्स जैसे जीव रहते हैं। ऐसी हजारों प्रजातियां हैं जो सिर्फ यहीं रहती हैं, और कहीं नहीं पाई जातीं। इस क्षेत्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों का काफी असर पड़ा है। ऐसे में संरक्षण की जरूरत के चलते भी इसे अलग से मान्यता देना अहम हो जाता है।
कब बना था? एक खास अंटार्कटिक सर्कमपोलर करंट भारी मात्रा में पानी ट्रांसपोर्ट करता है और दुनियाभर में ऐसे सर्कुलेशन सिस्टम को चलाता है जो धरती पर गर्मी ट्रांसपोर्ट करता है। नैशनल जियोग्राफिक 1915 से मैप तैयार कर रहा है और इसके करंट के आधार पर कार्टोग्राफर्स ने यह फैसला किया है। वर्ल्ड वाइड फंड के मुताबिक यह महासागर सबसे हाल में बना महासागर हुआ। यह 3 करोड़ साल पहले बना था जब अंटार्कटिका और दक्षिण अमरी का एक-दूसर से अलग हुए थे। टेट का कहना है कि इस महासागर के बारे में लोगों को अलग से बताया-पढ़ाया नहीं गया तो इसकी जरूरतों, अहमियत और खतरों को समझा नहीं जा सकेगा।