दान करना अच्छी बात है पर दिखावे वाला दान का कोई औचित्य नहीं। मेरी ही पड़ोसी को देख लें, नाम है कनक।  बिना फोटो खिंचवाए तो वो पांच रुपए भी दान नहीं करती थी। पिछले साल की बात है मकर संक्रांति को चली गई सरकारी अस्पताल में फल, बिस्कुट और कंबल वितरण करने। न इंसानों की हैसियत देखी की कौन-कौन दान के हकदार हैं और न ही उनकी इच्छा। मंदिर के पुजारी की पत्नी कमला भी अस्पताल में भर्ती थी। कनक ने बड़ा-सा पैकेट थमाकर पोज दिया और शाम को ही फोटो पूरी सोसायटी में वायरल हो गई थी। कमला की बहू दनदनाती हुई आई थी मेरे पास और बोली, ‘हमें क्या भिखारी समझ रखा है। ब्राह्मण हैं दान सामग्री ले लेते हैं तो क्या हमारी कोई मर्यादा नहीं है। कनक भाभी को ऐसा नहीं करना चाहिए। मैंने उसे समझा कर कहा, ‘कमला भाभी को भी तो रोकना चाहिए था। हम ऐसी हरकतों को रोकते नहीं तभी तो सब हिम्मत करते हैं।’ 

कनक में कोई बदलाव नहीं आया वो जो थी उससे थोड़ा भी नहीं बदली। कल ही आई थी मेरे घर पर और इतरा रही थी, ‘भाभी इस बार मकर संक्रांति को चौदह स्कूल बैग लाई हूं।’ मैंने कहा, ‘अच्छी बात है। मेरी कामवाली को भी दे देना। बेचारी बहुत गरीब है।’ वो दूसरे दिन ही आ गई, ‘भाभी आपकी कामवाली को बुलाइए। मैं उसके साथ फोटो ले लेती हूं। मकर संक्रांति को सरकारी स्कूल जाऊंगी तो वक्त लग जाएगा। बैग उस दिन दे दूंगी।’ मुझे गुस्सा तो बहुत आया फिर भी मैंने कामवाली को आवाज दे बुलवा दिया। कनक सेल्फी लेने लगी और मुझे कहने लगी, ‘भाभी आप भी आइए।’ मैंने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘कनक मुझे नजारों और दिलचस्प चीजों के साथ फोटो लेना पसंद है। यहां दोनों ही नहीं है। सिर्फ बेबसी ही दिखाई पड़ रही है।’ कनक ने फट मोबाइल को पर्स में डाल दिया। मुझसे कहने लगी, ‘इस बार आस-पड़ोस के गरीब बच्चों को बांट दूंगी। दान ही तो करना है।’ मुझे अच्छा लगा उसकी बात सुनकर। एक अजीब-सा विचार आया चुप्पी अच्छी बात है लेकिन! कुछ अनुचित हो रहा हो तो बोलना भी चाहिए !!! 


ऋतु अग्रवाल