गुवाहाटी : राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने आईआईटी गुवाहाटी में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूर्वोत्तर भारत की भागीदारी विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। उद्घाटन समारोह में राज्यपाल प्रो. मुखी ने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में असम की भूमिका साहस, वीरता और सर्वोच्च बलिदान की प्रदर्शनी थी, जिसकी शुरुआत गोमधर कोंवर से हुई, जिन्होंने 1828 में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ असम के प्रतिरोध की शुरुआत की, जिसके बाद सर्वोच्च बलिदानों की एक कड़ी थी, जिसका समापन वर्ष 1947 में देश की स्वतंत्रता के रूप में हुआ। राज्यपाल प्रो. मुखी ने आगे कहा कि हालांकि स्वतंत्रता संग्राम में असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की भागीदारी और योगदान तथा प्रतिनिधित्व का का पर्याप्त निदर्शन प्राप्त होता है। परंतु देश के अन्य प्रांतों को स्वतंत्रता आंदोलन में असम की भूमिका के बारे में सही संदर्भ में जानकारी नहीं मिल रही है। इसलिए, उन्होंने इस संगोष्ठी आयोजित करने के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया। उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि इससे पूर्वोत्तर भारत के अध्ययन के लिए विशेष केंद्र, जेएनयू, आईआईटी-गुवाहाटी और पूर्वोत्तर अध्ययन केंद्र को देश भर के लोगों को देश की स्वतंत्रता आंदोलन में असम के योगदान के बारे में निष्पक्ष विचार प्राप्त करने में सक्षम करेगा। राज्यपाल ने कहा कि जब गोमधर कोंवर ने इस क्षेत्र को विदेशी शासन के खिलाफ आवाज उठाने का रास्ता दिखाया, तो राज्य के किसानों ने अपनी राष्ट्रवादी भावनाओं और अंग्रेजों के खिलाफ अपने प्रतिरोध को दिखाने के लिए केंद्र में कदम रखा। पहाड़ी राज्यों के लोगों ने भी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उन्होंने यह भी कहा कि पहाड़ियों में अग्रेज शासकों को विस्तार के लिए भयंकर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। खासी नेता यू तीरत सिंह के नेतृत्व में खासी लोगों ने 1829 से 1833 तक अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। राज्यपाल ने कहा, 1830 और 1860 के बीच, सिंगफो, खामटि, नागा, गारो आदि पहाड़ी जनजातियों  ने ब्रिटिश विस्तारवादी नीतियों को कड़ी चुनौती दी। अंग्रेजों के खिलाफ जनता द्वारा प्रतिरोध के बारे में बात करते हुए राज्यपाल ने कहा कि फुलगुरी और पथरूघाट में किसान आंदोलन हमेशा ब्रिटिश राज के खिलाफ असम की लड़ाई के एक शानदार उदाहरण के रूप में रहेगा। प्रो. मुखी ने यह भी कहा कि जब महात्मा गांधी ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व संभाला, तो असम और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के लोगों ने विदेशी शासन के प्रति असहिष्णुता प्रदर्शन करने के लिए असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि सभी आंदोलनों में भाग लिया। उन्होंने अपने भाषण के दौरान मनीराम दीवान, पियाली फुकन, कनकलता बरुवा, कुशल कोंवर, भोगेश्वरी फुकननी, नवीन चंद्र बरदलै, तरुणराम फुकन, गोपीनाथ बरदलै और कई अन्य लोगों को भी याद किया और मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए उनके अद्वितीय बलिदानों के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि इस पृष्ठभूमि में, देश के स्वतंत्रता आंदोलन में पूर्वोत्तर राज्यों की भूमिका और योगदान पर इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के लिए आयोजक विशेष धन्यवाद की पात्र है। उन्होंने कहा कि दो दिवसीय संगोष्ठी में असम और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में पूर्वोत्तर की भूमिका के बारे में सही संदर्भ में अखिल भारतीय परिदृश्य पर पेश करने के लिए कई तथ्यों का पता लगाने के लिए विचार-विमर्श होगा। इस अवसर पर कुलपति, एनईएचयू, शिलांग, प्रोफेसर प्रभा शंकर शुक्ला, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग आईआईटी-गुवाहाटी डॉ. सुकन्या शर्मा, प्रोफेसर विनय कुमार राव, आयोजन सचिव डॉ. गौरव त्रिवेदी और कई अन्य गण्यमान्य व्यक्तियों ने भी संगोष्ठी में अपने वक्तव्य रखे।