शिवजी की कृृपा पाने के लिए रुद्र्राक्ष पहनने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। रुद्र्र्राक्ष की उत्पत्ति शिवजी के आंसुओं से हुई है। इस संबंध में कहा जाता है कि एक बार शिवजी ध्यान में बैठे थे और उस समय उनकी आंखों से आंसु गिरे। ये आंसु ही रुद्र्राक्ष के वृक्ष में बदल गए। एक मुखी से 14 मुखी तक के रुद्र्राक्ष होते हैं। जानिए रुद्र्राक्ष से जुड़ी खास बातें-
रुद्र्राक्ष से जुड़ी सावधानियांः जो लोग रुद्र्राक्ष धारण करते हैं, उन्हें अधार्मिक कामों से बचना चाहिए। मांसाहार न करें और सभी का सम्मान करें। भूलकर भी अपने माता-पिता का अनादर न करें, उनकी सेवा करें। नशा न करें। जो लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं, उन्हें रुद्र्राक्ष पहनने का लाभ नहीं मिल पाता है।
3 तरह के होते हैं रुद्र्र्राक्षः तीन तरह के रुद्र्र्राक्ष होते हैं। कुछ रुद्र्र्राक्ष आकार में आंवले के समान होते हैं। ये रुद्र्राक्ष सबसे अच्छे माने जाते हैं। कुछ रुद्र्र्राक्ष बेर के समान होते हैं, इन्हें मध्यम फल देने वाला माना जाता है। तीसरे प्रकार के रुद्र्राक्ष का आकार चने के बराबर होता है। इन रुद्र्र्राक्षों को सबसे कम फल देने वाला माना गया है।
कैसे रुद्र्राक्ष धारण न करेंः अगर किसी रुद्र्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या टूटा-फूटा हो या पूरा गोल न हो, ऐसे रुद्र्राक्ष धारण करने से बचना चाहिए। जिस रुद्र्राक्ष में उभरे हुए छोटे-छोटे दाने न हों, ऐसे रुद्र्राक्ष नहीं पहनना चाहिए। जिन रुद्र्राक्षों के बीच में अपने आप छेद हो गया है, वह श्रेष्ठ माने गए हैं। इन छेदों में धागा डालकर धारण किया जाता है।
ये है रुद्र्राक्ष धारण करने की सरल विधिः रुद्र्र्राक्ष सोमवार को धारण करना चाहिए। आप चाहें तो इसी दिन रुद्र्राक्ष खरीद सकते हैं। इसके अलावा किसी अन्य शुभ मुहूर्त में भी रुद्र्राक्ष धारण किया जा सकता है। रुद्र्राक्ष खरीदने के बाद किसी शिव मंदिर में रुद्र्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत या गंगाजल डालकर पवित्र करें। अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप-दीप, फूल आदि से शिवलिंग और रुद्र्राक्ष की पूजा करें। शिव मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप 108 बार करें। लाल धागे में, सोने या चांदी के तार में पिरोकर रुद्र्राक्ष धारण कर सकते हैं। रुद्र्राक्ष धारण करने के बाद रोज सुबह शिवजी की पूजा करनी चाहिए। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाना चाहिए और धर्म के अनुसार कर्म करते रहना चाहिए।