चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रचार अपनी इंतहा पर है। जैसे 20-20 क्रिकेट मैंच में 15 ओवर के बाद बैंटिंग कर रही टीम का बल्लेबाज चौके पर चौके और छक्के पर छक्के मारता है, उसी प्रकार सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी व उनके स्टार प्रचारक आमसभाओं व रैलियों में शब्दों के छक्के-चौके बरसा रहे है। उधर, चुनाव आयोग भी ‘एक अंपायर’ की तरह सभी पार्टियों के चुनाव प्रचार पर दूरबीन की नजर गड़ाए देख रहा है और इसका परिणाम भी बहुत उज्वल दिखाई दे रहा है। चुनाव आयोग ने टीएमसी की सुप्रीमों को भड़काऊ भाषण देने का दोषी पाकर उन्हे 24घंटे चुनाव प्रचार से बाहर रहने का निर्णय देकर अपनी बेबाक भूमिका जाहिर कर दी। साथ ही उसने भाजपा के सिन्हा को भी 48 घंटे के लिए चुनाव प्रचार से बाहर कर दिया। अब संभव है कि यह सब देखकर कोई पार्टी एक अंपायर के रूप में उसकी भूमिका पर संदेह का प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं कर सकती! ये नेता भी न जाने क्या गजब की चीज होते है। यकीन न आए तो एक नमूना देख लीजिए।एक पार्टी के एक स्टार प्रचारक अपने पार्टी के एक उम्मीदवार के पक्ष में एक विशाल आमसभा को संबोधित कर रहे थे। वे भाषण देने के दौरान इतने जोश में आ गए कि अपने ही होश खो बैठे और बोले-‘ फलां....फलां पार्टी जिसने यहां लंबे समय तक सत्ता में रहकर राज किया, लेकिन उसने जनता के लिए क्या किया? कुछ भी नहीं न?( वे इतना बोले ही थे कि उनका पीए उनके कान के पास आकर धीरे से बोला-‘भाईसाहब, आप जिस पार्टी की आलोचना कर रहे है, इस बार अपनी पार्टी का उससे चुनावी गठबंधन है और वह हमारी सहयोगी पार्टी के रूप मे चुनाव लड़ रहीं है, इसलिए आप अपनी बैट स्वंय होकर स्टम्प में मत मारिए, नहीं तो हमारा यह उम्मीदवार आउट हो जाएगा और साथ ही अपनी पार्टी भी सत्ता संधर्ष से बाहर हो जाएगी।) उनका इस बात की तरफ घ्यान दिलाते ही उन्होने अपनी जुबान बदली और बोले-‘साली जुबान भी न जाने क्या चीज है, कितना भी संभालों, कहीं न कहीं फिसल ही जाती है।क्षमा कीजिए, आप फलां..फलां उम्मीदवार को अधिकाधिक वोट देकर उसे राजधानी भेजिए। धन्यवाद’।
हर एक लोकसभा और विधानसभा चुनावों में हर बार कोई न कोई ‘नया जुमला’ रंग लाता ही है। इस बार के चुनाव में हमें -‘खेला होबे’, ‘विकास होबे’ और ‘दीदी-ओ-दीदी’ जैसे जुमले सुनने को मिले, जो हिट ही नहीं,बल्कि सुपर डुपर हिट हुए। अब यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि इस बार कौनसा जुमला निर्णायक साबित होता है ? ‘खेला होबे’ या ‘दीदी- ओ-दीदी’।
डॉ. विलास जोशी
इंदौर, म.प्र.