भारत में कोरोना की दूसरी लहर प्रचंड होती जा रही है। फरवरी महीने में जहां रोजाना औसतन 11,000 नए केस सामने आ रहे थे, वह अब 9 गुना से भी ज्यादा बढ़ गए हैं। मंगलवार को तो देशभर में कोरोना संक्रमण के 1 लाख 15 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए। आखिर, संक्रमण में इतनी तेजी से उछाल की क्या वजह है? क्या वायरस का कोई नया वैरिएंट पैदा हुआ है जो इतनी तेजी से फैल रहा है? विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत कोरोना संक्रमण के पॉजिटिव सैंपलों की प्रयोगशालाओं में पर्याप्त जांच-पड़ताल करने में नाकाम रहा है। इसलिए उसके पास पर्याप्त डेटा ही नहीं हैं जो तेजी से बढ़ते केस की वजह समझने में मददगार साबित हो सकें। ब्लूमबर्ग की एक ताजा रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से चेताया गया है कि अगर भारत जेनेटिक सिक्वेंसिंग के आंकड़ों को समय रहते तेजी से नहीं बढ़ाता है तो न सिर्फ इलाज मुश्किल हो जाएगा बल्कि यह नौबत भी आ सकती है कि वैक्सीन का वायरस पर कोई खास असर ही न हो। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर भारत पॉजिटिव सैंपलों की तेजी से जेनेटिक सिक्वेंसिंग नहीं करेगा तो कोरोना के खिलाफ उसकी जंग बहुत ही कमजोर हो जाएगी। न अस्पतालों में कारगर इलाज हो पाएगा और न ही वायरस के खिलाफ वैक्सीन ज्यादा कारगर साबित होगी। दरअसल, कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में टेस्टिंग तो महत्वपूर्ण है ही, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है पॉजिटिव सैंपलों की जीनोम सिक्वेंसी का अध्ययन। जो लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं, उनमें से तमाम के सैंपलों की आगे इस बात की जांच होती है कि वायरस का कोई नया वैरिएंट तो नहीं पैदा हो रहा या उसमें कोई ऐसा बदलाव तो नहीं हो रहा जो ज्यादा खतरनाक और संक्रामक हो। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी के मुताबिक भारत के पास कोरोना वायरस के नए वैरिएंट से जुड़े पर्याप्त डेटा ही नहीं हैं जो बता सकें कि संक्रमण में अचानक जबरदस्त उछाल की वजह कुछ नए वैरिएंट्स हैं या नहीं। भारत पॉजिटिव सैंपलों की जेनेटिक सिक्वेंसिंग के मामले में ब्रिटेन और अमरीका जैसे देशों के मुकाबले काफी पीछे है। सरकारी डेटा के मुताबिक भारत ने अपने पॉजिटिव सैंपलों के 1 प्रतिशत से भी कम की जेनेटिक सिक्वेंसिंग की है। दूसरी तरफ ब्रिटेन में यह आंकड़ा 8 प्रतिशत है। पिछले हफ्ते तो यूके ने पॉजिटिव सैंपलों में से 33 प्रतिशत की यानी एक तिहाई की लैब में आगे की पड़ताल के लिए जांच की। वहीं अमरीका ने भी पिछले महीने बताया कि वह नए केसों में से करीब 4 प्रतिशत सैंपलों की जेनेटिक सिक्वेंसिंग कर रहा है। ब्रिटेन में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट मिलने के बाद जब पिछले साल दिसंबर में भारत में भी वहां से आने वाले कुछ यात्रियों के उससे संक्रमित होने के मामले सामने आए तब नई दिल्ली ने सैंपलों की जांच के लिए 10 सरकारी लैब के कंसोर्टियम का गठन किया। हालांकि, जनवरी से लेकर मार्च तक भारत ने महज 11,064 सैंपलों की सिक्वेंसिंग की। यह जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय ने 30 मार्च को दी थी। इस तरह भारत में उस वक्त के नए केसों के 0.6 प्रतिशत से भी कम सैंपलों की सिक्वेंसिंग हुई। हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक, भारत में 30 मार्च तक कोरोना के यूके वैरिएंट्स से जुड़े 807 केस, दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन के 47 और ब्राजीलियन वैरिएंट का एक मामला सामने आया था। मंत्रालय कहता आया है कि नए मामलों में तेजी से उछाल का नए वैरिएंट्स से कोई संबंध नहीं है। अभी तक जो स्टडी हुए हैं, उनके मुताबिक इन नए स्ट्रेन्स में से कुछ बहुत ज्यादा तेजी से फैलने वाले हैं जबकि इनमें से एक बहुत ज्यादा घातक है। एक अन्य स्ट्रेन में संक्रमण से उबर चुके लोगों को दोबारा संक्रमित करने की क्षमता है। भ्रमर मुखर्जी कहते हैं कि आप संक्रमण को जितना ज्यादा फैलने देंगे, वायरस के म्यूटेट होने के चांस भी उतने ज्यादा बढ़ेंगे। हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मॉलिक्यूलर बायॉलजी (सीसीएमबी) भी भारत के उन 10 लैब में शामिल है जहां पॉजिटिव सैंपलों की जेनेटिक सिक्वेंसिंग हो रही है। सीसीएमबी के डायरेक्टर राकेश मिश्रा सिक्वेंसिंग की चुनौतियों के बारे में कहते हैं कि भारत के पास जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए पर्याप्त लैब क्षमता है लेकिन देशभर से नियमित तौर पर सैंपलों को हासिल करना चुनौतीपूर्ण है। खासकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों और संभावित सुपर-स्प्रेडर इवेंट्स से सैंपलों को नियमित तौर पर हासिल करना समस्या है।' केरल बेस्ड अर्थशास्त्री और पब्लिक हेल्थ पॉलिसी ऐनालिस्ट रिजो एम. जॉन के मुताबिक, वैक्सीनेशन की धीमी गति, लोगों की लापरवाही, सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क जैसे नियमों का पालन नहीं करने की वजह से नए केस तेजी से बढ़ रहे हैं। जॉन विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी कंसल्टेंट के तौर पर जुड़े हुए हैं। वह भारत में दूसरी लहर को लेकर आगाह करते हैं कि अभी तक दूसरी लहर कम घातक है यानी मृत्यु दर कम है लेकिन यह पहली लहर से कहीं ज्यादा बुरी रहने वाली है। जॉन के मुताबिक, लोगों में वैक्सीन को लेकर हिचक को कम करने में सरकार नाकाम रही है।
भारत में बिगड़ सकते हैं हालात
