इन दिनों राज्यभर में असम विधानसभा चुनाव-2021की धूम हैै। राज्य में होने वाले तीन चरणों के चुनावों में से दो चरणों के चुनाव समाप्त हो चुके हैं और अब तीसरे या अंतिम चरण के चुनाव होने वाले है। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। बताते चलें कि इस चुनावी समर को जीतने के लिए कोई भी राजनीतिक पार्टी कोई कोर-कसर छोड़ने को तैयार नहीं है। खासतौर पर चुनावी अश्वमेघ के घोड़े को अपनी ओर मोड़ने के लिए राज्य की सत्ताधारी भाजपा गठबंधन और कांग्रेस महागठबंधन के बीच होड़ मची हुई है। इस बार चुनावी नतीजे को अपनी ओर मोड़ने के लिए इन दोनों पार्टियों की ओर से घोषण, लुभावने नारे और आम लोगों को आकर्षित करने वाले वादे किए जा रहे हैं। इसके लिए दोनों पार्टियों की ओर से विज्ञापन का सहारा ज्यादा लिया जा रहा है। चुनाव के दिन फुल-फुल पेज के विज्ञापन प्रकाशित करवाए जा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इनके माध्यम से मतदाताओं में भ्रम फैलाकर चुनावी जंग को जीतने की कोशिश की जा रही है। उदाहरणस्वरूप याद रहे कि प्रथम चरण का चुनाव 27 मार्च को समाप्त हुआ। चुनाव समाप्त होते ही देश के गृहमंत्री अमित शाह ने दावा किया कि असम में प्रथम चरण की 47 सीटों में भाजपा को 37 सीटों पर जीत मिलेगी,जबकि पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष रंजीत दास ने कहा कि भाजपा 47 सीटों में से 42 पर जीत हासिल करेगी,हिमंत ने भी 42 सीटों पर जीत हासिल करने का दावा किया, जबकि उसी दिन विभिन्न अखबारों में भाजपा की ओर से खबर की शक्ल में विज्ञापन भिजवाकर सभी 47 सीटों पर जीत का दावा किया गया। इस पर कांग्रेस भड़क गई और जिस तरह से विज्ञापन का प्रकाशन करवाया गया, उस पर आपत्ति की और इस संबंध में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) का एक प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली चुनाव आयोग से मिलकर इसकी शिकायत की। साथ ही प्रदेश कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल असम के मुख्य चुनाव अधिकारी से मिलकर इसकी शिकायत की। साथ ही पार्टी ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रंजीत दास और मुख्यमंत्री सोनोवाल सहित अन्य कइयों के खिलाफ मामला दर्ज कराया। ऐसे भ्रामक प्रचार और विज्ञापन पर राज्यवासी क्या सोचते हैं- आइए उनके विचारों को यहां रखते हैं-
असम विधानसभा चुनाव-2021 के मद्देनजर इन दिनों राजनीतिक पार्टियों की ओर से विज्ञापन के माध्यम से जमकर राजनीति की जा रही है। इस पर विजय अग्रवाल का कहना है कि इससे मतदाता असमंजस में पड़ जाते हैं। कारण कि विज्ञापनों में राजनीतिक पार्टियां विभिन्न योजना- परियोजनाओं की घोषणा कर लोगों को भ्रमित करती हैं। चुनावी मौैसम में हर राजनीतिक दल अपनी ओर से जनता को लुभाने के लिए विभिन्न तरह के वादे करते हैं। साथ ही सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक चैनल के जरिए अपने कामों का बखान करते है। साथ ही अपने लोक-लुभावन श्लोगन के जरिए दुष्प्रचार भी करत हैं,जो भ्रामक होते हैं, इनसे बचना चाहिए।
प्रेमलता खंडेलवाल का कहना है कि प्रचार प्रसार के विज्ञापन से जनता भ्रमित हो रही है, इसके साथ ही मतदाताओं का रूझान नोटा तथा वोट नहीं देने के पक्ष में भी बढ़ सकता है। कोरोना काल में चुनाव हो रहा है, ऐसे में राजनीतिक दलों के धुआंधार प्रचार से जनता का हित नहीं बल्कि अहित होगा। नेताओं की सभाओं व रैलियों में लोगों की बढ़ती भीड़ के कारण महामारी का प्रभाव और अधिक बढ़ सकता है। इस प्रचार से आमजन के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा है। एक तरफ सरकार व प्रशासन कोरोना से बचने के लिए राज्यवासियों को मास्क लगाने तथा दो गज की दूरी बनाए रखने की बात कहती है।वहीं चुनावी प्रचार में नेताओं के मुख पर न तो मास्क है न ही सामाजिक दूरी दिख रही है।
चुनावी विज्ञापन पर रवि अजीतसरिया का कहना है कि असम के विधानसभा चुनाव में बिहार विधानसभा चुनाव का असर दिखेगा। बिहार चुनाव की तरह ही इस चुनाव में ग्रामीण व शहरी दोनों स्तर के मतदाताओं का बोलबाला रहेगा। साथ ही इस चुनाव में बिहार की तरह ही यहां भी महिलाओं की प्रमुख भूमिका होगी। चुनाव में बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा व कांग्रेस विज्ञापन पर ज्यादा खर्च कर रही हैं। भाजपा 10 संकल्पों तथा कांग्रेस 5 गारंटी योजनाओं के जरिए राज्यवासियों को प्रलोभन देने का काम कर रही हैं। राजनीतिक दल तरह -तरह के चुनावी वादों के जरिए अपने चतुराई का प्रयोग करते हुए मतदाताओं का बहुमूल्य वोट प्राप्त करने में कोई कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहते।
शशि शर्मा ने बताया कि आज की जनता पढ़ी-लिखी है। इसके बाद भी चुनावी प्रचार -प्रसार का जनता पर असर पड़ता है,परंतु आज भी लोगों का आकर्षण अपने चहेते तथा काम करने वाले नेताओं के प्रति होता है। चुनाव आते ही राजनीतिक दलों की ओर से विज्ञापन की बहार-सी आ जाती है। विभिन्न पार्टियां बैनर पोस्टर पर पार्टी के चुनाव चिन्ह तथा अपनी तस्वीर के जरिए मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। चुनावी मौसम में नेतागण वाहन से उतरकर सड़क पर आकर मतदाताओं से वोट भी मांगते है, चुनाव के बाद भूल जाते हैं, बहुतायत मतदाता इन नेताओं से आकषित होते है। इसके बावजूद भी बहुत कम वोटर खुद को बदल पाते हैं। ऐसे में कह सकते हैं कि विज्ञापन का ज्यादा असर नहीं पड़ता है।
राजकुमार तिवाड़ी का कहना है कि चुनाव की आड़ में राजनीतिक पार्टियां विज्ञापन के जारिए जनता को भ्रमित कर अपना हित साधने में लगी हुई हैं, जो कदाचित उचित नहीं है। विज्ञापन से 70 प्रतिशत जनता भ्रमित होती है,वहीं 30 प्रतिशत सजग जनता पर इसका असर नही पड़ता है। चुनाव आयोग की देख रेख में विस चुनाव हो रहा है, इस तरह के विज्ञापन पर परादर्शिता रखते हुए आयोग को समय रहते संज्ञान लेना चाहिए। उनका कहना है कि राजनीतिक दल कोई भी हो जनता तो विकासमूलक कार्य पर ही अपना वोट देती है। होली की आड़ में इस तरह के विज्ञापन को जनता मजाक समझती है। पहले तो विपक्ष राजनीतिक पार्टी के खिलाफ शिकायत करता है, उसके बाद खुद भी वहीं कार्य करता है।
निर्मल शर्मा की मानें तो आज दिखावे का समय है, जो दिखता है,वही बिकता है। वर्तमान चुनाव में भी वही हो रहा है। दोनों राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से चुनाव प्रचार तेजी पर है, परंतु हर पार्टी का अपना वोट बैक होता है, वहीं चुनाव प्रचार प्रसार से 20 -30 प्रतिशत मतदाताओं का रूझान बदलता है, परंतु 70 -80 प्रतिशत मतदाताओं पर इन लोक लुभावन विज्ञापन का असर नहीं होता है। एक बात यह भी है कि विज्ञापन के जरिए ही राजनीतिक पार्टियों की जानकारी मिलती है। दूसरी अगर कोई पार्टी प्रचार -प्रसार नहीं करती है तो उसे कमजोर राजनीतिक दल माना जाता है। हकीकत है कि पहले चुनावी प्रचार प्रसार कम था। पिछली सरकार ने इसे और अधिक बढ़ावा दिया।
अमित कुमार धिरासरिया का कहना है कि मतदाता मानक तय है। इसके बाद भी राजनीतिक दलों की ओर से मतदाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए विभिन्न कला कौशल व विज्ञापन के माध्यम का उपयोग किया जाता है। चुनावी मौसम में पार्टियो को कुप्रचार के बदले राजनीतिक बदले अपने काम के जरिए साबित करना चाहिए,जो सरासर गलत तथा रूपए का दुरूपयोग तथा बर्बादी है। पार्टियों को वास्तविकता पर काम करना चाहिए। सरकार किसी की भी परंतु नेता को सकारात्मक सोच के साथ शांति पूर्ण के साथ ही राजनीति के बजाय जनता के हित को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए। साथ ही जाति व मजहब से ऊपर उठकर सबके हित के लिए काम करना चाहिए। साथ ही राजनेताओं के भ्रम से बचना चाहिए।
तुषार जालान का मानना है कि चुनाव में प्रसार- प्रसार का असर दिखेगा,परंतु भाजपा सरकार का काम फिर से बोलेगा। देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हवा दिख रही है। भाजपा की सरकार बनने के बाद गांव हो या शहर हर जगह विकास की बयार बह रही है। इस परिवर्तन से राज्यवासियों में और अधिक उम्मीद की एक किरण जगी है। आज शहर और गांव में सड़कों का निर्माण पहले से अधिक हुआ है। अब ग्रामीण अंचल व शहरों के बीच की दूरी घट गई है। हर दिन गांव के लोग शहरों में रोजगार के साथ ही नौकरी करने आते हैं तथा रात होते ही अपने घर पहुंच जाते हैं,यह अच्छी बात है।
प्रस्तुति : बलदेव पांडेय